पटना ब्‍यूरो। Pitru Paksha 2024: भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा 18 सितंबर बुधवार को अगस्त्य मुनि को खीरा, सुपाड़ी, कांस के फुल से सनातन धर्मावलंबी तर्पण करेंगे। फिर आश्विन कृष्ण प्रतिपदा 19 सितंबर गुरुवार से पितरों को तिल, जौ से तर्पण किया जाएगा। ज्योतिषाचार्य राकेश झा ने कहा कि कुंडली से पितृ दोष के शांति, पुरखों के आशीर्वाद, पितरों को तृप्ति के लिए पितृपक्ष में तर्पण, पिंडदान कर ब्राह्मण भोजन कराया जाएगा। इस बार पितृपक्ष में द्वितीया तिथि के क्षय होने से पितरों की कृपा पाने के लिए पुरे 14 दिन मिलेंगे। मान्यता है कि पितरों को जब जल और तिल से पितृपक्ष में तर्पण किया जाता है, तब उनकी आत्मा तृप्त होती है और उनका आशीष कुटुंब को कल्याण के पथ पर ले जाता है।

पितृपक्ष में तीन पुरखों का होगा तर्पण
कर्मकांड मर्मज्ञ आचार्य राकेश झा ने वैदिक कर्मकांड पध्दति के हवाले से बताया कि पितृपक्ष में पिता, पितामह, प्रपितामह तथा मातृपक्ष में माता, पितामही, प्रपितामही इसके अलावे नाना पक्ष में मातामह, प्रमातामह, वृद्धप्रमातामह वहीं नानी पक्ष में मातामही प्रमातामही, वृद्ध प्रमातामही के साथ-साथ अन्य सभी स्वर्गवासी सगे-संबंधियों का गोत्र एवं नाम लेकर तर्पण किया जाएगा। विष्णु पुराण के अनुसार श्राद्ध से तृप्त होकर पितृगण समस्त कामनाओं से हमें तृप्त करते हैं।

इस तिथि को करें तर्पण व श्राद्ध
जिन लोगों की मृत्यु के दिन की सही जानकारी ज्ञात न हो उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि को करना चाहिए। वहीं अकाल मृत्य़ु होने पर भी अमावस्या के दिन ही श्राद्ध करना चाहिए। जिसने आत्महत्या की हो या जिनकी हत्या हुई हो ऐसे लोगों का श्राद्ध चतुर्थी तिथि को किया जाना चाहिए। पति जीवित हो और पत्नी की मृत्यु हो गई हो, तो उनकी श्राद्ध नवमी तिथि को करना चाहिए। वहीं साधु एवं सन्यासियों का श्राद्ध एकादशी तिथि को किया जाता है। बाकि सभी का उनकी तिथि के अनुसार किया जाता है।

समर्पण से तर्पण दिलाएगी पितृ ऋण से मुक्ति
पंडित झा के अनुसार श्राद्ध को ही पितरों का यज्ञ कहते है। शास्त्रों में तीन ऋण बताए गए हैं- पितृ ऋण, देव ऋण और गुरु ऋण। ये तीन ऋण बहुत महत्व रखते है। मनुष्य लोक में पिता मृत्यु समय अपना सब कुछ पुत्र या पुत्री को सौंप देते हैं। इसलिए संतान पर पितृ ऋण होता है। पितृपक्ष में अपने पितरों को श्रद्धा सुमन अर्पित करना चाहिए। पितृपक्ष में जल और तिल से तर्पण करना चाहिए। इस दौरान किए गए श्राद्ध कर्म और दान-तर्पण से पितरों को तृप्ति मिलती है । वे खुश होकर अपने वंशजों को सुखी और संपन्न जीवन का आशीर्वाद देते है। पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म करने की परंपरा हमारी संस्कृति विरासत है। पितृों तक केवल दान ही नहीं बल्कि हमारे भाव भी पहुंचते हैं।

2 अक्टूबर को होगा पितृ विसर्जन
आश्विन कृष्ण प्रतिपदा 19 सितंबर गुरुवार से 2 अक्टूबर आश्विन कृष्ण अमावस्या बुधवार तक पितृपक्ष रहेगा। एक अक्टूबर मंगलवार को पितृपक्ष का चतुर्दशी तिथि है। इस दिन शस्त्रादि से मृत्यु को प्राप्त हुए पितरों का श्राद्ध किया जाएगा। इसके बाद 2 अक्टूबर गुरुवार को अमावस्या तिथि में स्नान-दान सहित सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध एवं पितृ विसर्जन महालया पर्व के रूप में संपन्न होगा। इस तिथि को अमावस्या सूर्योदय से लेकर देर रात 11.14 बजे तक है। इसीलिए सर्वपितृ का तर्पण 2 अक्टूबर को करते हुए ब्राह्मण भोजन कराकर पितरों की विदाई किया जाएगा।

पितृ पक्ष एक नजर में
अगस्त्य ऋषि तर्पण- बुधवार 18 सितंबर
पितृपक्ष आरंभ (प्रतिपदा) - गुरुवार 19 सितंबर
चतुर्थी श्राद्ध - शनिवार 21 सितंबर
मातृ नवमी - गुरुवार 26 सितंबर
इंदिरा एकादशी- शनिवार 28 सितंबर
चतुर्दशी श्राद्ध- मंगलवार 01 अक्टूबर
अमावस्या, महालया व सर्वपितृ विसर्जन - बुधवार 2 अक्टूबर