पटना ब्यूरो। एक सफल राजनेता की बुनियाद छात्र जीवन में ही रखी जाती है। नेता इस पड़ाव में जो संघर्ष करते हैं, वही आगे चलकर कद्दावर या सर्वमान्य नेता की उपमा देता है। मौजूदा दौर में देश के राष्ट्रीय स्तर के कद्दावर नेता भी अपनी राजनीतिक सफर की शुरुआत छात्र जीवन से ही किए थे। लेकिन पटना विश्वविद्यालय के छात्र नेताओं को देखें तो इनके हाथ कोई भी ऐसी बड़ी सफलता नहीं है। हो भी कैसे जहां पिछले छह माह से छात्र संघ भंग है। जबकि पटना विश्वविद्यालय परिसर का नाता सिर्फ शिक्षा और शोध से ही नहीं है बल्कि राजनीतिक चेतना से भी है। राजनीति की नई पौध को भी पनपने का मौका मिलता रहा है। छात्रसंघ इस पौध की नर्सरी रहा है। सियासत की दुनिया में आज बहुत से ऐसे कद्दावर नेता हैं जिनका अंकुरण विश्वविद्यालय परिसरों में ही हुआ। यहीं राजनीति का ककहरा पढ़ा। अफसोस कि राजनीति की पाठशाला अब बंजर हो रही है। पढ़े रिपोर्ट।
पीयू छात्र संघ छह महीने से भंग
पटना विश्वविद्यालय में छह महीने से अधिक समय से छात्र संघ भंग है। पिछली छात्र संघ को एक साल का कार्यकाल भी पूरा करने का अवसर नहीं मिला और आठ महीने में ही कार्यकाल समाप्त हो गया है। ऐसे में सबसे बड़ी समस्या स्टूडेंट और एडमिनिस्ट्रेशन के बीच कम्युनिकेशन गैप का है। विश्वविद्यालय के दरभंगा हाउस के स्टूडेंट काउंसलर धीरज कुमार ने कहा कि छात्र संघ चुनाव होने चाहिए और छात्र संघ भंग होने से कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
फंड का नहीं हो रहा यूज
छात्रसंघ के भंग होने से न केवल छात्रों को अपनी बात रखने का अधिकारिक प्रतिनिधित्व मिल पा रहा है। साथ ही छात्र हित के लिए किए जाने वाले कार्यों के लिए मौजूद फंड का भी उपयोग नहीं हो रहा है। जानकारी हो कि 2022-23 वित्तिय वर्ष का फंड यूज किया गया। इसके बाद का फंड पड़ा हुआ है। सूत्रों का कहना है कि छात्रसंघ के पास वार्षिक रूप से करीब छह लाख का बजट होता है जबकि एक लंबे अरसे से चुनाव नहीं होने से करीब एक करोड़ रुपये का फंड था।
पीयू के 16 छात्र जो बने बिहार के सीएम
पटना विश्वविद्यालय और बिहार की राजनीति में छात्रसंघ का चुनाव ऐतिहासिक रहा है। यहां से 23 में से 16 मुख्यमंत्री पीयू से हैं, लेकिन सिर्फ लालू यादव ही ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो छात्रसंघ से आए हैं। आजादी के 75 साल में कुल 62 साल पटना विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं। इसमें बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह से लेकर वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी शामिल हैं।
1956 में छात्रसंघ ने जन्म लिया
पटना विश्वविद्यालय छात्रसंघ की स्थापना 1956 में हुई थी। तब से लेकर 1968 तक अप्रत्यक्ष रूप से छात्रों का चुनाव होता था। बाद में छात्रों की मांग के बाद 9 मार्च 1970 को पहली बार प्रत्यक्ष रूप से चुनाव कराया गया। पटना विश्वविद्यालय में जब पहली बार चुनाव कराया गया था, तब लालू प्रसाद यादव महासचिव बने थे। उसके अगले साल फिर चुनाव हुआ तो वे अध्यक्ष पद के लिए खड़े हुए लेकिन उन्हें कांग्रेस नेता रामजतन सिन्हा ने हराकर अध्यक्ष बने और नरेंद्र सिंह महासचिव। तो 1973 में लालू प्रसाद यादव एक बार फिर से अध्यक्ष पद के लिए खड़े हुए और जीत गए। उस चुनाव में बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी महासचिव बने और बीजेपी से केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद सहायक महासचिव बने थे। लेकिन पीयू के छात्र राजनीति में अपराध बढऩे लगा और ऐसे हालात में विश्वविद्यालय ने 1984 के बाद चुनाव कराना छोड़ दिया।
28 साल बाद 2012 में हुआ था चुनाव
1984 के बाद लगातार छात्रसंघ चुनाव की मांग होती रही। यह संघर्ष 28 सालों तक चलता रहा। फिर 2012 में पटना विश्वविद्यालय का चुनाव कराया गया। इस चुनाव में बीजेपी के छात्र संगठन एबीवीपी के कैंडिडेट आशीष कुमार सिन्हा अध्यक्ष, अंशुमान उपाध्यक्ष, अंशु कुमारी महासचिव और जदयू नेता अनुप्रिया पटेल सचिव बनी थी। जब से लेकर अबतक साल दर साल चुनाव होते रहा। लेकिन बीच के दो साल कोरोना की वजह से चुनाव नहीं हुए थे।
पीयू के छात्रसंघ चुनाव
1956 में पीयू छात्रसंघ की स्थापना
1968 तक अप्रत्यक्ष पद्धति से होता था चुनाव
1970 में पहली बार छात्रसंघ का प्रत्यक्ष चुनाव
1984 में हिंसा के बाद छात्रसंघ चुनाव बंद
2012 में 28 साल के बाद वापस शुरू हुआ चुनाव
2018 में 17 फरवरी को हुआ चुनाव
2019 में सात दिसंबर को हुआ छात्रसंघ चुनाव
2020-21 में कोरोना की वजह से
2022 में अक्टूबर महीने में हुआ था चुनाव
बोले-छात्र नेता
या तो छात्र संघ को एक्सटेंशन दिया जाए या नए सिरे से चुनाव कराया जाए। ताकि छात्रों की आवाज कॉलेज प्रशासन तक पहुंचती रहे। वे अपनी बात रख सके।
आनंद मोहन,अध्यक्ष,छात्रसंघ, पुसु
कोर्ट
जल्द ही छात्रसंघ का चुनाव कराया जाएगा। इसकी तैयारी विश्वविद्यालय प्रशासन कर रहा है।
-प्रो केसी सिन्हा, प्रभारी कुलपति, पीयू