पटना(ब्यूरो)। नेहस् पथ (हाईकोर्ट के पास ) पर माउंट कार्मेल हाई स्कूल के पास बीआर 1 पी 6340 नंबर की बस ाड़ी दिखी। जब इसकी पड़ताल की तब पता चला कि यह बस 21 साल पुरानी है। कार्मेल हाई स्कूल की छात्राओं को लाने-ले-जाने में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। बस का फिटनेस अपडेट नहीं है। पाल्यूशन भी फेल है। इंश्योरेंस तो एप्लीकेबल ही नहीं है। राज्य सरकार के निर्देश के अनुसार पटना शहर में 15 साल से पुराने वाहनों को चलाने की इजाजत नहीं है। 15 साल से अधिक पुराने वाहन होने के कारण इस पर इंश्योरेंस ऑनलाइन नॉट एप्लीकेबल शो हो रहा है। यह तो एक स्कूली बस का हाल है। ऐसे सैंकड़ों बसें बेली रोड समेत शहर के विभिन्न सड़कों पर दौड़ रही हैं। पटना में नौनिहालों को ढोने वाले स्कूली बसों की यह तल्ख हकीकत है। पेश है 'सेफ्टी का मीटर डाउनÓ अभियान में रियलिटी चेक।
30 सीटर पर बस पर बैठते हैं 43 बच्चे
स्कूल बस एजेंसी की हो या स्कूल की अपनी हो, ये ओवर क्राउडेड ही है। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने अपनी पड़ताल में पाया कि 30 सीटर बस 43 बच्चों को बैठाया जाता है। नियम है कि सीट के पीछे स्कूल बैग रखने की व्यवस्था हो। लेकिन जब स्कूल बैग रखने की जगह बच्चों से ही भर गई तो बैग बच्चों को कंधे पर या पैर पर रखना पड़ता है। एजेंसी द्वारा हायर बसों का कोई मानक ही नहीं है।
चेकिंग के नाम पर खानापूर्ति
पटना की ज्यादातर स्कूली बसें सुरक्षा मानकों पर खरा नहीं हैं। ट्रैफिक और परिवहन विभाग जांच के नाम पर अभियान चलाती है। इसमें केवल खानापूर्ति की जा रही है। नाम न छापने की शर्त पर परिवहन विभाग के एक कर्मचारी ने बताया कि जांच के दौरान अगर बसों की फिजिकल जांच किया जाए तो 80 फीसदी बसों को ऑफ रोड करना पड़ेगा। अभियान के दौरान अगर कागजात नहीं हो या अपडेट नहीं हों तो जुर्माना वसूल कर बसों को छोड़ दिया जाता है। नियमों पर पर्दा डाल परिवहन विभाग नजरअंदाज कर देते हैं ।

80 फीसदी बसों में स्पीड गवर्नर नहीं
सेफ्टी के मीटर डाउन अभियान के तहत दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम ने माउंट कार्मेल, नोट्रेडेम, लोयला हाई स्कूल व शिवम कॉन्वेंट की बसों की पड़ताल की । इसमें 80 फीसदी बसों में स्पीड गवर्नर नहीं मिला। इसमें लोयला, माउंट कार्मेल, संत जोसेफ की संख्या ज्यादा है। इन बसों में जीपीएस की व्यवस्था भी एजेंसी ने नहीं की है। आलम ये है कि स्पीड गवर्नर मशीन के बारे ड्राइवरों को कोई जानकारी भी नहीं है। माउंट कार्मेल स्कूल के बाहर लगे किसी भी स्कूली बस में स्पीड गवर्नर लगे नहीं मिले। स्कूल प्रशासन यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि बस स्कूल द्वारा संचालित नहीं है, एजेंसी चला रही है। पैरेंट ने एजेंसी के द्वारा हायर किया है।
आग लगी तो जल मरेंगे
लापरवाही का मामला यहीं खत्म नहीं होती है। चलती बस में यदि आग लग जाए तो हादसे का शिकार होना तय है। क्योंकि बस के अंदर फायर सेफ्टी सिलेंडर की व्यवस्था नहीं की गई है। कार्मेल स्कूल और लोयला हाई स्कूल के बाहर लगे बसों के कंडक्टर ने बताया कि हम लोग स्टाफ हैं। मालिक के निर्देश का पालन करते हैं।

बस पर न ड्राइवर का नाम न मोबाइल नंबर ही अंकित
तय नियम के अनुसार, स्कूल बस के पीछे स्कूल बस का नाम, ड्राइवर का नाम और उसका मोबाइल नंबर अंकित होना चाहिए। साथ ही बस के आगे 'ऑन स्कूल ड्यूटीÓ लिखा हो। इसके विपरीत कार्मेल स्कूल बाहर लगे बसों में इसका जिक्र नहीं किया गया है।

बस में नहीं रहते हैं टीचर
2016 में स्कूली वाहन को लेकर तत्कालीन डीएम संजय कुमार अग्रवाल ने नियम पालन करने के सख्त निर्देश दिए थे। स्कूली बसों मे बच्चों के साथ अटेंडेंट या एक टीचर का रहना आवश्यक बताया गया था। मगर पटना के अधिकांश स्कूली बसों में न तो टीचर साथ में दिखते हैं न ही अटेंडेंट।


बार-बार बदलनी पड़ती है बस
स्कूलों में बस नहीं होने पर पैरेंट अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए एजेंसी की बसों का हायर करते हैं। एजेंसी की बसों में खामियां दिखने पर बस चेंज कर देते हैं। अगर स्कूल प्रशासन की ओर से एजेंसी को हायर कर लिया जाए तो सभी झंझट खत्म हो जाएगी। कई बार लंबी दूरी होने पर बच्चों को दो जगहों पर बस बदलनी पड़ती है। इस समस्या में बच्चों की सेफ्टी खतरे में आ सकती है। सड़क पार करने के दौरान एक्सीडेंट हो सकता है।

स्कूली बसों के मानक जो नहीं मिले
- सभी स्कूल बस पीला कलर नहीं है
- बस पर ड्राइव, कंडक्टर का मोबाइल नंबर नहीं लिखा है
- बस पर स्कूल का नाम या ऑन स्कूल ड्यूटी का बोर्ड नहीं है
- पीने के लिए पानी की व्यवस्था बस में नहीं दिखी।
- बस में अटेंडेंट या टीचर बच्चों के साथ नहीं थे ।
- फस्र्ट एड बॉक्स की व्यवस्था नहीं थी।
- फायर सेफ्टी सिलेंडर नहीं लगे हैं।
-कंडक्टर और ड्राइवर डे्रस में नहीं दिखे
- बस में स्पीड गवर्नर नहीं लगा है
- जीपीएस सेवा से बस लैस नहीं है
- बस जरूरी कागजात भी चालक के पास नहीं था।
- बैग रखने की जगह पर भी बच्चे ठूंसे गए है।
- सीटिंग कैपेसिटी से अधिक स्टूडेंट्स को बैठाते हैं।
- बसों की खिड़की के ग्लास टूटे मिले।
- इमरजेंसी खिड़की नहीं था।

दंड का प्रावधान
- अनफिट बसें सीज की जाएंगी।
- इंश्योरेंस पहली बार फेल होने पर दो हजार, दूसरी बार में चार हजार और तीसरी बार में जब्ती।
- पॉल्यूशन फेल पाये जाने पर 10 हजार रुपये जुर्माना।
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बसों में दिखी खामियां
- बसों में कुर्सियां टूटी थी।
- हाइ्र्र सिक्योरिटी नंबर नहीं लगा था
- खिड़कियोंं के ग्लास टूटे थे