पटना ब्यूरो। साइक्लिंग में कभी बिहार का डंका देश भर में बजता था। एके लुईस, अर्जुन लाल, राकेश कुमार, गुलाब चंद्र गुप्ता, विनीता एक्का, कविता यह वह नाम है जिनकी ख्याति साइक्लिंग को लेकर देशभर में फैली थी। लेकिन झारखंड के बंटते ही आज यह नाम गुमनाम हो गये। बिहार का डंका बजना बंद हो गया। बंटवारे के बाद झारखंड ने तो साइक्लिंग का ट्रैक बना लिया पर बिहार में ये अब तक नहीं बना। यहां के प्लेयर्स एनच जैसी सड़कों पर प्रैक्टिस करने को मजबूर हैं। ज्यादातर प्लेयर्स मीडियम फैमिली बैकग्राउंड से आते हैं। गवर्नमेंट की ओर से प्रोत्साहन नहीं मिलने से भी प्लेयर्स साइक्लिंग से तौबा कर लेते हैं। वर्तमान में खिलाड़ियों की बात करें तो सरकारी सुविधा के बावजूद बिहार के प्लेयर्स ने अंततराष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीतकर देश को गौरांवित किया। बिहार के साइक्लिस्टों ने एशियन गेम्स में तीन मेडल व एक पार्टिसिपेशन कर उन सबका ध्यान आकर्षित कराया कि अभाव में भी किसी से कम नहीं। वहीं खेलो इंडिया साइकिलिंग प्रतियोगिता में भी बिहार ने कई पदक अपने नाम किए। हद तो तब हो गई कि मेडल के बाद भी सरकार ने खिलाड़ियों को एक—एक साइकिल देकर अपना पल्ला झाड़ लिया।
खुद के खर्चे पर साइक्लिंग
आलम यह है कि बिहार के साइक्लिस्ट को अपने खर्चे पर स्टेट या नेशनल लेवल के टूर्नामेंट में प्रतिभाग करना होता है। हालांकि वर्तमान में स्थिति थोड़ी बदली है। साइक्लिंग एसोसिएशन बिहार को साथ मिलने से खेल और खिलाड़ियों में बढ़ोतरी हुई है।
महंगी है साइक्लिंग
साइक्लिंग के प्लेयर्स बताते हैं कि इसमें डाइट पर ही हर मंथ 8 से 10 हजार रुपए खर्च होते हैं। एक टायर का तीन हजार रुपए लगता है जो हर 5 माह पर बदलना होता है। चेन की कीमत ही 3 हजार से शुरू होती है। साइक्लिंग वाली साइकिल के ज्यादातर पाट पुर्जे अभी भी विदेशों से आती हैं। एक-दो कंपनियां आयी हैं देश में जिन्होंने बनाना शुरू किया है।
साइकिल का इश्योंरेंश नहीं होता
मोटरसाइकिल का तो इंश्योरेंश होता है पर साइकिल का इंश्योरेंस नहीं करती हैं कंपनियां। जबकि रेसिंग साइकिल 80 हजार से शुरू होकर 7-8 लाख तक की आती हैं। अबतक बाजार में 10 से 15 लाख की साइकिल आ चुकी है। रेसिंग साइकिल को ट्रैवलिंग करने में काफी सावधानी बरतनी होती है। अधिकांश साइकिल रेसिंग के समय दुर्घटनाग्रस्त होती जिसे बनवाना काफी खर्चीला होता है।
अटल पथ पर बनना था साइकिल ट्रैक
पटना में चिड़ियाखाना के गेट नंबर दो की तरफ साइकिल ट्रैक राजभवन तक बनाया गया था, लेकिन अब वह नहीं दिखता। इसी तरह एक कोशिश बिहार म्यूजियम के पास की गई थी, लेकिन वह भी आगे सफल नहीं हुई। पटना में जब रेल पटरियों को उखाड़कर अटल पथ, आर ब्लॉक से दीघा तक बनाया गया, तब लोगों में उम्मीद जगी कि साइकिल का ट्रैक बनाया जाएगा। तब यह बात सामने आई थी कि लाल रंग के ट्रैक पर साइकिल सवार और लाल-पीले रंग के ट्रैक पर पैदल यात्री चलेंगे। सड़क के दोनों तरफ साइकिल ट्रैक बनने की बात थी। इससे हड़ताली मोड़ से लेकर कुर्जी नाला तक दाहिने साइड में तीन किमी क्षेत्र में साइकिल सवार और पैदल यात्री ट्रैक बनना था। अटल पथ पर साइकलिंग की व्यवस्था होती तो इससे सबसे ज्यादा फायदा स्कूली छात्र-छात्राओं को होता। सेंट माइकल, लोयला, नोट्रेडम जैसे कई बड़े स्कूल अटल पथ के पास ही हैं। परंतु ऐसा नहीं हो सका।
छात्र-छात्राओं को साइकिल देती है सरकार
बिहार सरकार ने सरकारी स्कूलों के छात्र-छात्राओं को साइकिल खरीदने के लिए राशि देकर साइकलिंग को बढ़ावा जरूर दिया। उससे खास तौर से लड़कियों की शिक्षा में बेहतरीन उछाल आया, लेकिन साइकिलिंग को पटना जैसे शहर में बढ़ावा देने का काम सरकार ने अब तक नहीं किया है।
वर्जन
साइकिल ट्रैक की जरूरत बिहार की जरूरत है। सरकार सिर्फ योजना बना रही है। सरकार प्रोत्साहन दे तो खिलाड़ियों का पलायन रुकेगा। मेडल लाओ नौकरी पाओ योजना के तहत नौकरी खिलाड़ियों को मिले तो सूबे से ओर भी प्रतिभाशाली खिलाड़ी निकलेंगे। बिहार साइकिल के लिए अच्छी बात है कि लड़कियों की संख्या इसमें काफी बढ़ी है।
—कौशल किशोर, सचिव, बिहार साइकिल एसोसिएशन