पटना ब्यूरो। सुहागिन महिलाएं अखंड सुहाग की कामना से गुरुवार को ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या में रोहिणी नक्षत्र व धृति योग के साथ शनि जयंती के सुयोग में वट सावित्री की पूजा की। पटना के विभिन्न इलाके, मंदिरों व वट वृक्ष के पास श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी थी। कालीघाट, पाटिपुल घाट समेत कई घाटों पर गंगा स्नान के लिए लोगों की भीड़ दिखी। महिलाएं सोलह श्रृंगार कर वट वृक्ष की पूजा-अर्चना कर उसकी परिक्रमा के बाद पंडित से स्कन्द पुराण के प्रभास खंड की कथा सुनी। गुरुवार को वट सावित्री व्रत के दिन शनि जयंती का सुयोग होने से शनि, मंगल और राहू के अशुभ प्रभाव से छुटकारा के लिए श्रद्धालुओं ने बरगद के साथ पीपल व समी की पूजा-परिक्रमा की।
लगाया मंगल टीका
आचार्य राकेश झा ने बताया कि वट सावित्री का पुनीत व्रत स्त्रियों के लिए सौभाग्यवर्धक, पाप हारक, दु:ख प्रणाशक और धन-धान्य प्रदान करने वाला होता है। इसलिए व्रती महिलाओं ने वट वृक्ष की विधिवत अक्षत, चंदन, पुष्प, धुप-दीप, नैवेद्य, पान-सुपारी आदि से पूजा कर परिक्रमा करते हुए रक्षा सूत्र बांधा और आशीष मांगी। सुहागिनों ने आपस में एक-दूसरे को सिंदूर से मंगल टीका लगाकर व्रत को पूर्ण की। महिलाएं अपनी सामथ्र्य के अनुसार सामूहिक एवं व्यक्तिगत रूप से वट की पूजा की। व्रत-उपवास कर सोलह श्रृंगार के बाद वट वृक्ष की विधिवत पूजा व परिक्रमा के पश्चात महिलाओं ने पंडित से पौराणिक कथाओं का श्रवण कर उनको दक्षिणा देकर आशीर्वाद ली। मिथिलांचल से जुड़ी नव विवाहित महिलाएं विधि विधान से इस पूजा संपन्न की। कथा के बाद अंकुरित चने, गुड़ व ऋ तुफल का प्रसाद श्रद्धालुओं में बांटा। पूजन के बाद पति को पंखा झल कर उनसे आशीष भी पाई।
शुभकारी योग में वट सावित्री व्रत
पंडितों ने बताया कि वट सावित्री पूजा पर ग्रह-गोचरों का शुभकारी संयोग बना था। ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को शनि जयंती का भी योग बना था। वट वृक्ष के जड़ में पूजा करने से अखंड सुहाग, सर्व मनोकामना की पूर्ति एवं बच्चों की निरोग काया व विकास का वरदान मिलता है। ब्रह्मवैवर्त्त व स्कन्द पुराण के अनुसार वट सावित्री का व्रत में श्रद्धा, भक्ति व निष्ठा से वट वृक्ष की पूजा व परिक्रमा करने से सुहागिनों को अखंड सुहाग, पति की दीर्घायु, वंश वृद्धि, दांपत्य जीवन में सुख-शांति तथा वैवाहिक जीवन में आने वाले कष्ट दूर होते हैं।
मिथिलांचल की नवविवाहिताओं ने की पूजन
वट सावित्री की पूजा में पटना में रहने वाली मिथिलांचल की नवविवाहिताएं विधि विधान से वट की पूजा-अर्चना की। शादी के बाद पहली बरसाईत में पूरे दिन उपवास कर सोलह श्रृंगार कर आंगन को अरिपन से लेप कर पति-पत्नी संग में वट की पूजा नियम-निष्ठा से करने के बाद चौदह बांस से निर्मित लाल-पीला रंग में रंगा हुआ हाथ पंखा से वट वृक्ष को हवा दी। इस पूजा में आम और लीची का भोग लगाया। गुड्डा-गुडिय़ा को भी सिंदूर लगाया। अहिबातक पातिल में पूजन की दीपक जलायी गई। वर पूजा के बाद नव दंपती को बड़े-बुजर्ग महिलाएं धार्मिक व लोकाचार की कई कथाएं सुनी। उसके बाद पांच सुहागिन महिलाएं नवविवाहिता के साथ खीर, पूरी व ऋ तुफल का प्रसाद ग्रहण किया। आगंतुक महिला श्रद्धालु एवं कथावाचिका को अंकुरित चना, मुंग, फल, बांस का पंखा देकर उनसे आशीर्वाद पायी।