पटना ब्यूरो। फाइलेरिया मुक्त बिहार बनाने के सामूहिक रणनीति के तहत राज्य सरकार कार्य कर रही है। इसके लिए चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के साथ-साथ अन्तर्विभागीय सहभागिता, सामुदायिक सहयोग के माध्यम से फाइलेरिया उन्मूलन हेतु प्रयास किये जा रहें हैं। इसी क्रम में फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के सम्बन्ध में मीडिया की सक्रिय एवं महत्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा करने के लिए चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग, बिहार एवं ग्लोबल हेल्थ स्ट्रेटजीज द्वारा पटना में मीडिया कार्यशाला का आयोजन किया गया। अपर निदेशक सह राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी, फाइलेरिया, डॉ। परमेश्वर प्रसाद ने बताया कि 10 अगस्त से से राज्य के 13 जिलों में मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन कार्यक्रम शुरू किया जायेगा। लगभग 3.5 करोड़ लोगों को फाइलेरिया रोधी दवाएं खिलाई जायेगीं।
इन जिलों में खिलाई जाएगी दवांए
कार्यक्रम के तहत 8 जिलों (भोजपुर, बक्सर, किशनगंज, मधेपुरा, मधुबनी, नालन्दा, नवादा और पटना ) में लाभार्थियों को 2 दवाएं यानी अल्बेडाजोल और डीईसी खिलाई जाएगी। जबकि, शेष 5 जिलों (दरभंगा, लखीसराय, पूर्णिया, रोहतास और समस्तीपुर) में 3 दवायें अल्बेडाजोल, डीईसी और आईवरमेक्टिन खिलाई जायेगी। 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और अति गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को छोड़कर सभी लोगों को उम्र के अनुसार फाइलेरिया रोधी दवायें प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों के सामने खिलाई जायेंगी।
ब्लॉक में रैपिड रेस्पोंस टीम रहेगी तैनात
उन्होंने कहा कि फाइलेरिया रोधी दवाएं पूरी तरह सुरक्षित हैं। रक्तचाप, शुगर, अर्थरायीटिस या अन्य सामान्य रोगों से ग्रसित व्यक्तियों को भी ये दवाएं खानी हैं। सामान्य लोगों को इन दवाओं के खाने से किसी भी प्रकार के दुष्प्रभाव नहीं होते हैं और अगर किसी को दवा खाने के बाद मितली आये, चक्कर जैसे लक्षण होते हैं तो यह शुभ संकेत है। इसका मतलब है कि हैं कि उस व्यक्ति के शरीर में फाइलेरिया के परजीवी मौजूद हैं, जोकि दवा खाने के बाद मर रहें हैं। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम के दौरान किसी लाभार्थी को दवा सेवन के पश्चात किसी प्रकार की कोई कठिनाई प्रतीत होती है तो उससे निपटने के लिए हर ब्लॉक में रैपिड रेस्पोंस टीम तैनात रहेगी।
सामाजिक भेदभाव सहना
मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी, क्षेत्रीय कार्यालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार डॉ। रवि शंकर सिंह ने बताया कि भारत सरकार के दिशा-निर्देशानुसार फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए राज्य स्तर से जिला स्तर और प्रत्येक विकास खंड तक समन्वय बनाकर कार्य किया जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के राज्य एनटीडी समन्वयक डॉ। राजेश पाण्डेय ने बताया कि फाइलेरिया या हाथीपांव, एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या है। यह रोग मच्छर के काटने से फैलता है। डब्लूएचओ के अनुसार फाइलेरिया दुनिया भर में दीर्घकालिक विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक है। फाइलेरिया के कारण चिरकालिक रोग जैसे: हाइड्रोसील (अंडकोष की थैली में सूजन), लिम्फेडेमा (अंगों में सूजन) और दूधिया सफेद पेशाब (काईलूरिया) से ग्रसित लोगों को अक्सर सामाजिक भेदभाव सहना पड़ता है, जिससे उनकी आजीविका व काम करने की क्षमता भी प्रभावित होती है।
लोगों में जागरूकता को मीडिया करें पहल
इस अवसर पर फाइलेरिया सपोर्ट नेटवर्क के सदस्यों ने अपने अनुभव मीडियाकर्मियों से साझा किया। उन्होंने फाइलेरिया से होने वाली परेशानियों को साझा करते हुए कहा कि फाइलेरिया से ग्रसित होने के बाद भी वह आम लोगों को एमडीए में दवा सेवन के विषय में जागरूक करती हैं। अंत में ग्लोबल हेल्थ स्ट्रेटजीज के प्रतिनिधि अनुज घोष ने बताया कि वे अपने समाचार-पत्रों और चैनल के माध्यम से लोगों को प्रेरित करें कि वे मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन कार्यक्रम में फाइलेरिया रोधी दवाओं का सेवन स्वास्थ्यकर्मियों के सामने ही अवश्य करें। कार्यशाला में, राज्य स्तरीय चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के पदाधिकारियों के साथ ही, स्थानीय मीडिया सहयोगी, विश्व स्वास्थ्य संगठन, पीरामल स्वास्थ्य, प्रोजेक्ट कंसर्न इंटरनेशनल, सीफार, लेप्रा एवं ग्लोबल हेल्थ स्ट्रेटजीज के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे।