बीबीसी रेडियो 1 न्यूज़बीट की ओर से 1,000 युवाओं पर किए गए सर्वे में ये बात सामने आई है.
इसके अनुसार 28 फीसदी युवाओं का मानना है कि ब्रिटेन में अगर मुसलमानों की संख्या मौजूदा स्तर से कम होती तो हालात बेहतर हो सकते हैं.
वहीं 44 फीसदी युवाओं की राय में मुसलमानों के मूल्य बाकी लोगों जैसे नहीं हैं.
सर्वे के अनुसार 60 फीसदी युवाओं का कहना है कि ब्रितानी जनता में मुसलमानों की छवि नकारात्मक है.
चिंताजनक पूर्वाग्रह
मुसलमानों के प्रति नफ़रत कम करने को लेकर काम कर रहे एक समूह के सलाहकार का कहना है कि इस सर्वे के नतीजों से लगता है कि युवाओं को मेलजोल बढ़ाने की ज़रूरत है.
सरकार के साथ काम करने वाले ऐसे ही एक समूह की अकीला अहमद ने कहा, "इन नतीजों से पता चलता है कि हमें यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि युवा स्थानीय स्तर पर मेलजोल बढ़ाएं."
"साथ ही वे अन्य लोगों के साथ मिलकर काम करें ताकि लोग मुसलमानों को और मुसलमान उनके बारे में जान सकें."
यह समूह पिछले वर्ष ही शुरू किया गया था. इसमें सरकारी कर्मचारी, शिक्षाविद् और मुस्लिम समुदाय के सदस्य शामिल हैं.
बीबीसी रेडियो 1 न्यूज़बीट का सर्वे
-28% लोगों के मुताबिक कम मुसलमान हों तो ब्रिटेन बेहतर होगा
-29% लोगों के मुताबिक मुस्लिम समाज में चरमपंथ से लड़ने की पर्याप्त कोशिश कर रहे हैं
-48% युवाओं के मुताबिक इस्लाम शांतिपूर्ण धर्म
-25% युवाओं के मुताबिक अप्रवासन अच्छी चीज़
यह समूह मुसलमानों को लेकर लोगों के बीच फैले पूर्वाग्रहों के बारे में सरकार को सलाह देता है.
समूह के सदस्यों का कहना है कि युवाओं के बीच मुसलमानों के बारे में पूर्वाग्रह काफी चिन्ताजनक है, क्योंकि उन्हें उम्रदराज़ लोगों की अपेक्षा ज़्यादा उदार माना जाता है.
जून में कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार दस में से केवल तीन लोग सोचते हैं कि मुसलमान अपने समाज में चरमपंथ से लड़ने के लिए पर्याप्त कोशिश कर रहे हैं.
हालांकि 48 फीसदी युवा इस बात से सहमत हैं कि इस्लाम एक शान्तिपूर्ण धर्म है, जबकि 27 फीसदी युवा इससे सहमत नहीं है.
सर्वे के अनुसार ब्रिटेन में 'इस्लाम फोबिया' के लिए 26 फीसदी युवा विदेशी चरमपंथी समूहों, 23 फीसदी मीडिया और 21 फीसदी चरमपंथी घटनाओं को अंजाम देने वाले ब्रिटेन में रह रहे मुसलमानों को ज़िम्मेदार मानते हैं.
दूसरी ओर ब्रिटेन के लिए अप्रवासन को सही मानने वाले युवा आपस में बंटे हुए नजर आते हैं.
25 फीसदी युवाओं का कहना है कि यह अच्छी चीज है, लेकिन एक तिहाई से अधिक युवा इस बात से सहमत नहीं है.
'नकारात्मक नज़रिया'
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समूह के सदस्यों में से एक प्रोफेसर मैथ्यू गुडविन का कहना है, "मेरे और मेरे शिक्षाविद् साथियों के सर्वेक्षणों से यह बात साफ है कि ब्रिटेन की जनसंख्या का एक बड़ा अनुपात इस्लाम और ब्रितानी मुस्लिम समुदाय को लेकर नकारात्मक नज़रिया रखता है."
सरकारी समूह का कहना है कि इस्लाम को लेकर लगातार नकारात्मक मीडिया कवरेज लोगों के इस नज़रिए का कारण है.
प्रेस के मानदंडों पर लेवसन आयोग को दी गई एक रिपोर्ट में कहा है कि "ब्रितानी मीडिया के एक वर्ग की नस्लीय भेदभाव भरी और मुस्लिम विरोधी रिपोर्टिंग एक गंभीर और व्यवस्थित समस्या है."
विभिन्न समुदायों के बीच मेलमिलाप को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे यूनितास फाउंडेशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि न्यूयॉर्क में 9/11 के हमले के बाद से 40 से 60 फीसदी मस्जिदों और इस्लामिक केंद्रों पर कम से कम एक बार हमला हुआ.
वहीं, मेट्रोपॉलिटन पुलिस की ओर से अगस्त में जारी आंकड़ों के अनुसार पिछले एक वर्ष के दौरान लंदन में मुस्लिम विरोधी अपराधों में 61 फीसदी इजाफा हुआ है.
इसके साथ ही ये भी दावे किए गए हैं कि मई में ब्रितानी सैनिक ली रिग्बी की हत्या से मुस्लिम विरोधी भावनाएं और भड़की हैं.
मुस्लिम काउंसिल ऑफ ब्रिटेन ने भी कहा कि रिग्बी की हत्या के बाद से "हिंसा में काफी बढ़ोत्तरी" हुई है.
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