पटना (ब्यूरो)। देश-विदेश के लोग पितृपक्ष के दरम्यान पितरों के ङ्क्षपड दान करने गया जी अवश्य पहुंचते। हर देश के अलग-अलग वस्त्र पहनकर ङ्क्षपडदान करने की परंपरा है। बंगाल, असम एवं पुरी से आने वाले यात्री गया जी के बने आसामी बंगाली चादर धारण कर ही ङ्क्षपडदान किया करते हैं। उक्त चादर पर विष्णु चरण छपे रहते हैं। बंगाली एवं हिन्दी भाषा में राधे-राधे एवं जय श्रीराम लिखे होते हैं। पितृपक्ष मेला में आसामी बंगाली चादर की काफी बिक्री होती है। ङ्क्षपडदानियों की मांग पूरा करने लिए गया के बुनकर दिन-रात चादर बनाने में जुटे हैं। चादर बेहतर डिजाइन और गुणवतापूर्ण हो इसका पूरा ख्याल रखा जा रहा है।

ढाई हजार प्रतिदिन बन रहा चादर

उद्योग नगरी पटवा टोली में करीब साढे नौ सौ पावर लूम इकाई संचालित है। जो जिला उद्योग गया से निबंधित है। करीब ढाई सौ पावर लूम पर प्रतिदिन ढाई हजार आसामी बंगाली चादर बन रहा है। पावर लूम पर बनकर तैयार चादर पर कुुशल कारीगरों के द्वारा विष्णु चरण की छपाई किया जाता। उसपर दूसरे कारीगर के द्वारा बंगाली एवं हिन्दी भाषा में राधे-राधे एवं जय श्रीराम सुंदर अछर में लिखा जाता। यहां कई डिजाइन में चादर तैयार किए जाते हैं। कम पैसा में बेहतर डिजाइन के चादर मिलने के वजह मांग काफी होती है। 60 से 110 रूपया में चादर मिल जाते हैं। आसामी बंगाली चादर की मांग सालों भर असम , पूरी एवं बंगाल में होता हैं। वहां के व्यापारी सप्ताह में एक दिन पटवा टोली आकर थोक भाव से चादर ले जाया करते हैं।
शुद्धता का रखा जाता ख्याल

ङ्क्षपडदानी शुद्ध वस्त्र पहनकर पितरों के ङ्क्षपडदान करें। इसके लिए पटवा टोली के बुनकर आसामी बंगाली चादर का निर्माण पूरा शुद्धता के साथ करते हैं। इसमें किसी तरह का केमिकल नहीं मिलाया जाता। धागे से पावर लूम पर बुनाई कर चादर तैयार किया जाता। द्वारिका प्रसाद पटवा , खेमचंंद प्रसाद पटवा, गिरधारी प्रसाद पटवा आदि उद्योग मालिकों का कहना है कि पितरों में नाराजगी नहीं हो। वे प्रसन्न रहेंगे तब ही हमलोगों का धंंधा फलता फूलता रहेगा। यही वजह है कि आसामी बंगाली चादर का निर्माण शतप्रतिशत शुद्धता के साथ किया जाता है। पितृपक्ष मेला शुरू होने के एक माह पूर्व से बुनकर आसामी बंगाली चादर का निर्माण कर रहे हैं। ङ्क्षपडदानियों को चदर की कमी नहीं होने देगें। ढ़ाई हजार चादर का निर्माण प्रतिदिन हो रहे हैं। आसामी बंगाली चादर की बिक्री सालों भर होती है। इसकी मांंग असम, बंगाल ,उड़ीसा एवं पूरी में काफी होती है। मेला क्षेत्र में पटवा टोली की बनी चादर चार चक्के कई वाहन प्रतिदिन जाते हैं। इसके लिए बुुनकर चादर तैयार कर अपने-अपने गोदाम में अभी से ही सुरक्षित रख रहे हैं।