पटना (ब्यूरो)। अगर आपसे ये कहें कि राज्य के सभी संग्रहालयों में पुरावशेष के प्रभार संग्रहालय अध्यक्षों के पास नहीं है। और कई संग्रहालय चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी और लिपिक के सहारे चल रहा है तो सुनकर आश्चर्य होगा, मगर ये हकीकत है। पुरावशेष के प्रभार के लिए तकनीकी पदाधिकारी की नियुक्ति कला संस्कृति विभाग की ओर से की जाती रही है। तकनीकी पदाधिकारी संग्रहालय के अध्यक्ष एवं निदेशक भी होते हैं। इसके लिए एक विशेष रूप से ज्ञान होना आवश्यक होता है। बिहार संग्रहालय सेवा शर्त के अनुसार तकनीकी पदाधिकारियों के लिए प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरात्तव में विशेषज्ञता प्राप्त व्यक्ति ही नियुक्त किए जा सकते हैं। लेकिन बिहार के कई संग्रहालय में तकनीकी पदाधिकारी के सेवा निवृत्त होने के बाद अयोग्य लोगों को ही चार्ज दे दिया गया है। ।
चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी के प्रभार में संग्रहालय
पुरावशेष के विषय में जानकारी न होने के बावजूद कई संग्रहालयों में तकनीकी पदाधिकारियों द्वारा लापरवाही एवं लालछीत शाही के चलते विषय के जानकारों को प्रभार नहीं देकर लिपिक एवं चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी को प्रभार दे दिया जा रहा है। उन्हें न तो सही ढंग से पुरावशेष की जानकारी होती है न ही वे सही ढंग से रखरखाव कर सकते हैं। कला संस्कृति विभाग द्वारा संचालित ऐसे कई संग्रहालयों में पुरावशेष एवं कला वस्तुओं की प्रभार किसके जिम्मे है ये किसी को पता ही नहीं है। कई तकनीकी पदाधिकारी रिटायर्ड हो गए, मर गए लेकिन उनके जिम्मे जो सामग्री का प्रभार था वे उन्हीं के साथ चला गया। सूत्रों की माने तो कई संग्रहालय अध्यक्ष दबंगई के बल पर पुरावशेष का प्रभार नहीं ग्रहण किए। और लिपिक एवं चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी को प्रभार लेने को मजबूर कर दिए।
पटना संग्रहालय में भी नहीं है किसी के पास प्रभार
पटना संग्रहालय जिसे देखने के लिए बिहार ही नहीं देश - विदेश से लोग आते हैं। मगर संग्रहालय में रखे पुरावशेष का प्रभार किसी के पास नहीं है। इसके साथ ही महाराजा धीराज लक्ष्मेश्वर सिंह संग्रहालय दरभंगा, चन्द्रधारी संग्रहालय दरभंगा, चेचर संग्रहालय हाजीपुर, सीताराम उपाध्याय संग्रहालय बक्सर, भागलपुर संग्रहालय, बाबा कारू संग्रहालय सहरसा किसी संग्रहालय अध्यक्ष के पास नहीं है।
क्या कहता है नियम
राज्य सरकार के नियमावली के अनुसार किसी भी पदाधिकारी या कर्मचारी का स्थानांतरण जहां होता है उस संग्रहालय के कर्मचारी या पदाधिकारी को प्रभार देना अनिवार्य है। जिसके बाद नए पद स्थापित जगह पर वेतन मिलना शुरू होगा। लेकिन राज्य के सरकारी संग्रहालयों में इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं देखने को मिल रही है। सैकड़ो तकनीकी पदाधिकारी संग्रहालय से स्थानांतरित और रिटायर्ड हुए मगर सेवा के दौरान बिना प्रभार लिए ही सभी सुविधा मिलती रही। एक्सपर्ट की मानें तो देश में किसी भी संग्रहालय में इस तरह की व्यवस्था नहीं है कि बिना तकनीकी विशेषज्ञ के प्रभार में सामग्री हो।
केस 1
कला संस्कृति विभाग के टेक ओवर करने के कुछ सालों बाद चन्द्रधारी संग्रहालय का प्रभार मंगल दास नामक फोटोग्राफर को दिया गया। प्रभार मिलने के कुछ माह बाद ही ट्रांसफर पटना संग्रहालय में हो गया। पांच साल पहले मंगल दास रिटायर्ड हो गए। उसके के बाद कई संग्रहालय अध्यक्ष आए बिना प्रभार के ही चले गए।
केस 2
बिहार से झारखंड अलग होने के बाद पटना संग्रहालय के एक पदाधिकारी झारखंड चले गए। कई दशक गुजरने के बाद भी उनसे प्रभार नहीं लिया गया। अगर इस तरह विभाग की रवैया रहा तो आने वाले समय में पुरावशेष की जानकारी देने वाला कोई नहीं होगा।
केस 3
बेगुसराय संग्रहालय का प्रभार आज से 20 साल पहले एक लिपिक को दिया गया। जिसका स्थानांतरण 10 साल पहले दूसरे संग्रहालय में हो गया। लेकिन आज भी बेगुसराय संग्रहालय के पुरावशेष का प्रभार उसी लिपिक के पास है। जबकि पिछले 10 सालों में कई संग्रहालय अध्यक्ष आए और गए।
केस 4
सीताराम उपाध्याय बक्सर संग्रहालय का प्रभार तकनीकी पदाधिकारी के रिटायर्ड होने के बाद संग्रहालय के एक लिपिक को दिया गया। जो संग्रहालय नियमावली के खिलाफ है।
केस 5
भागलपुर एवं सहरसा म्यूजियम के पुरावशेष का प्रभार संग्रहालय अध्यक्ष चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी को सौंप दिए। बताते चलें कि चतुर्थवर्गीय कर्मचारी अब रिटायर्ड भी हो गए है। इस तरह इन दोनो संग्रहालय में पुरावशेष का जिम्मा किसी के पास नहीं है।
गायब हो रहे हैं दुर्लभ सामग्री
तकनीकी पदाधिकारियों के पास पुरावशेष के प्रभार नहीं होने के चलते राज्य के कई संग्रहालय से दुर्लभ पुरावशेष गायब हो रहे है। क्योंकि इसकी सूची तो वर्तमान संग्रहालय अध्यक्ष के पास है न ही कला संस्कृति विभाग के पास।
जिस संग्रहालय में तकनीकी पदाधिकारी नहीं है वहां जल्द नियुक्ति प्रक्रिया की जाएगी और प्रभार भी सौंपा जाएगा।
- वंदना प्रेयसी, प्रिंसिपल सेक्रेटरी आर्ट एंड कल्चर डिपार्टमेंट, बिहार सरकार