अगर कहा जाता है कि बच्चे भी सब जानते हैं तो यह गलत नहीं है. आगर आपको कही सुनी बातों पर भरोसा नहीं है तो साइंटिस्ट्स के इस नए रिसर्च के बारे में पढ़ लीजिये. इसके मुताबिक इनफैन्ट भी सिर्फ प्रेम ही नहीं बल्कि डिस्क्रिमिनेशन और 'द कैरट एण्ड द स्टिक' जैसी फीलिंग्स को समझते हैं. रिसर्चर्स ने दावा किया है कि 15 महीने तक के बेबी को भी इस बात का पर्याप्त एहसास होता है कि क्या सही है और क्या गलत.
यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के साइंटिस्ट्स के इस रिसर्च से पता चला है कि इतने छोटे बच्चे भी यह पता कर सकते हैं कि उनके साथ खाने-पीने की चीजों के समान के डिस्ट्रीब्यूशन में पार्सिएलिटी की गई है. यह रिपोर्ट डेली एक्सप्रेस में छपी है.
डेली एक्सप्रेस में चीफ रिसर्चर प्रोफेसर जेसिका समरविले के हवाले से कहा गया है, कि इनफैन्ट सही और गलत का इतना अच्छा अन्दाजा लगा सकते हैं कि आप सोच नहीं सकते. उनके मुताबिक रिसर्च के लिए बच्चों को दूध और पटाखों के डिस्ट्रीब्यूशन से जुड़ा एक वीडियो दिखाया गया. प्रो. जेसिका के मुताबिक, इन बेबीज लग रहा था कि उनके साथ बराबरी का बर्ताव किया जाएगा. जब उनके साथ भेदभाव किया गया तो ये बच्चे परेशान हो गए.
इसी तरह बच्चों को शोध के दौरान दो अलग तरह के खिलौने दिए गए. ये स्पेशल तरह के खिलौने बेबीज के रिएक्शन को देखने के लिए एक कारगर इंस्ट्रूमेंट का काम कर रहे थे। इनफैन्ट्स के ग्रुप में एक तिहाई बेबी अपने फेवरेट खिलौने दूसरे बच्चों के साथ बांटने को तैयार थे. दूसरे एक तिहाई इनफैन्ट दूसरा खिलौना जो उन्हें पसंद नहीं था देने को राजी हुए. तीसरे एक तिहाई बेबी एक भी खिलौने देने को तैयार नहीं हुए.
प्रोफेसर समरविले ने इस पर कहा कि जो बेबी दूध के इक्वल डिस्ट्रीब्यूशन को लेकर ज्यादा सेंसेटिव थे उन्होंने खुशदिली से अपने पसंदीदा खिलौने दूसरों को खेलने को दिए. इस रिसर्च में बताया गया है कि जिन्दगी की शुरूआत में ही इनफैन्ट्स के बीच इंडिविजुअल डिसऐग्रीमेंट्स जैसी फीलिंग्स आ जाती हैं.
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