पटना ब्‍यूरो। हर एक लेखक, पत्रकार और वक्ता-व्याख्याता को अवश्य ही 'शब्द-साधना' करनी चाहिए। 'शब्द-साधना' से तात्पर्य यह है कि वह, प्रयोग में आने वाले प्रत्येक शब्द का, उसके लिंग सहित अर्थ जाने और अपना शब्द-सामर्थ्य बढ़ाए। एक कुशल लेखक की उच्च प्राथमिकता उसकी भाषा ही होती है। तभी घनीभूत भाव को अर्थ मिलते हैं।

यह बातें शुक्रवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में विगत 1 सितम्बर से आयोजित हिन्दी पखवारा-सह-पुस्तक चौदस मेला' के छठे दिन आयोजित हुई 'कथा-कार्यशाला' की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि कथा में रोचकता और उद्देश्य की गम्भीरता आवश्यक है। कहानी का एक उद्देश्य पाठकों के मन का रंजन तो है, पर यही एक मात्र उद्देश्य नहीं, अपितु जिससे लोक-मंगल हो, समाज में गुणात्मक परिवर्तन हो, पाठकों पर सकारात्मक प्रभाव पड़े, यह है। अस्तु एक कवि-कथाकर को समाज के हित को सर्वोच्च प्राथमिकता में रखकर रचना करनी चाहिए।

कार्यशाला में एक आचार्य की भूमिका में उपस्थित भारतीय प्रशासनिक सेवा के अवकाश प्राप्त अधिकारी और वरिष्ठ साहित्यकार डा उपेंद्रनाथ पाण्डेय ने कथा-सृजन के विभिन्न आयामों पर विस्तार से चर्चा करते हुए, शिल्प, शैली, कथानक, कथोपकथन, भाषा, कथारंभ से लेकर, उसके विकास, पात्रों के चरित्र-चित्रण, उत्कर्ष और अंत तक की लेखन-विधि से प्रतिभागियों को परिचित कराया।

सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, डा भावना शेखर, ई अशोक कुमार, बाँके बिहारी साव, डा शालिनी पाण्डेय, प्रेमलता सिंह, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, डा आर प्रवेश, पंकज प्रियम, ई अवध बिहारी सिंह, नन्दन कुमार मीत, मयंक मानस, अल्पना कुमारी, डौली कुमारी, महफ़ूज़ आलम, रवि रंजन, डा चंद्रशेखर आज़ाद, डा एम वायी अराफ़ात, विनय चंद्र, श्री बाबू आदि साहित्यकारों ने प्रतिभागिता दी।