पटना ब्‍यूरो। डा जगदीश पाण्डेय पेशे से अभियन्ता थे। राज्य सरकार में अपनी सेवा के शीर्ष पद से अवकाश लेने के पश्चात उन्होंने अपना शेष जीवन लोक-कल्याणकारी कार्यों में लगाया। कला, संगीत और साहित्य समेत सभी सारस्वत विधाओं में उनकी गहरी अभिरुचि थी। वे साहित्य और साहित्यकारों के अत्यंत मूल्यवान पोषक थे.उन्होंने अपनी संपदा का पूरी निष्ठा से सारस्वत सेवाओं के लिए उपयोग किया.वे अपनी उदारता और सारस्वत सेवाओं के लिए सदैव स्मरण किए जाते रहेंगे। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन जिन दिनों मृत प्राय हो चला था, उन्होंने संजीवनी देने का कार्य किया.सम्मेलन के संकट के दिनों में वे ढाल बन कर खड़े हुए।
बुधवार की संध्या, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभागार में डा पाण्डेय की जयंती पर आयोजित समारोह और लघुकथा गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने यह बातें कही। डा सुलभ ने कहा कि वे सम्मेलन के कठिन-काल थे, जिससे उबारने के लिए, किसी जगदीश पाण्डेय जैसे उदार और समर्थ व्य1ित की आवश्यकता थी।.सम्मेलन को पटरी पर लाने के लिए उन्हें अनेक प्रकार के व्यय-भार वहन करने पड़े थे.अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि पाण्डेय जी जितने उदार थे, उतने ही उदार उन पर परमात्मा भी थे। इसीलिए उन्होंने दोनों हाथों से धन अर्जित किए और उसी प्रकार मु1त-हस्त से समाज, साहित्य और कला-संगीत के लिए लुटाया भी। साहित्य सम्मेलन और साहित्यकारों के लिए किए गए कार्यों के लिए वे सदैव स्मरण किए जाते रहेंगे। मौके पर
वरिष्ठ साहित्यकार डा मेहता नगेंद्र सिंह, डा पंकज पाण्डेय, पत्रकार संजय कुमार शुक्ल , चंदा मिश्र, मनोज कुमार बच्चन तथा डा शालिनी पाण्डेय ने भी अपने विचार व्यक्त किए।