पटना ब्‍यूरो।

लेकिन उसको लाने में कुछ खर्च लगेगा। ओमप्रकाश पहले तो पैसा देने के लिए राजी हो जाते हैं। लेकिन बाद में उन्होंने सोचा कि वह इस बात को थाना से कंफर्म कर लेते हैं। जब उन्होंने थाना और अपने केस आई ओ को फोन किया तब पता चला कि अभी न तो उनकी बाइक मिली है और न ही थाना या फिर आईओ लेवल से कोई उनके पास इससे रिलेटेड फोन गया है। फिर जब उन्होंने उस नंबर पर फोन किया और थाना से संपर्क और बाइक नहीं मिलने के बारे में बताया तो कॉल करने वाले नंबर पर उन्हें तुरंत ब्लॉक कर दिया गया। सवाल उठता है कि यह फोन करने वाला था कौन। ओमप्रकाश के जेहन में यही सवाल था। उन्हें इसका जल्द ही जवाब भी मिल गया। यह पुलिस या थाना से नहीं बल्कि साइबर फ्रॉडर्स की ओर से फोन किया गया था।

कैसे मिलता है कंप्लेनर्स के नंबर


ओमप्रकाश की जेहन में एक बात आ रही थी कि आखिरकार उनका नंबर साइबर अपराधियों तक कैसे पहुंच गया। तो इसका भी उत्तर बेहद ही आसान है। एफआईआर के डिजिटलाइजेशन के बाद एफआईआर कॉपी वेबसाइट पर उपलब्ध होती है। कोई भी व्यक्ति वहां से जाकर एफआईआर की कॉपी डाउनलोड कर सकता है। एफआईआर की कॉपी पर शिकायतकर्ता का फोन नंबर भी दर्ज होता है। जिसको लेकर साइबर अपराधी ऐसे लोगों तक आसानी से अपनी रिच बढ़ा कर उनसे ठगी की कोशिश कर रहे हैं। यह मामला केवल केस दर्ज कराने वाले लोगों तक ही सीमित नहीं है। किसान योजनाओं के लाभार्थी से लेकर प्रतियोगी परीक्षाओं के फार्म भरने वाले स्टूडेंट तक को ऐसे कॉल साइबर अपराधी करके उन्हें अपने निशाने पर ले रहे हैं।

केस नंबर 1


पटना के रामकृष्ण नगर के रहने वाली पिंकी कुमारी के पास भी कुछ इसी टाइप को फोन आया था। पिंकी ने अपने मोबाइल चोरी की एफआईआर दर्ज कराई थी। फिर उनके पास मोबाइल मिलने और प्रोसेसिंग में पैसा लगने की बात बता कर उनसे पैसे की मांग की जा रही थी। लेकिन उन्होंने पैसा देने से इनकार दिया। क्योंकि उनका मोबाइल कम दम का था। मोबाइल की कीमत से अधिक पैसे की मांग की जा रही थी। बाद में उन्हें पता चलता है कि यह फोन साइबर अपराधियों की ओर से किया जा रहा था।

केस नंबर 2


संतोष कुमार भी रामकृष्ण नगर के रहने वाले हैं। जलपाईगुड़ी में जॉब करते हैं। जब वह घर पर आए हुए थे। तब उनकी मोबाइल गुम हो गई थी। उन्होंने इसकी शिकायत रामकृष्ण नगर में दर्ज कराई थी। जब वे वापस अपने जॉब पर चले गए तब उनके पास यह बता कर फोन किया गया कि वे थाना से बोल रहे हैं। उनका मोबाइल मिल गया है। लेकिन वापसी के लिए पैसा देना पड़ेगा। संतोष ने अपने भतीजा को मोबाइल की जानकारी लेने के लिए थाना पर भेजा। जहां पता चलता है कि उनका मोबाइल तो अभी मिला ही नहीं है।

कैसे बचें इस तरह के फ्रॉड से


साइबर एक्सपर्ट और एडवोकेट पंकज कुमार के अनुसार अगर आप किसी भी प्रकार का केस दर्ज कराते हैं तो जाहिर सी बात है कि आपका नंबर एफआईआर की कॉपी पर होगी। उस स्थिति में यह सार्वजनिक तो रहेगी। अब पुलिस विभाग की ओर से इस बारे में मोबाइल नंबर हिडेन रखने का नीतिगत फैसला लिया जा सकता है। क्योंकि इसका अनुचित फायदा साइबर अपराधी उठाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन अगर आपके पास पुलिस या थाना से फोन आए तो आप निम्न लिखित सावधानी बरत सकते हैं।

1 अगर आपसे केस के रिगार्डिंग कोई भी फोन करके पैसा की मांग करता है तो इसकी सूचना आप साइबर क्राइम ब्रांच को दे सकते हैं।
2 1930 पर इसकी तत्काल शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
3 किसी केस में आपसे फोन करके कोई पैसा अगर मांगता है तो समझ जाइए कि यह साइबर अपराधियों का कोई खेल हैं क्योंकि पुलिस कर्मी कभी अपनी नौकरी दांव पर रख कर फोन पर पैसा नहीं मांगते।
4 केस में फंसाने या फिर गिरफ्तारी की धमकी दी जा रही हो तब आप इससे बिलकुल भी नहीं डरे और किसी एडवोकेट से तत्काल संपर्क करें।
5 इस संबंध में आप अपने केस के आईओ और थाना के एसएचओ से भी संपर्क करके स्पष्ट हो सकते हैं।

वर्जन
इस संबंध में अगर मामला संज्ञान में आता है। तब उस पर कार्रवाई होगी। इस तरह के मामले में अभी संज्ञान में नहीं आया है। लोगों को साइबर अपराधियों से सर्तक रहने की जरूरत है।
-मानवजीत सिंह ढिल्लो, डीआईजी, ईओयू