पटना ब्‍यूरो। हिन्दी के महान उन्नायकों में से एक महाकवि रामदयाल पाण्डेय न केवल एक महान स्वतंत्रता-सेनानी, तेजस्वी पत्रकार और राष्ट्रीय भाव के महाकवि ही थे, बल्कि सिद्धान्त और आदर्शों से कभी न डिगने वाले एक स्वाभिमानी साधु-पुरुष भी थे। स्वतंत्रता-आंदोलन में उनकी गतिविधियों से नाराज़ अंग्रेजी-सरकार ने उनके विरुद्ध देखते ही गोली मार देने का आदेश दे रखा था। उन्होंने भारत सरकार से प्राप्त होने वाले स्वतंत्रता-सेनानी पेंशन लेना भी यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि मातृ-भूमि की सेवा एक पुत्र के रूप में की है। इसका शुल्क स्वीकार नहीं कर सकता।
यह बातें मंगलवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, महाकवि की जयंती पर आयोजित कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि, पाण्डेय जी ने हिन्दी और हिन्दी साहित्य सम्मेलन की बड़ी सेवा की।

-पांच-पांच बार सम्मेलन के अध्यक्ष चुने गए
डॉ। अनिल सुलभ ने कहा कि पांच-पांच बार सम्मेलन के अध्यक्ष चुने गए.सम्मेलन भवन के निर्माण में अपने सिर पर ईंट-गारे ढोए और अन्य साहित्यकारों को भी इस हेतु प्रेरित किया। वे राष्ट्रभाषा परिषद, बिहार के उपाध्यक्ष-सह-निदेशक भी बनाए गए थे। इस पद को उनके ही सम्मान में उत्क्रमित किया गया था और राज्यमंत्री का स्तर प्रदान किया गया था। मौके पर कवि बच्चा ठाकुर, ई आनन्द किशोर मिश्र, वायुसेना के पूर्व अधिकारी संजय कुमार आदि ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।