वर्ल्ड हीमोफीलिया डे आज
-पटना में हीमोफीलिया के पेशेंट बाहर इलाज कराने को हैं मजबूर
-फैक्टर-8 और फैक्टर-9 के इंजेक्शन नहीं, बढ़ रही बीमारी
-गार्डिनर रोड हॉस्पीटल और पीएमसीएच में नहीं है इसकी दवा
PATNA: आज वर्ल्ड हीमोफीलिया डे है। बिहार में इस बीमारी की खूब अनदेखी की जा रही है, यही वजह है कि इसके पेशेंट के सही आंकड़े व इस बीमारी को लेकर मैनेजमेंट को भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। हद तो यह है कि कोर्ट की फटकार के बाद भी इसके लिए समुचित प्रयास का अभाव है, पर मामला अजीब है। बिहार में देश का पहला हीमोफीलिया अस्पताल बनाया गया, जो गार्डिनर रोड हॉस्पीटल के कैंपस में है, पर यहां बार-बार मांग के बावजूद दवा उपलब्ध नहीं करायी जा रही। उधर, पीएमसीएच में भी जनवरी से दवा नही मिल रहा, जिसके कारण पेशेंट्स की बॉडी में एंटीजीन डेवलप हो रहा है। यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें फैक्टर -8 को न्यूटरलाइज यानी बेअसर कर देता है।
एंटीजीन से बचाव के उपाय
हीमोफीलिया के रोगियों को पिछले चार माह से दवा नहीं मिल रही। अब तक गार्डिनर हॉस्पिटल में दवा नहीं उपलब्ध कराई गई। उधर, पीएमसीएच में भी दवा उपलब्ध नहीं है। पेशेंट अमरीश ने बताया कि उसके फैमिली के लोगों ने कई बार यहां जाकर दवा के लिए गुहार लगायी लेकिन इस बात को हर कोई अनसुनी कर देता है। नतीजा ये है उस पेशेंट को हर बार इलाज के लिए किसी दूसरे स्टेट में जाना पड़ रहा है। ऐसे में पेशेंट को सही समय पर यदि दवा नहीं मिलता तो उनके बॉडी में एंटीजीन का खतरा बन जाता है। पेशेंट मनीष का कहना है कि इसके लिए स्पेशलाइज्ड इलाज की व्यवस्था सरकार उपलब्ध कराए, ताकि इससे डिसेबल्ड होकर लोगों को मौत के मुंह में जाने से बचाया जा सके।
हर जगह हो रही खानापूर्ति
हीमोफीलिया पर सभी जगह खानापूर्ति हो रही है। विधायक संजय सिंह टाइगर ने इसके पेशेंट को दवा नहीं मिलने का मामला विधानसभा में उठाया था। जबाब में चार जुलाई, ख्0क्ब् को हेल्थ मिनिस्टर रामधनी सिंह ने कहा था कि हमने दवा गार्डिनर रोड हॉस्पीटल में उपलब्ध करा दी है। इस बारे में हॉस्पिटल के सुपरिंटेंडेंट डॉ मनोज कुमार सिन्हा से आई नेक्स्ट ने जानकारी मांगी तो उन्होंने कहा कि यहां दवा नहीं, यह राज्य स्वास्थ समिति का मामला है। इसकी कंट्रोलिंग समिति ही करती है।
नहीं चलाया जाता अवेयरनेस प्रोग्राम
जानकारी हो कि ख्0क्फ् में ही राज्य स्वास्थ्य समिति ने स्टेट के सभी सिविल सर्जनो को आदेश जारी किया था वे इसके अवेयरनेस के लिए काम करें। इसमें आंगनबाडी आशा व अन्य कर्मचारियों को इसके लिए लगाया जाए, ताकि लोगों को अवेयर किया जाए। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
राज्य सरकार कब मानेगी डिसेबिलिटी
जहां इस बीमारी को केंद्र सरकार ने डिसेबिलिटी की कटेगरी में शामिल कर रखी है.इसे बस पार्लियामेंट में पास कराना है। वहीं, स्टेट गवर्नमेंट ने इसे अब तक डिसेबिलिटी नहीं माना है। यही वजह है कि इससे रोगियों को डिसेबल्ड होने पर भी उन्हें डिसेबिलिटी कैटेगरी की सुविधा नहीं मिल रही। सूत्रों का कहना है कि इसमें को-आर्डिनेशन का अभाव है। यह मामला सोशल जस्टिस एंड इम्पावरमेंट का है। उधर, स्वास्थ्य विभाग का रवैया लचर है। इसमें विभागीय स्तर पर कहीं किसी के साथ तालमेल नहीं है। दवा उपलब्ध कराने की जिम्मेवारी जबतक राज्य स्वास्थ्य समिति के पास थी तब तक कोई समस्या नहीं थी लेकिन जब से बीमएएसआईसीएल को जिम्मेदारी दी गई है स्थिति गंभीर है।
हर दस हजार पर एक बीमार
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक हर दस हजार पर एक व्यक्ति हीमोफीलिया से ग्रस्त है। इस हिसाब से बिहार की आबादी करीब क्क् करोड है तो कम से कम क्क् हजार पेशेंट के इससे पीडि़त होने का अनुमान है। वैसे हीमोफीलिया सोसाइटी बिहार के मुताबिक बिहार में इसके रजिस्टर्ड पेशेंट करीब 900 हैं और जिसमें पटना में ख्00 पेशेंट हैं। जानकारी हो कि हाईकोर्ट ने ख्007 में ही इसकी दवा मेडिकल कॉलेजों और न्यू गार्डिनर रोड स्थित हीमोफीलिया हॉस्पीटल में देने का आदेश दिया था। लेकिन आज भी इसे लेकर लचर स्थिति है।
क्या है हीमोफीलिया
-यह एक रेयर बीमारी है, जिसमें ब्लीडिंग डिस्ऑर्डर होता है, यानी एक बार चोट लग जाए तो खून बहना बंद नहीं होता है। इसमें इंटरनल ब्लीडिंग भी होता है। संबंधित ऑर्गन भी खराब हो जाता है।
-घुटना, टखना, केहुनी आदि ज्वांइट वाले बॉडी पार्ट में सबसे अधिक असर होता है।
-क्लॉटिंग फैक्टर एक प्रकार का प्रोटीन है जो कि प्लेटलेट्स के साथ ब्लड क्लॉटिंग में हेल्पफुल होता है।
- यह आनुवंशिक बीमारी है, जिसमें संबंधित पेशेंट को जन्मजात क्लाटिंग फैक्टर नहीं होता है।
-हीमोफीलिया दो प्रकार का होता है-ए और बी, टाइप ए में फैक्टर-8 और टाइप बी में फैक्टर-9 मिसिंग होता है।
-इसका इलाज नहीं मैनेजमेंट होता है, जिसमें दवा के अभाव में एंटी बॉडी डेवलप कर जाता है। जिसके कारण मल्टीपल डिसेबिलिटी की समस्या होती है।
हम मांग करते हैं कि सरकार इसे डिसेबिलिटी एक्ट में शमिल किया जाए ताकि बिहार के पेशेंट्स को इससे थोड़ी राहत मिले।
-कुमार शैलेंद्र, सेक्रेटरी, बिहार हीमोफीलिया सोसायटी