पटना ब्यूरो। मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है। पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है। यह कहावत उनके लिए सटीक बैठती है। जो विषम परिस्थितियों में भी अपने आप को सफलता की ऊंचाइयों तक ले जाते हैं और उनकी प्रतिभा को हर कोई सलाम करता है। कुछ दिव्यांग समाज में ऐसे भी हैं जो अपने आप को लाचार मानते हैं तो कुछ दिव्यांग ऐसे हैं जो अपनी दिव्यांगता को ही ताकत बनाते हैं और उसके दम पर भी अपने आप को मजबूत बनाते हैं। इसलिए उनके लिए कहा जाता है। कभी गिरोगे तो खुद उठ भी जाओगे, कभी लड़खड़ाओगे तो खुद ही संभल भी जाओगे, जब तुम थामोगे हौसलों का दामन तो, एक दिन शिखर पर तुम भी चढ़ जाओगे। ये पंक्तियां श्रवण दिव्यांग खिलाड़ी अनीमा कुमारी पर सटीक बैठती हैं। पढ़ें पूरी खबर
अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया
राजधानी पटना के राजीवनगर निवासी अनिमा कुमारी ने भी इस बात को आज सच कर दिखाया है और उसने दिव्यांगता को अभिशाप ना मानकर इसे अपने लिए प्रेरणा बनाया और आज सर्बिया के बेलग्रेड में हुए वर्ल्ड डेफ चेस चैंपियनशिप में रजत पदक जीतकर अपनी प्रतिभा का लोहा पूरे देश में मनाया है। हालांकि अनीमा को पहले तो अपने जीवन में कई विफलताओं का भी सामना करना पड़ा, लेकिन अपनी विशेष परिस्थितियों को ढाल बनाकर उसके बाद हर मुश्किल से अनीमा ने लड़ना सीखा और आज वह देश की सफल शतरंज की खिलाड़ी है।
बचपन में ही छीन गया पिता का साया
पटना के राजीवनगर निवासी शिखा देवी की दो बेटियां है। दोनों बेटियां श्रवण दिव्यांग है। दोनों सुन नहीं सकती व बोल नहीं सकती। लेकिन आज उन्हें अपनी बेटियों पर नाज है। पति के मृत्यु के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। अपनी बेटियों को कामयाब बनाने के लिए संघर्षरत है। शिखा बताती हैं कि उनके पति स्वर्गीय उमेश कुमार का निधन वर्षो पहले हो गया था। वे सीआरपीएफ में कार्यरत थे। वहीं दोंनों बेटियां खेल के साथ पढ़ने में भी बहुत अच्छी हैं।
बड़ी बहन से सीखा शतरंज खेलना
शिखा बताती हैं कि अनीमा जब छह साल की थी तब से वह अपनी बड़ी बहन नैंसी के साथ चेस खेलना शुरू किया। उसके बाद से उसने उसे अपना कॅरियर बना लिया। कई राष्ट्रीय प्रतियोगिता में पदक जीतने वाली अनीमा को इससे पहले भी अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में खेलने का अवसर मिला, लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। कक्षा 10वीं की छात्रा अनीमा का चयन वर्ष 2019 में पोलैंड में होनेवाले वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए हुआ लेकिन वीसा नहीं मिला। वहीं दूसरे वर्ष 2020 में लंदन के लिए उसका चयन भारतीय दल में हुआ। परंतु कोरोना की वजह से खेल स्थगित हो गया। इसके बाद दोबारा पोलैंड के लिए हुआ इस बार भी उसे वीजा नहीं मिला। लेकिन अनीमा व उसकी मां ने हार नहीं मानी। इस बार उसे सर्बिया जाने का अवसर मिला जिसे उसने गवाया नहीं। मेडल जीतकर देश व राज्य का मान बढ़ाया।
उसे बेहतर कोचिंग की जरूरत
अनीमा की मां बताती हैं कि बेटी का लक्ष्य ओलंपिक में देश के लिए मेडल जीतने का है। उसके लिए उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर की ट्रेनिंग की जरूरत है। वर्ल्ड डेफ जूनियर चेस रैंकिंग में 13वां स्थान पाने वाली अनीमा को बिहार राज्य खेल प्राधिकरण के महानिदेशक रविंद्रन शंकरण से अपील की है कि अनीमा को बेहतरीन ट्रेनिंग की मिले तो वह देश के लिए मेडल लाने से पीछे नहीं रहेगी।