पटना ब्‍यूरो। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) ने अपनी हालिया रिपोर्ट में बिहार के थर्मल पावर प्लांट से बढ़ते सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ२) उत्सर्जन को लेकर गंभीर चिंता जताई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि राज्य के किसी भी थर्मल पावर प्लांट में फ्लू गैस डीसल्फराइजेशन (एफजीडी) सिस्टम स्थापित नहीं है। यदि इसे लागू किया जाए तो सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 62 प्रतिशत तक की कमी लाई जा सकती है। इससे वार्षिक उत्सर्जन 181 किलोटन से घटकर 68 किलोटन हो जाएगा और वायु गुणवत्ता के साथ-साथ जनस्वास्थ्य पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा.बता दें कि भारत वर्तमान में दुनिया का सबसे बड़ा सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जक है। 2023 में देश का एसओ२ उत्सर्जन 6,807 किलोटन था, जो तुर्की (2,206 किलोटन) और इंडोनेशिया (2,017 किलोटन) जैसे देशों लगभग तीन गुना अधिक है.कोयले पर निर्भर ऊर्जा उत्पादन इस प्रदूषण का मुख्य कारण है। हालांकि, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 2015 में तय किए गए मानकों को लागू कर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।
जहां तक बात बिहार की है, तो राज्य के छह प्रमुख कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट, जिनकी कुल क्षमता 7.55 गीगावाट है, से हर साल 181 किलोटन सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जित होता है। अगर एफजीडी सिस्टम लगाए जाएं तो यह उत्सर्जन घटकर 68 किलोटन रह सकता है। उदाहरण के लिए, बरौनी थर्मल पावर प्लांट में सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन को 80 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। इसी तरह, नबीनगर और कहलगांव प्लांट्स में भी उत्सर्जन में क्रमश: 66 और 46 प्रतिशत की कमी लाई जा सकती है।