बपतिस्मा एक ईसाई संस्कार है जिसमें किसी व्यक्ति के सिर पर पवित्र जल गिराकर उसे ईसाई चर्च के अनुसार धर्म में सम्मिलित किया जाता है. ज़्यादातर जगहों पर ये संस्कार काफी छोटी उम्र में ही कर दिया जाता है.
करीब 31 साल पहले 1982 में जॉर्ज के पिता राजकुमार विलियम्स के लिए भी यही संस्कार किया गया था. तब से अब तक इस संस्कार में कई बदलाव हुए हैं. आइए डालते है इन संस्कारों पर एक नज़र और जानते हैं क्या बदला है बीते 31 वर्षों में.
अब कम ही लोग करवाते हैं बपतिस्मा
बीते दशकों में बपतिस्मा करवाने वाले लोगों की संख्या में भारी गिरावट आई है. चर्च ऑफ़ इंग्लैंड में साल 1980 तक हर तीन में से एक ईसाई बच्चे का बपतिस्मा संस्कार होता था, लेकिन साल 2011 तक ये आँकड़ा हर दस में एक बच्चे का हो गया.
बपतिस्मा कराने वालो की सालाना संख्या में भी गिरावट आई है. साल 1980 में 2,66,000 बच्चों का बपतिस्मा किया गया था जबकि साल 2011 में ये संख्या 1,40,000 पर जा पहुंच गया.
बढ़ गई है ‘गॉड पैरेंट्स’ की संख्या
बपतिस्मा कराने वाले लोगों की संख्या में गिरावट तो आई है लेकिन प्रति बच्चे के ‘गॉड पैरेंट्स’ यानी गुरूओं की संख्या बढ़ गई है. राजकुमार जॉर्ज के सात गॉड पैरेंट्स हैं, जबकि एलिज़ाबेथ हर्ले के बेटे के छह ‘गॉड फादर’ होंगे.
सिर्फ सेलेब्रिटी ही नहीं आम लोगों के बीच भी ये ट्रेंड काफ़ी लोकप्रिय हो रहा है.
गुरू का धार्मिक होना ज़रूरी नही
गॉड पैरेंट्स बच्चों को धर्म-कर्म और आस्था से जोड़ते हैं और इस नियम में कोई बदलाव नहीं है.
एसेक्स के एक पादरी फ़ादर पॉल कीन ने कहा, “गॉड पैरेंट्स के काम को देखते हुए हम केवल कैथोलिक्स को गॉडपैरेंट बनाते हैं और साथी ईसाइयों को गवाह बनाया जाता है.”
नामकरण समारोहों में इज़ाफ़ा
ब्रिटेन में लोगों के बीच धर्म का प्रभाव कम हो सकता है लेकिन वो चर्च की परंपराओं को त्यागने में अब भी कतराते हैं.
बच्चों की वेबसाइट ‘बेबीसेंटर’ की साराह बैरेट ने कहा, “नामकरण संस्कारों की संख्या में इज़ाफ़ा हो रहा है और आने वाले दिनों में ये और बढ़ेंगे.”
अधिक उम्र में बपतिस्मा
साल 1992 तक चर्च ऑफ इंग्लैंड में बपतिस्मा समारोह कराने वाले बच्चों में से 80 फीसदी बच्चों की उम्र एक साल से कम थी.
लेकिन साल 2011 तक ये आकड़ा 60 फीसदी तक गिर गया.
फर्ज़ी बपतिस्मा
फेथ स्कूलों में बच्चों का दाखिला अभिभावकों को प्रतिस्पर्धा से बचाता है. इस जुगाड़ ने फर्ज़ी बपतिस्मा को बढ़ावा दिया है.
लेकिन ये बता पाना मुश्किल है कि ये समस्या किस हद तक गहरी है. कीन कहती हैं कि अगर ये समस्या है भी, तो ये उन इलाकों की समस्या होगी जहां ईसाई स्कूलों में भारी संख्या मे बच्चे पढ़ते हैं.
पारंपरिक गाउन हुआ फैशन के बाहर
बपतिस्मा के लिए राजकुमार जॉर्ज को पारंपरिक सफेद चोंगे जैसे वस्त्र पहनाएं गए, लेकिन अब कम ही बच्चों को ऐसे चोंगे पहनाए जाते हैं.
कीन का कहना है किचर्च सिर्फ यही कहता है कि बच्चों को सफेद कपड़ों में लपेटा जाना चाहिए जो कि येशु के साथ नए जीवन का सूचक होता है.
गिफ़्ट देना अब भी फैशन में
ब्रिटेन में बपतिस्मा एक बड़ा व्यापार है. कपड़ों के डिजाइनर वेरा वांग और जॉन लीविस ने बपतिस्मा समारोह के लिए दिए जाने वाले तोहफ़ों की बिक्री में 8 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा दर्ज किया.
बपतिस्मा में बच्चों को चांदी के तोहफें दिए जाने का रिवाज़ है लेकिन अब नए तरह के तोहफे भी दिए जा रहे हैं.
गर्म किया जाता है बपतिस्मा का पानी
बपतिस्मा के दौरान बच्चे अब भी रोते हैं लेकिन सर्द ब्रिटेन में माथे पर ठंडा पानी पढ़ने पर चुप रहना कठिन ही होता है.
स्ट्रैटफोर्ड ने कहा, “चर्चों में पानी गर्म किया जा रहा है क्योंकि अब लोग ऐसा कर सकते हैं. कुछ वर्षों पहले तक तो चर्चों में बिजली तक नहीं थी.”
आसान भाषा
साल 1980 तक बपतिस्मा संस्कार में 17वी सदी की भाषा का प्रयोग किया जाता था. लेकिन नए ‘सर्विस बुक’ के आने के बाद ये संस्कार काफी सहज हो गया है.
लेकिन आज के ज़माने की भाषा में इसे ढाले जाने से कुछ लोग नाखुश भी है.
बपतिस्मा की अहम पंक्ति ‘क्या आप ईश्वर के सामने अपना समर्पण करते हैं?’ में भी भाषा पर सवाल उठाए गए हैं.
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