कहानी
छिछोरे और बेवक़ूफ़ चोर, चम्पक, गेंदा और गुलाब बैंक लूटने गए, और फिर उनके पीछे पुलिस पड गई, और फिर बाकी की फिल्म टॉम एंड जेरी।
वैसे तो ज्यादातर फिल्म्स 'कर्स ऑफ़ सेकंड हाफ', का शिकार होती हैं, कहने का मतलब ये की फिल्म के सेकंड हाफ में आकर पटरी से उतर जाती हैं, ये फिल्म अपने चोरों की बुद्धि की तरह उलटी चलती है, फर्स्ट हाफ में ये फिल्म अझेल है। अगर भगवान् की दया से फर्स्ट हाफ आप किसी तरह पार कर जाते हैं तो सेकंड हाफ में शायद आप इस फिल्म को पसंद कर सकते हैं। फर्स्ट हाफ की राइटिंग बेहद लचर है और वैसी ही है जैसी हमारे देश के अधिकतर राजनेता, कहने का मतलब है उम्रदराज़। फर्स्ट हाफ के जोक्स घिसे पिटे हैं और फिल्म की कहानी जैसे आगे ही नहीं बढती। सेकंड हाफ में आकर फिल्म एक दम से पलट जाती है और फिर ट्विस्ट ट्विस्ट और टर्न आपको लुभा कर रखते हैं। बम्पी का निर्देशन काफी बम्पी है, पर फिर भी सेकंड हाफ के कारण उनको माफ़ किया जा सकता है।
अदाकारी
रितेश देशमुख फिर से अपने रूटीन से कॉमिक किरदार में जंचते हैं और उनकी कॉमिक टाइमिंग आपको ज़रूर पसंद आएगी। विवेक ओबेरॉय से अब उम्मीदें कम ही रहती हैं, उनके पेर्फोर्मेस में कोई उर्जा नहीं हैं, और वो फिल्म में काफी थके और हारे हुए से लग रहे हैं। अगर इस फिल्म में किसी ने अच्छा काम किया है तो वो हैं, साहिल वैद जिनकी इस साल ये दूसरी फिल्म है जो उनके एक्टिंग को बखूबी इस्तेमाल करती है। उनकी तरह ही भुवन अरोरा ने भी बेहद अच्छा काम किया है, उनको आगे फिल्मों में बेहतर किरदारों में ज़रूर देखना चाहूँगा। विक्रम थापा और रिया चक्रवर्ती का काम ठीक ठाक है।
कुल मिलाकर अगर आप अगर आप कॉमेडी थ्रिलर फिल्मों के शौक़ीन हैं तो बैंकचोर देखने जा सकते हैं, पर बेहतर होगा की आप सिनेमा हाल में इंटरवल के बाद घुसें, और नींद न आने की बीमारी हो तो फर्स्ट हाफ में ही चले जाएँ, आय मास्क लेकर जाएँ।
वैधानिक चेतावनी : इस फिल्म में बाबा सहगल भी हैं, जो रैप से आपके दिमाग का दही करेंगे। कान के लिए इयरप्लग घर से लेकर जाएँ।
Review by : Yohaann Bhaargava
www.scriptors.in
Bollywood News inextlive from Bollywood News Desk
Bollywood News inextlive from Bollywood News Desk