बाबा ने की भविष्यवाणी
जानकारी है कि मधुबाला के पिता अताउल्लाह खान रिक्शा चलाया करते थे. तभी उनकी मुलाकात एक नजूमी, भविष्यवक्ता, कश्मीर वाले बाबा से हो गई. उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि मधुबाला बड़ी होकर बहुत शोहरत पायेंगी. अताउल्लाह खान ने इस भविष्यवाणी को बेहद गंभीरता के साथ लिया और उसके बाद वह मधुबाला को लेकर फाइनली मुंबई ही आ गये.
लाइम लाइट में आईं बेबी मुमताज
वर्ष 1942 में ग्यारह साल की उम्र में मधुबाला को पहली बार बतौर बाल कलाकार 'बेबी मुमताज' के नाम से फिल्म 'बसंत' में काम करने का मौका मिला. उस समय बेबी मुमताज की खूबसूरती ने एक्ट्रेस देविका रानी को काफी मुग्ध किया. उन्होंने उनका नाम बदलकर 'मधुबाला' रख दिया. इतना ही नहीं उन्होंने मधुबाला से बॉम्बे टॉकीज की फिल्म 'ज्वार भाटा' में भी दिलीप कुमार के साथ काम करने की पेशकश उनके सामने रखी, लेकिन उस समय किसी कारण से मधुबाला उस फिल्म में काम नहीं कर सकीं. बताते चलें कि 'ज्वारभाटा' हिंदी की कुछ महत्वपूर्ण फिल्मों में से एक है. बॉलीवुड की इसी खास मूवी के साथ अभिनेता दिलीप कुमार ने अपने सिने कॅरियर की शुरुआत की थी.
इनसे नहीं हुआ कुछ फायदा
इसके बाद निर्माता निर्देश्ाक केदार शर्मा की फिल्म ने मधुबाला को असली पहचान दिलाई. केदार शर्मा की 1947 में आई फिल्म 'नीलकमल'. फिल्म में उनके साथ एक्टर थे 'राजकपूर'. बतौर अभिनेता 'नीलकमल' राजकपूर की पहली फिल्म थी. भले ही यह फिल्म रूपहले पर्दे पर सफल न रही हो, लेकिन इससे मधुबाला ने बतौर अभिनेत्री अपने सिने कॅरियर की शुरुआत की. फिल्म में लोगों ने मधुबाला की खूबसूरती को काफी सराहा. उसके बाद 1949 तक मधुबाला की कई फिल्में आईं, लेकिन इन सभी फिल्मों से उन्हें कुछ फायदा नहीं हुआ.
शुरू हुआ सुपरहिट फिल्मों का दौर
1949 में बॉम्बे टॉकीज के बैनर तले बनी निर्माता अशोक कुमार की फिल्म 'महल' मधुबाला के करियर में काफी महत्वपूर्ण फिल्म साबित हुई. रहस्य और रोमांच से भरपूर फिल्म 'महल' सुपरहिट रही. इसी के साथ बॉलीवुड में 'हॉरर और सस्पेंस' फिल्मों के निर्माण का सिलसिला शुरू हो गया. फिल्म की बेहतरीन कामयाबी ने एक्ट्रेस मधुबाला के साथ ही निर्देशक कमाल अमरोही और गायिका लता मंगेशकर को भी फिल्म इंडस्ट्री में जगह दिलवाई. इसके बाद 1950 से 1957 तक का समय मधुबाला के सिने कॅरियर के लिये काफी बुरा साबित हुआ. इस बीच उनकी काफी फिल्में नाकामयाब साबित हुईं. वहीं वर्ष 1958 में 'फागुन', 'हावड़ा ब्रिज', 'कालापानी' तथा 'चलती का नाम गाड़ी' जैसी बेहतरीन फिल्मों ने अपार सफलता बटोरी. इन फिल्मों की सफलता के बाद मधुबाला एक बार फिर शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचीं.
'हावड़ा ब्रिज' में आईं मधुबाला
फिल्म 'हावड़ा ब्रिज' में मधुबाला ने क्लब डांसर की भूमिका अदा की. इसके साथ ही 1958 मे प्रदर्शित फिल्म 'चलती का नाम गाड़ी' में उन्होंने अपनी एक्टिंग से दर्शकों को हंसाते हंसाते लोटपोट कर दिया. मधुबाला के कॅरियर में उनकी जोड़ी को एक्टर दिलीप कुमार के साथ काफी पसंद किया गया. बता दें कि फिल्म 'तराना' के निर्माण के दौरान मधुबाला दिलीप कुमार से मोहब्बत करने लगीं. इसी दौरान उन्होंने अपने ड्रेस डिजाइनर को एक गुलाब का फूल और एक खत देकर दिलीप कुमार के पास इस संदेश के साथ भेजा कि अगर वह भी उनसे प्यार करते हैं, तो इसे अपने पास रख लें. उनकी इस बात पर दिलीप कुमार ने फूल और खत दोनों को स्वीकार कर लिया.
छोड़ना पड़ा दिलीप कुमार का साथ
इसके बाद बीआर चोपड़ा की फिल्म 'नया दौर' में पहले दिलीप कुमार के साथ नायिका की भूमिका के लिये मधुबाला को ही चुना गया. इसी के साथ मुंबई में ही इस फिल्म की शूटिंग भी होनी थी, लेकिन बाद में फिल्म के निर्माता को ऐसा लगा कि इसकी शूटिंग के लिये भोपाल भी जाना होगा. इसपर मधुबाला के पिता अताउल्लाह खान ने बेटी को मुंबई से बाहर जाने की इजाजत नहीं दी. उन्हें लगा कि मुंबई से बाहर जाने पर मधुबाला और दिलीप कुमार के बीच का प्यार और भी ज्यादा परवान चढ़ेगा. वह इस बात के लिये राजी नहीं थे. बाद में बीआर चोपड़ा को मधुबाला की जगह वैजयंतीमाला को फिल्म में लेना पड़ा. अताउल्लाह खान बाद में इस मामले को अदालत तक ले गये. इसके बाद उन्होंने मधुबाला को दिलीप कुमार के साथ काम करने से भी मना कर दिया और यहां से अलग हो गई दिलीप कुमार और मधुबाला की जोड़ी.
खराब हुई तबियत
इसके बाद पचास के दशक में स्वास्थ्य परीक्षण के दौरान मधुबाला को इस बात का पता चला कि वह हृदय की बीमारी से ग्रसित हो चुकी हैं. इस दौरान उनकी कई फिल्में निर्माण के दौर में ही थीं. अब मधुबाला को ऐसा लगा कि अगर उनकी बीमारी के बारे में फिल्म इंडस्ट्री को पता चल जायेगा तो इससे फिल्म निर्माता को नुकसान होगा. इसलिये उन्होंने इस बात का पता किसी को नहीं चलने दिया. उन दिनों मधुबाला के. आसिफ की फिल्म 'मुगल-ए-आजम' की शूटिंग कर रही थीं. मधुबाला की तबीयत काफी खराब रहती थी. मधुबाला अपनी नफासत और नजाकत को कायम रखने के लिये घर में उबले पानी के सिवाये और कुछ भी नहीं पीती थीं. ऐसे में उन्हें जैसलमेलर के रेगिस्तान में कुयें और पोखरे का गंदा पानी तक पीना पड़ा. इतना ही नहीं मधुबाला के शरीर पर असली लोहे की जंजीर भी लादी गयी, लेकिन उन्होंने इस बात पर भी उफ तक नहीं की और फिल्म की शूटिंग जारी रखी. मधुबाला का ऐसा मानना था कि 'अनारकली' के किरदार को निभाने का मौका बार-बार नहीं मिलता, यह उनके लिये अनमोल था.
मुगल-ए-आजम ने मचाया धमाल
1960 में जब फिल्म 'मुगल-ए-आजम' प्रदर्शित हुयी तो फिल्म में मधुबाला के अभिनय पर दर्शक मुग्ध हो गये. हालांकि बदकिस्मती से इस फिल्म के लिये मधुबाला को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्म फेयर पुरस्कार नहीं मिला, लेकिन सिने दर्शक आज भी इस बात को मानते हैं कि मधुबाला उस साल फिल्म फेयर पुरस्कार की पूरी तरह से हकदार थीं. अब इसके बाद साठ के दशक में मधुबाला ने फिल्मों मे काम करना कम कर दिया था. ऐसे में फिल्म 'चलती का नाम गाड़ी' और 'झुमरू' के निर्माण के दौरान ही मधुबाला किशोर कुमार के काफी करीब आ गयी थीं.
तब किशोर कुमार ने थामा मधुबाला का हाथ
अब मधुबाला के पिता ने किशोर कुमार को इस बात की सूचना दी कि मधुबाला इलाज के लिये लंदन जा रही हैं. वहां से लौटने के बाद ही वह उनसे शादी कर सकेंगी, लेकिन मधुबाला को इस बात का अहसास हुआ कि शायद लंदन में ऑपरेशन होने के बाद वह अब नहीं बचेंगी. यह बात उन्होंने किशोर कुमार को बता दी. इसके बाद मधुबाला की इच्छा को पूरा करने के लिये किशोर कुमार ने मधुबाला से शादी कर ली. शादी होने के बाद मधुबाला की तबीयत और भी ज्यादा खराब रहने लगी. हालांकि इस बीच उनकी 'पासपोर्ट', 'झुमरू', 'ब्वाय फ्रेंड', 'हाफ टिकट' और 'शराबी' जैसी कुछ फिल्में प्रदर्शित हुईं. 1964 में एक बार फिर मधुबाला ने फिल्म इंडस्ट्री की ओर अपना रुख किया, लेकिन फिल्म 'चालाक' के पहले दिन की ही शूटिंग में मधुबाला बेहोश हो गयीं. इसके बाद में डायरेक्टर को यह फिल्म बंद ही कर देनी पड़ी. अपनी अदाओं से दर्शकों के दिलों में हमेशा के लिये जगह बनाने वाली मधुबाला ने 23 फरवरी 1969 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
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