पटना ब्‍यूरो। गाइनिकोमेस्ट्रिया एक ऐसी बीमारी है जिसके नुकसान तो बहुत अधिक नहीं हैं, मगर इसके कारण मरीज अपने लोगों के बीच में ही खुद को असहज महसूस करने लगता है। हालांकि इससे घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि कई मामलों में यह एक निश्चत समय के बाद खुद ही ठीक हो जाता है। और अगर ठीक नहीं भी होता है तो इसका ऑपरेशन अब बिल्कुल आसान और सुलभ हो गया है। गाइनिकोमेस्ट्रिया होने के कारण, इसके नुकसान और इलाज से जुड़े हर पहलू पर पटना के वरिष्ठ प्लास्टिक सर्जन डॉ। एसए वारसी ने पूरी जानकारी दी है।

डॉ.वारसी बताते हैं कि गाइनिकोमेस्ट्रिया एक तरह की बीमारी है जिसमें लड़कों की छाती लड़कियों की तरह बढ़ने लगती है। कई मामलों में हार्मोन की गड़बड़ी से तो कई मामलों में अनियमित दिनचर्या और असंतुलित खान-पान की वजह से यह बीमारी हो सकती है। कभी-कभी इसके होने का असल कारण पता भी नहीं चल पाता है।

ऐसा देखा गया है कि इस बीमारी से ग्रस्त लोग अपने आसपास के लोगों के बीच असहज महसूस करने लगते हैं और समाज से कटने लगते हैं। उनका कॉन्फिडेंस लेवल कम होने लगता है और अन्य बच्चों से ठीक से घुल-मिल नहीं पाने की वजह से अपनी पढ़ाई और कामकाज पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं।

डॉ। वारसी आगे कहते हैं कि यह अमूमन किशोरावस्था में होना शुरू होता है और समय के साथ बढ़ता चला जाता है। अधिकतर मामलों में यह धीर-धीरे बिना किसी उपचार के खुद ही समाप्त हो जाता है। मगर कुछ लोगों में यह बीमारी खुद समाप्त नहीं होती है। ऐसे में ऑपरेशन ही इसका एकमात्र उपाय है क्योंकि इसके लिए कोई दवाई उपलब्ध नहीं है।

जहां तक बात ऑपरेशन की है, तो आमतौर पर जनरल सर्जन बड़ा चीरा लगाकर इसमें से ग्लैंड और फैट को निकालते हैं। मगर प्लास्टिक सर्जन, लाइपोसेक्शन विधि से इसका ऑपरेशन करते हैं जिसमें बहुत छोटा चीरा लगता है और शरीर को बहुत कम नुकसान पहुंचता है।

बोरिंग रोड स्थित नागेश्वर कॉलोनी में औरा कॉस्मेटिक सर्जरी क्लिनीक में यह ऑपरेशन बहुत ही सरल तरीके से किया जाता है और इसकी सफलता दर शत-प्रतिशत है। यहां मरीज को मुश्किल से एक दिन रखा जाता है और ऑपरेशन के अगले दिन छुट्टी दे दी जाती है। ऑपरेशन के कुछ दिन के बाद मरीज के शरीर पर किसी तरह का कोई दाग या निशान नहीं रहता है। डॉ। शब्बीर बताते हैं कि यहां आमतौर पर 17-18 साल की उम्र के बाद ही ऑपरेशन को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि तबतक मरीज के खुद ठीक होने की उम्मीद ज्यादा रहती है।