पटना ब्‍यूरो। लोग पटना के महावीर मंदिर को लेकर भी कई सवाल उठा रहे हैं। लेकिन वे यहां पर केवल अपनी श्रद्धा की वजह से आते हैं। उन्हें नहीं पता कि तिरूपति लड्डू विवाद का यहां पर क्या असर पड़ा है। अगर इसमें कुछ गड़बड़ भी है तो उन्होंने इसे भगवान पर छोड़ दिया है। तिरूपति में प्रसाद के लिए बनने वाले लड्डू में इस बात की पुष्टि होने के बाद कि इसे जिस घी में बनाया जा रहा था। उसमें बनस्पति तेल और जानवरों के चर्बी से तैयार किया जा रहा था। इस विवाद का असर वैसे तो पूरे देश में हुआ है। लेकिन पटना का महावीर मंदिर भी तिरूपति लड्डू विवाद के बाद कहीं न कहीं जरूर चर्चाओं में आ गया है।

क्यों चर्चा में हैं पटना महावीर मंदिर में बनने वाला प्रसाद नैवेद्यम

महावीर मंदिर का संचालन श्री महावीर स्थान न्यास समिति करती है। इस ट्रस्ट के अध्यक्ष आचार्य किशोर कुणाल हैं। मंदिर में ट्रस्ट की ओर से पहली 22 अक्टूबर 1992 में पहली बार तिरूपति के तर्ज पर प्रसाद के रूप में नैवेद्यम लड्डू की शुरूआत की गई थी। लोगों को यह लड्डू काफी पसंद भी आई थी। नैवेद्यम के शुरुआती वर्षों में दूध उत्पादकों से दूध की छाली मंगाकर घी लिया जाता था। लेकिन नैवेद्यम की बढ़ती मांग के हिसाब से छाली की आपूर्ति कम पड़ती गयी। तब से सीधे घी की खरीद की जाने लगी। इस का नतीजा यह हुआ कि इसकी मांग दिनों दिन बढ़ती गई। मांग बढऩे के साथ घी बाहर से मंगाया जाने लगा।

तिरूपति विवाद के बाद लड्डू के बिक्री में आया है गिरावट

तिरूपति लड्डू विवाद के बाद पटना के हनुमान मंदिर में नैवेद्यम के बिक्री में भी आया गिरावट। लेकिन यह बात मंदिर प्रबंधन स्वीकार नहीं कर रही है। नैवेद्यम दुकान पर काम करने वाले एक शख्स ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि लोग इस मामले को लेकर संदेह जता रहे हैं। यहीं कारण है कि लड्डू के बिक्री में दस से बीस प्रतिशत तक की गिरावट आई है। लोग घी के लड्डू के जगह पर अब अन्य लड्डू की खरीद का मंदिर में चढ़ा रहे हैं।

94 लाख रुपये का आता है हर महीने घी, 1 लाख 20 हजार किलो हर महीने बनता है लड्डू


नैवेद्यम लड्डू की लोकप्रियता का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि अभी हर महीने 94 लाख रुपये का घी आता है। यानी इतना राशि में हर महीने 15 हजार किलो घी की खरीद की जाती है। इतना में एक लाख 20 हजार किलो लड्डू बनाई जाती है। फिलहाल यह घी कर्नाटक मिल्क फेडरेशन लिमिटेड से ली जा रही है। पूरे साल की बात करें तो 11 करोड़ 28 लाख रुपये जो कि बिहार के श्रद्धालुओं की है उसे बाहर भेज कर वहां से घी मंगाई जा रही है। मंदिर प्रबंधन का दावा है कि कर्नाटक मिल्क फेडरेशन का नंदिनी घी शुद्ध और प्रमाणिक है। नंदिनी घी की बजाय अन्य घी के इस्तेमाल से तिरुपति के लड्डू पर सवाल खड़े हुए। जबकि दाम बढऩे के बावजूद महावीर मन्दिर ने कर्नाटक मिल्क फेडरेशन के नंदिनी घी की कीमतों में बढ़ोत्तरी को नियंत्रित कर उसकी आपूर्ति बरकरार रखी।

नंदनी के जगह पर बिहार ब्रांड सुधा का घी क्यों नहीं

नंदनी घी कर्नाटक मिल्क फेडरेशन की ओर से बनाई जाती है। इस कंपनी को कर्नाटक सरकार रेग्यूलेट करती है। यह काफी हद तक सुधा के तर्ज पर ही काम करती है। सोशल मीडिया पर कई लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि पटना का हनुमान मंदिर हर साल जो 11 करोड़ से भी अधिक का घी कर्नाटक से मंगाती है। वह बिहार से ही क्यों नहीं लेती है। सुधा मिल्क को भी वह यह ऑडर प्रोवाइड करा सकती है। पटना में ऑक्सीजन मैन के नाम से जाने जाने वाले गौरव राय ने इस पर सवाल उठाते हुए पूछा है कि महावीर मंदिर जब बिहार के लोगों को लड्डू बेच रही है तो बिहार के लोगों से घी क्यों नहीं खरीदा जा रहा है।
प्रियदर्शन शर्मा लिखते हैं कि सुधा के मुकाबले नंदिनी का घी हो या अन्य दुग्ध उत्पाद उसकी गुणवत्ता और कीमत दोनों कमतर है। पिछले कई सालों का मेरा यह अनुभव रहा है। अजय कुमार सिंह फेसबूक पर लिखते हैं कि कर्नाटक से घी मंगाने में लाने का कोस्ट भी जोड़ा जाता होगा। जबकि बिहार से घी लेने पर इसमें कुछ कमी आ सकती है।
वहीं विनय कुमार लिखते हैं कि पटना हनुमान मंदिर का इतना इनकम है कि खुद का डेरी प्लांट डालकर रोजगार देकर खुद का घी उत्पाद कर सकते है । लेकिन इनको कर्नाटक से ही चाहिए।

मंदिर आए लोगों ने क्या कहा

वर्जन -
अगर क्वालिटी सही मिल रहा है तो बिहार सरकार से घी की खरीदारी करनी चाहिए। इससे बिहार का पैसा बिहार में ही रहेगा। यहां का स्वाद वहां के स्वाद के तरह ही है।
- वेद प्रकाश , श्रद्धालु

दूसरे राज्य के बदले घी अपने राज्य से ही खरीदना उचित होगा। क्योंकि मंदिर में लड्डू बनाने वाले कारीगर तो तिरूपति से हैं इसलिए स्वाद में ज्यादा अंतर नहीं होगा।
-विदांत, श्रद्धालु

हो सकता है कि यहां बिकने वाला घी में गाय और भैंस का मिलावट हो। इसलिए वहां से खरीदी जा रही है। शुद्धता की जांच कर यहां से भी खरीद सकते हैं।
-अभिनाश, श्रद्धालु

महावीर मंदिर से जुड़ी कुछ और खास बातें

1 इस मंदिर की स्थापना साल 1730 में रामानंद संप्रदाय के संन्यासी स्वामी बालानंद ने की थी।
2 1948 में पटना हाईकोर्ट ने इसे सार्वजनिक मंदिर घोषित किया था।
3 मंदिर में भक्तों के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाता।
4 मंदिर में चढ़ाए जाने वाले भोग और दान पेटी से मिलने वाली राशि का इस्तेमाल, गरीब लोगों के इलाज और अन्य ज़रूरतमंदों की मदद के लिए किया जाता है।
5 ट्रस्ट का बजट, उत्तर भारत में माँ वैष्णो देवी मंदिर के बाद दूसरा सबसे बड़ा है।

वर्जन
महावीर मन्दिर में वर्ष 1992 में नैवेद्यम की शुरुआत हुई थी। अपनी शुद्धता, पवित्रता, गुणवत्ता और स्वाद के कारण आज यह भक्तों को सबसे अधिक पसंद है। नैवेद्यम की लगातार बढ़ती मांग इसका स्पष्ट प्रमाण है। महावीर मन्दिर भक्तों को आश्वस्त किया है कि नैवेद्यम की गुणवत्ता हमेशा बरकरार रहेगी। नैवेद्यम की शुद्धता और पवित्रता को महावीर मन्दिर हमेशा बरकरार रखेगा। मंदिर में गाय का घी ही इस्तेमाल होता है। इसलिए कर्नाटक मिल्क फेडरेशन जो कि गाय का घी होने का प्रमाणिक दावा करती है वहां से घी मंगाया जाता है।
- आचार्य किशोर कुणाल, महावीर मन्दिर न्यास के सचिव