उनके मरने के बाद कान में जमा ये वैक्स उनकी ज़िंदगी की कहानी सुनाने के लिए बच जाता है. इसमें कई तरह के केमिकल होते हैं.
इंसानों और व्हेलों की तरह बहुत से स्तनपायी जानवरों के कानों में वैक्स बनता है. दूसरे जानवरों की तरह इंसानों के कानों का वैक्स कोई ख़ास चीज़ नहीं. इसमें ऐसा कुछ नहीं होता कि किसी इंसान के बारे में कुछ पता चल सके. और बताए भी कैसे? ज़्यादातर इंसान अक्सर अपने कानों की सफ़ाई करते रहते हैं.
फिर भी इस बेकार चीज़ से जुड़ी तमाम दिलचस्प बाते हैं. चलिए, आपको कान से निकलने वाले वैक्स या मैल के विषय में कुछ बातें बताते हैं.
इसका वैज्ञानिक नाम है सेरुमेन. ये हमारे कान की नली के बाहरी हिस्से में बनता है. वहां पर हज़ारों ग्रंथियां होती हैं. इनसे निकलने वाला तेल हमारे कानों को तैलीय रखता है. वहां पर कुछ पसीने की ग्रंथियां भी होती हैं. इसमें कुछ बाल, मरी हुई चमड़ी और बदन से निकलने वाली कुछ और चीज़ों को मिलाएं तो तैयार होता है कान का वैक्स.
हम पहले ये समझते थे कि कान से निकलने वाले वैक्स का मक़सद कानों को नरम रखना है. शायद यही वजह है कि होंठों पर लगाए जाने वाले बाम इसी वैक्स से बनाए जाते हैं ताकि होंठों को नरम रख सकें.
ये भी माना जाता है कि ये कीड़ों को कान में घुसने से रोकने का भी काम करता है. कुछ लोगों को ये भी शंका है कि ये एंटीबायोटिक का भी काम करते हैं.
1980 में अमरीकी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हेल्थ के वैज्ञानिकों टू जी चाय और टोबी जी चाय ने 12 लोगों के कानों से वैक्स इकट्ठा किया. इसे उन्होंने अल्कोहल में मिला दिया.
फिर उसमें कुछ कीटाणु डाल दिए. आप जानकर हैरान रह जाएंगे कान के वैक्स का कमाल सुनकर. उसके असर से कई कीटाणु 99 फ़ीसद तक ख़त्म हो गए. इनमें एक से एक ख़तरनाक कीटाणु थे.
2011 में जर्मनी में भी ऐसे एक तजुर्बे के कमोबेश ऐसे ही नतीजे निकले थे. कान के वैक्स के असर से 10 तरह के कीटाणु और फफूंद की कई प्रजातियों का ख़ात्मा हो गया था.
अब अगर कान का वैक्स इतना असरदार है तो कान में इन्फ़ेक्शन कैसे हो जाता है? शायद उस वक़्त कानों में इतना वैक्स नहीं बनता जो बीमारियों के कीटाणुओं से लड़ सके.
मगर साल 2000 में कैनरी आइलैंड की ला लगुना यूनिवर्सिटी में हुए एक रिसर्च के एकदम उल्टे नतीजे आए थे.
1980 और 2011 में किए गए रिसर्च में जो वैक्स निकाला गया था वो ड्राई वैक्स था. लेकिन साल 2000 के रिसर्च में गीले वैक्स पर तजुर्बा किया गया था. अब ये साफ़ नहीं है कि क्या नतीजों में इस वजह से फ़र्क़ दिखा.
हालांकि दोनों ही तरह के वैक्स एक जैसे रसायनों से बने थे. वैसे हम लोगों में से ज़्यादातर को मालूम ही नहीं कि कान के वैक्स की दो वैरायटी होती है.
अब आपके कान में सूखा वैक्स होता है या गीला, ये आपके ख़ानदान पर निर्भर करता है. ये तय करने का काम हमारा एक जीन करता है. इसे ABCC11 कहते हैं.
अगर आपके जीन में A के बजाय G है तो आपके कान का वैक्स सूखा होगा. इसकी बू भी अलग होगी. वैक्स का गीला या सूखा होना, आदि-मानव के प्रवास का क़िस्सा भी बताता है.
अफ्रीकी या कॉकेसियन नस्ल के इंसानों के कान से गीला वैक्स निकलता है. वहीं पूर्वी एशियाई नस्ल के इंसानों में सूखा वैक्स निकलता है. वहीं अमरीकी और प्रशांत महासागर के द्वीपों में रहने वालों में ये अनुपात बराबरी का होता है.
कान के वैक्स से जुड़ा जो सबसे अहम सवाल है वो ये कि इसे निकाला जाए तो कैसे?
इंसान को ये सवाल ईसा के बाद की पहली सदी यानी क़रीब दो हज़ार सालों से परेशान किए हुए है. रोमन ऑलस कॉर्नेलियस ने अपनी किताब डे मेडिसिना में बाक़ायदा कई तरीक़े बताए हैं जिनसे कानों के वैक्स को साफ़ किया जा सकता है.
कॉर्नेलियस ने लिखा है कि अगर वैक्स सूखा है तो तेल, शहद या सोडा डालकर उसे पहले फुलाएं, फिर पानी की मदद से निकालें. अगर कान का वैक्स गीला है तो कान में सोडा मिला सिरका डालकर उससे कान साफ करें.
उन्होंने कान की सफाई के कई और तरीक़े भी सुझाए हैं जिनमें सिरके से लेकर खीरे के रस का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया गया है. वो लिखते हैं कि इससे न सुन पाने की बीमारी दूर होगी.
आज ये सब नुस्ख़े अजूबे भले लगें मगर आज भी बहुत से डॉक्टर कान साफ़ करने के लिए बादाम या जैतून का तेल कानों में डालते हैं.
बहुत से लोग इसकी वजह से बड़ी मुसीबत में फंस जाते हैं. 2004 के एक सर्वे के मुताबिक़ ब्रिटेन में हर साल क़रीब 23 लाख लोग कान के मोम से परेशान होकर डॉक्टर के पास जाते हैं.
हर साल क़रीब 40 लाख लोगों के कान का ब्रिटेन में इलाज होता है. बच्चे हों, बड़े हों या बूढ़े, हर उम्र के लोग इस मुसीबत का सामना करते हैं. कई बार कान के वैक्स के असर से लोग बहरे हो जाते हैं. कई बार लोग ख़ुद से कान साफ़ करने के चक्कर में परेशानी में पड़ जाते हैं.
रूई से कान साफ़ करने का तरीक़ा आम है. मगर इसमें कई ख़तरे हैं. इसीलिए डॉक्टर भी पहले कान में कुछ डालकर वैक्स को मुलायम बनाते हैं, फिर इसे निकालने की कोशिश करते हैं.
हालांकि अभी किसी भी तजुर्बे से ये साफ़ नहीं हो पाया है कि कौन सी चीज़ कान के वैक्स को मुलायम बनाने में सबसे ज़्यादा असरदार है.
अलग-अलग देशों में कान का वैक्स साफ़ करने के अलग-अलग तरीक़े हैं. सब अपनी-अपनी जगह ठीक हैं मगर किसी को पूरी तरह से कारगर नहीं माना जा सकता.
अक्सर लोग नहाने के बाद रुई से कान साफ़ करने लगते है, जबकि डॉक्टर इसके लिए मना करते हैं.
ईयरबड से तेज़-तेज़ कान खुजलाने से बहुत नुक़सान भी उठाना पड़ सकता है. इससे वैक्स बाहर आने के बजाय और अंदर चला जाता है. कई बार रुई ही कानों में फंस जाती है. इसलिए ऐसा कभी मत कीजिए. ईयरबड से कान मत खुजलाइए.
कई लोग एक और बेतुका तरीक़ा आज़माने की सलाह देते हैं, और वो ये कि मोमबत्ती को कान के क़रीब ले जाकर जलाइए.
तर्क ये दिया जाता है कि मोमबत्ती की आंच से कान के अंदर का वैक्स पिघलकर बाहर आ जाता है. ये एकदम वाहियात बात है.
कान में पिघला वैक्स पड़ा तो आपको बहुत तकलीफ़ होगी. सुनने की क्षमता पर भी असर पड़ने का डर है.
बेहतर है कि कान के वैक्स की सफ़ाई आप किसी स्पेशलिस्ट से कराएं.
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