Basant Panchami Saraswati Puja 2021 Date, Time, katha, muhurat, puja vidhi: पौराणिक कथाः पौराणिक कथा के अनुसार सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी ने धरती पर विभिन्न जीव-जन्तुओं एवं मनुष्यों की रचना की लेकिन रचना के बाद भी ब्रह्मा जी संतुष्ट नहीं थे क्योंकि धरती का वातावरण नीरस एवं शांत था। ब्रह्मा जी विष्णु जी से अनुमति लेकर जल पृथ्वी पर छिड़कते है पृथ्वी पर जब जल गिरता है तो पृथ्वी पर कंपन होता है इसी कंपन के फलस्वरुप शक्ति के रुप में चार भुजाओं वाली एक स्त्री प्रकट होती है। जिसके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में वर मुद्रा अन्य हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा जी इसी स्त्री से वीणा बजाने की प्रार्थना करते है। देवी के वीणा बजाने से धरातल के सभी जीव-जन्तुओं को माठी वाणी प्राप्त हो जाती है। उसी समय से इस देवी को सरस्वती के नाम से जाना जाने लगा। देवी सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी, वाग्देवी अनेक नामों से भी जाना जाता है।
एक पौराणिक कथा यह भी है कि ब्रह्मा जी एवं कृष्ण जी ने सर्वप्रथम देवी सरस्वती जी की पूजा की। देवी जी ने जब कृष्ण जी को देखा तो वह उनके रुप पर मोहित हो गई। देवी कृष्ण को पति के रुप में पाने की इच्छा करने लगी। यह बात जब कृष्ण जी को पता चली तो उन्होंने कहा कि हे देवी मैं तो राधा के प्रति समर्पित हूँ। कृष्ण ने देवी सरस्वती जी को आशीर्वाद दिया कि विद्या की इच्छा करने वाले पर आपकी कृपा बनी रहेगी। वेदमूर्ति पं0 आचार्य शर्मा का 11 वर्ष की अवस्था में बसंत ऋतु के दिन ही आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ और इसी दिन को वे अपना अध्यात्मिक जन्म दिन भी मनाते है। गायत्री परिवार बसंत ऋतु को धूमधाम से मनाता है।
सरस्वती पूजा एवं बसंत ऋतु का महत्व
बसंत ऋतु ऋतुओं का राजा ही नहीं है बल्कि अनेक शुभ कार्यों के लिए भी बहुत अनुकूल है। बच्चों की विद्या आरम्भ के लिए यह दिन अनुकूल माना गया है।इस दिन यदि बच्चे के जीभ पर शहद से ऊँ बनाकर उसे ग्रहण करने के लिए कहा जाये तो बच्चा बहुत ही ज्ञानवान होता है। अन्नप्राशन कराना चाहे तो यह दिन बहुत ही अच्छा माना गया है। वर-वधु का परिणय-सूत्र संस्कार इस दिन हो तो दोनों के लिए बहुत भाग्यशाली माना जाता है। गृह प्रवेश वाणिज्यिक गतिविधि अर्थात दुकान आदि खोलने के लिए भी यह दिन बहुत शुभ माना गया है। इसी दिन नई फसल का थोड़ा-थोड़ा आगमन भी होता है।
पूजा विधान एवं मुहूर्त
16 फरवरी को ब्रह्म मुहूर्त से अर्थात साढ़े तीन बजे के बाद से मुहूर्त प्रारम्भ हो रहा है। दोपहर 12 बजे के तक रहेगा। 12 बजे से पहले कभी भी सरस्वती पूजा या बसंत पूजा किया जा सकता है। इस दिन देवी माँ को पीला एवं सफेद फूल चढ़ाये इसके अतरिक्त पीले चावल की तहरी या खिचड़ी बनाकर प्रसाद के रुप में सेवन करने एवं बाँटने से देवी प्रसन्न होती है।पुस्तकें कॉपी एवं पेन भी सरस्वती माँ के चरणों में रख दें। वहाँ बैठकर देवी माँ की पूजा करें। अपनी पुस्तक के एक दो पैराग्राफ अवश्य पढ़े। प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी जो विद्यार्थी कर रहे है वे भी अपनी पुस्तक को थोड़ी देर माँ के चरणों में बैठकर अध्ययन करेगें तो सफलता एवं लाभ के योग बन सकते है।
द्वारा: ज्योतिर्विद् एवं वास्तुविद् डॉ. त्रिलोकीनाथ