पटना ब्यूरो। संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी और बांग्ला के उद्भट विद्वान आचार्य राम दहिन मिश्र काव्य-शास्त्र के भी मनीषी मर्मज्ञ थे। काव्य-दर्पण और कवि-विमर्श आदि अपने आलोचना-ग्रंथ में उन्होंने काव्य-शास्त्र और कवि की महिमा का अत्यंत ही हृदय-स्पर्शी चित्रण किया है। अंग्रेजी के सभी महान कवियों का गहरा अध्ययन रखने वाले मिश्र जी काव्य-शास्त्र में भारत के शास्त्रीय स्वरूप को ही उचित और महत्वपूर्ण मानते थे। उन्होंने बाल-साहित्य और पाठ्य-पुस्तकों के लेखन में भी आचार्य राम लोचन शरण की भांति बड़ा योगदान दिया। यह बातें सोमवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित पृथ्वी-दिवस और जयंती समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डॉ। अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि पृथ्वी को केवल पर्यावरण-प्रदूषण से ही नहीं, जन-मानस में तेजी से फैल रहे मानसिक-प्रदूषण से भी खतरा है। बल्कि यह अधिक खतरनाक है, क्योंकि समाज में सभी प्रकार के प्रदूषणों के पीछे मनुष्य का मानसिक-प्रदूषण ही है। आतंकवाद और अतिवाद का संकट झेल रहा संसार आज तीसरे विश्व-युद्ध के किनारे खड़ा है। भारतीय संस्कृति और विश्व-बंधुत्व के सिद्धांत को अपना कर ही, पृथ्वी की रक्षा की जा सकती है। मौके पर दिव्यांग शिक्षक विपिन बिहारी, बिहार के पूर्व नि:शक्तता आयुक्त डा शिवाजी कुमार, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, डा विनोद कुमार बरबिगाहिया, कुमार अनुपम, कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।