- ग्राउंड और कोच की कमी से खेल और खिलाड़ी पिछड़ रहे

- हॉकी जैसे राष्ट्रीय खेल के लिए एक भी स्टेडियम उपलब्ध नहीं

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PATNA : प्रदेश में खेलकूद का क्या हाल है यह राजधानी पटना में ही मौजूदा नारकीय स्थित को देखकर समझा जा सकता है। परंपरागत खेल से लेकर नए खेलों की लंबी सूची है लेकिन सुविधा के नाम पर कोई ठोस पहल कभी नहीं की गई। नतीजा सभी के सामने है। खेल और खिलाड़ी दोनों की स्थिति लगातार दयनीय हो रही है। खेल के लिए मौलिक सुविधाओं को लेकर विभिन्न खेल संघों ने कला संस्कृति एवं युवा विभाग के समझ गुहार लगाकर स्थिति में बदलाव की मांग दोहराते रहे हैं। लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात जैसी ही है। पेश है कुछ चुनिंदा खेल और उससे जुड़ी सुविधाओं के बारे में रिपोर्ट।

हॉकी

यह देश का एक राष्ट्रीय खेल है। मेजर ध्यानचंद जैसे इस महान खिलाड़ी का नाम इस खेल से जुड़ा हुआ है। पूरे बिहार में एक मात्र हॉकी स्टेडियम के तौर पर सैदपुर एरिया में बने फिजिकल एजुकेशन कॉलेज कैंपस में इसके लिए स्टेडियम का प्रस्ताव था। इस बार बिहार हॉकी एसोसिएशन ने देरी को लेकर बीच-बीच में कला संस्कृति एवं युवा विभाग में मामले को उठाया भी। लेकिन करीब डेढ़ साल पहले ही इस योजना पर ग्रहण लग चुका है। वर्तमान वेन्यू में हाथी घास उग आया है। और यह स्थान अब साइंस सिटी के लिए चिन्हित कर दिया गया है। इस प्रकार योजना पर पानी फिर गया है।

क्या कहते हैं कोच

बिहार हॉकी एसोसिएशन के कोच रौशन कुमार का कहना है कि इस बारे में अब क्या बात होगी जब पूरा प्लान ही चेंज कर दिया गया है। हां, यह सरकार की विफलता जरूर है प्रदेश में हॉकी का एक भी स्टेडियम खिलाडि़यों को नसीब नहीं है। फिलहाल एसोसिएशन किसी प्रकार से बीएमपी- भ् में मिनी ग्राउंड पर खिलाडि़यों को तैयार करता है। अभ्यास भी यहीं होता है।

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कुश्ती

यह सबसे पारंपरिक खेलों में से एक है। बिहार में इसकी एक खास पहचान रही है। कई खिलाड़ी बिहार केशरी के सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं। लेकिन बात करें कि कुश्ती की ग्राउंड के बारे में तो पता जानकर हैरानी होती है कि राजधानी में एक भी ग्राउंड नहीं है। बिहार कुश्ती एसोसिएशन के महासचिव कामेश्वर सिंह ने बताया कि न तो पुरूषों और न ही महिलाओं के लिए कोई ग्राउंड है। दूसरी समस्या यह है कि अब इस खेल में मिट्टी की बजाय मैट पर खेलने की परंपरा हो गई है। इसके लिए मोटी धन राशि की जरूरत पडे़गी। लेकिन सरकार इसके लिए गंभीर नहीं है।

बीएमपी तक सीमित

कुश्ती की बात करें तो बीएमपी क्0 में एक छोटे से ग्राउंड पर खिलाडि़यों द्वारा प्रैक्टिस किया जाता है। सभी खिलाड़ी बीएमपी के ही जवान है। ऐसे में यह पारंपरिक खेल हाशिये पर है। इस स्थिति में नए खिलाडि़यों की एक पीढ़ी का तैयार होना दूर की कौड़ी है।

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फुटबॉल

इस खेल से भी बिहार का पुराना नाता रहा है। लेकिन अन्य खेलों क भांति इस खेल के लिए भी राजधानी की स्थिति दयनीय हो गई है। कभी गांधी मैदान कॉमन स्पोर्टस ग्राउंड हुआ करता था। इसके अलावा गर्दनीबाग में स्पोट्स ग्राउंड है। लेकिन समस्या यह है कि यहां तीन से चार माह बारिश का पानी ही जमा रहता है। इसके कारण खिलाडि़यों को ग्राउंड नहीं मिल पाता है। न्यू पुलिस लाइन सबसे अच्छा है। लेकिन यह बीएमपी के अधीन है।

एथलेटिक्स

एथलेटिक्स सबसे पुराना और शरीर को स्वस्थ रखने के लिए सबसे अच्छा अभ्यास है। लेकिन राजधानी में इसके लिए चिन्हित पाटलिपुत्र स्पोर्टस काम्पलेक्स एथलेटिक्स खिलाडि़यों को नहीं मिल रहा है। जबकि यहां मार्डन ट्रैक बनाया गया है। यहां अभ्यास के लिए सुविधा आदि है। इसके अलावा फिजिकल कॉलेज कैंपस में भी इसके लिए मिनी स्टेडियम बना है। लेकिन वर्तमान समय में यह देखरेख की अभाव में एथलेक्टिस के लिए मैट आदि सालों से रखे- रखे खराब हो रहा है।

कोच के अभाव में क्या करें

मास्टर्स एथलेटिक्स संघ के महासचिव राम रतन ने बताया कि राजधानी में मिथलेश स्टेडियम, जो कि बीएमपी के अधीन है और दूसरा पाटलिपुत्र स्पोर्टस काम्पलेक्स में एथलेटिक्स की सुविधा है। लेकिन केवल पाटलिपुत्र स्टेडियम में कोच के अभाव में यह किसी को उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है।

कोच की समस्या

यहां हर खेल के लिए चाहे हॉकी की हो, कुश्ती की हो या फुटबॉल ,राजधानी में भी इन खेलों के लिए प्रशिक्षित कोच का अभाव है। यही वजह है कि नई पीढ़ी के खिलाडि़यों को सुनियोजित प्रशिक्षण नहीं मिल पा रहा है।