पटना ब्‍यूरो। पटना स्मार्ट सिटी की तरफ बढऩे के लिए अग्रसर है। इसकी गिनती ओडीएफ प्लस सिटी में होती है। शहर के लोगों की सुविधा के लिए जगह-जगह पर विशेष तौर पर सीएसआर एक्टिविटी के तहत मॉड्यूलर टॉयलेट भी लगाए गए थे लेकिन ज्यादातर जगहों पर इन टॉयलेट्स की हालत ऐसी हो चुकी है कि लोग उसमें जाना ही नहीं चाहते हैं। पटना निगम की ओर से दो साल पहले बनाए गए मॉड्यूलर टॉयलेट्स अव्यवस्थाओं के चलते कारगर साबित नहीं हुए। आज लगभग सभी जगह यह टायलेट टीन का डिब्बा बनकर रह गया है। कुछ जगह तो हालात यह है कि न टंकी है, न टोटी और न ही दरवाजा। बता दें कि पटना में 40 जगहों पर 4.30 करोड़ से महिला और पुरुष के लिए अलग-अलग करीब 200 मॉड्यूलर टॉयलेट्स बनाए गए थे। विश्व टायलेट दिवस पर पढ़ें विशेष रिपोर्ट

शहर भर में बनाए गए थे टॉयलेट
शहर में कई जगहों पर ऐसे टॉयलेट्स को बनाया गया था, उद्देश्य यही था कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसकी सुविधा मिले। लेकिन आज की तारीख में इन टॉयलेट्स को देखकर यह अंदाजा लगाना कतई मुश्किल नहीं कि इससे लोगों को कितना फायदा हो रहा होगा। ज्यादातर जगहों पर टॉयलेट्स का सिर्फ ढांचा लगा है। स्टेशन व अटल पथ पर के टॉयलेट्स में ताला लगा रहता है और जहां पर ताला खुला है, वहां लोग न जाना ही बेहतर समझते हैं। इक्का-दुक्का जगहों को छोड़ दें तो करीब-करीब हर टॉयलेट का यही हाल है।

नहीं खुलता ताला
बुद्ध स्मृति पार्क के पास बने टॉयलेट में ताला लगा है। पूछने पर यहां के लोगों ने बताया कि हमलोगों ने तो इसका ताला खुलते हुए आज तक नहीं देखा है। यहां बना टॉयलेट, स्ट्रीट वेंडर के सामान रखने के लिए गोदाम का काम करता है। हैरत वाली बात यह कि इसी जगह पर बैठकर लोग खाते भी हैं। इसी प्रकार तारामंडल के पास बने टॉयलेट आज इस्तेमाल के योग्य नहीं रहा। लोग बगल में खड़ा होकर हल्का होते हैं। यही हाल गांधी मैदान थाना के सामने बने टॉयलेट का है। यहां पर भी लोग टॉयलेट में न जाकर उसके बगल में हल्का होते हैं। सबसे बुरा हाल जीपीओ के गेट नंबर एक के पास बने टॉयलेट का है। इसकी हालत देखने के साथ ही उल्टी आ जाएगी। बेतरतीब गंदगी, उखड़े शीट्स तो है ही आसमाजिक तत्वों द्वारा इसके दरवाजे को भी उखाड़ लिया गया है।

सीएसआर के तहत टॉयलेट्स
इन मॉड्यूलर टॉयलेट्स का निर्माण सीएसआर (कॉर्पोरेट एंड सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) के तहत किया गया है। इनमें जमीन, पानी कनेक्शन व टाइल्स लगाने की जवाबदेही पटना नगर निगम की थी। इनके खराब रहने से राजधानी के लोगों को काफी फजीहत झेलनी पड़ रही है, जिसके कारण से लोग जहां-तहां मल-मूत्र त्याग रहे हैं। जिस कारण से और गंदगी फैल रही है। फाइबर के बने ये मॉड्यूलर टॉयलेट्स पारंपरिक शौचालयों से अलग होते हैं। ये फाइबर के बनाए जाते हैं और इनमें कंक्रीट का प्रयोग नहीं होता है। इसकी छत पर ही पानी की टंकी रखी जाती है, जिससे नियमित रूप से पानी की आपूर्ति हो सके। इसकी बनावट व कैपिसिटी ऐसी होती है कि यह हर मौसम को झेलने में सक्षम होते हैं।

सुलभ शौचालय को जिम्मा
पूरे शहर में करीब दो सौ से ज्यादा जगहों पर ऐसे टॉयलेट्स बनाए गए हैं। उद्देश्य यही है कि लोगों को सुविधा मिले। इन सभी टॉयलेट्स के मेंनटेंस का जिम्मा सुलभ इंटरनेशनल को दिया गया था। क्योंकि पटना ओडीएफ प्लस सिटी है। ऐसे में इस तरह की लापरवाही विचारणीय है।
प्रिया सौरभ, पीआरओ,स्मार्ट सिटी