भ्रष्टाचार के खिलाफ जमकर लड़ी
2005 में घरेलू महीला के रूप में पहचान रखने वाली भानमती ने वनग्राम आंदोलन से अपनी शुरुआत की थी। यह आंदोलन समाजिक कार्यकर्ता डॉ. जितेंद्र चतुर्वेदी ने वनग्रामों के निवासियों के हक के लिए किया था। इसके बाद भानमती ने बहराइच में पहली बार क्षेत्रीय कोटेदार के भ्रष्टाचार और कालाबाजारी के खिलाफ आवाज उठाई थी। इसमें उन्होंने एक के बाद एक 54 आवेदन डाले थे, जिसके परिणामस्वरूप प्रशासन को झुकना पड़ा था और कोटा निरस्त करना पड़ा था। इस बीच देहात संस्था ने महिला अधिकारों के मुद्दे पर ग्रामीण महिलाओं को संगठित कर अधिकार मंच की स्थापना की थी, जिसकी अगुवाई भानमती ने की। उन्होंने इस संगठन के जरिए नरेगा में महिला हिस्सेदारी, भ्रष्टाचार, ग्रामसभा में महिलाओं का हक, शराबखोरी आदि मुद्दों पर हल्ला बोलना शुरू किया। संगठन वनग्राम अधिकार मंच के साथ जुड़कर वन ग्रामवासियों के अधिकारों के लिए पद यात्राएं, धरना-प्रदर्शन और आमरण अनशन भी करने लगा था।
कभी बेचा करती थी फल-सब्जियां
मिहींपुरवा विकास खंड के वनग्राम टेड़िया की रहने भानमती फल एंव सब्जीयां बेचकर और ट्रेन में पल्लेदारी करके परिवार का भरण पोषण करती थीं। आम सी जिदंगी जीने वाली भानमती में सीखने और बोलने की ललक बहुत थी। उनकी इसी ललक ने उनको डेवलपमेंट एसोसिएशन फॉर हुमन एडवॉसंमेंट (देहात) संस्था के साथ जोड़ दिया था। इस संस्था के साथ मिलकर उन्होंने कई अव्यवस्थाओं के खिलाफ आवाज उठाई, जिसके परिणाम स्वरूप वह एक सशक्त महिला अगुवाकर के रूप में सामने आई।
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