पटना ब्‍यूरो। प्रत्येक व्यक्ति को, चाहे वह विद्यार्थी हो, शिक्षक हो अथवा और कुछ भी, सभी साक्षरों को पुस्तकों से जुडऩा चाहिए। यही सबकी सच्ची और अच्छी संगिनी और मार्ग-दर्शिका होती हैं। यह केवल ज्ञान ही नहीं प्रदान करती, बल्कि दुखी मन का रंजन भी करती है और थके हुओं को नया उत्साह और नयी ऊर्जा प्रदान करती है।
यह बातें रविवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आरंभ हुए, हिन्दी पखवारा एवं पुस्तक चौदस मेला के उद्घाटन के अवसर पर मुख्य अतिथि राज्य उपभोक्ता संरक्षण आयोग, बिहार के अध्यक्ष न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कही। समारोह का उद्घाटन करते हुए, पूर्व केंद्रीय मंत्री पद्मभूषण डा सी पी ठाकुर ने कहा कि, हिन्दी के विकास में सरकार की भूमिका तो है ही, किंतु इसके उन्नयन में सभी भारतवासियों का योगदान आवश्यक है.सभा की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डॉ। अनिल सुलभ ने कहा कि, 14 सितम्बर 1949 को भारत की संविधान सभा ने हिन्दी को भारत सरकार के कामकाज की भाषा घोषित की थी, जिसके उपलक्ष्य में संपूर्ण भारतवर्ष में इस तिथि को हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। किंतु इसका कठोर सत्य यह है कि, संविधान सभा के इसी निर्णय के साथ जोड़े गए दो परंतुकों के कारण और बाद के दिनों में शासन में बैठे हिन्दी के प्रति द्रोह रखने वाले लोगों ने इसे आज तक कार्यरूप में परिणत नहीं होने दिया। इस अवसर पर
पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि हिन्दी देश की सबसे अधिक बोली जाने वाली और विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी भाषा है। इस अवसर पर बिहार के पूर्व अपर सचिव रमेश प्रसाद रंजन की पुस्तक अध्यात्म की ओर सम्मेलन द्वारा प्रकाशित कवि अमरेन्द्र नारायण की पुस्तक उत्साह तुम्हारा अभिनन्दन (द्वितीय संस्करण) तथा राम जानकी संस्थान द्वारा प्रकाशित सकारात्मक भारत-उदय के तीसरे खंड का लोकार्पण भी किया गया।