गुरुवार रात कश्मीर में जामा मस्जिद के बाहर जिस पुलिस ऑफ़िसर की हत्या हुई उनका नाम अयूब पंडित था।

अक्सर लोगों को यह ग़लतफ़हमी हो जाती है कि कश्मीर में जिन नामों के साथ पंडित लगा है वे हिन्दू हैं। लेकिन ऐसा नहीं है।

कश्मीर में कुछ मुसलमान भी पंडित टाइटल लगाते हैं। ये वे मुसलमान हैं जिन्होंने इस्लाम क़बूल किया है और ब्राह्मण से मुसलमान हो गए।

कश्मीर में पंडित टाइटल क्यों लगाते हैं मुसलमान?

 

पंडित टाइटल इसलिए लगाते हैं मुसलमान
मोहम्मद देन फ़ौक़ अपनी मशहूर क़िताब कश्मीर क़ौम का इतिहास में पंडित शेख नाम के चैप्टर में लिखते हैं, "कश्मीर में इस्लाम आने से पहले सब हिन्दू ही हिन्दू थे। इनमें हिन्दू ब्राह्मण भी थे। इसके साथ ही दूसरी जाति के भी लोग थे। लेकिन ब्राह्मणों में एक फ़िरक़ा ऐसा भी था जिनका पेशा पुराने ज़माने से पढ़ना और पढ़ाना था।''

उन्होंने इस क़िताब में लिखा है, ''इस्लाम क़बूल करने के बाद इस फ़िरक़े ने पंडित टाइटल को शान के साथ कायम रखा। इसलिए ये फ़िरक़ा मुस्लिम होने के बावजूद अब तक पंडित कहलाता रहा है। इसलिए मुसलमानों का पंडित फ़िरक़ा शेख भी कहलाता है। सम्मान के तौर इन्हें ख़्वाजा भी कहते हैं। मुसलमान पंडितों की ज़्यादा आबादी ग्रामीण इलाक़ों में हैं।"

कश्मीर के वरिष्ठ लेखक और इतिहासकार मोहम्मद यूसुफ़ टेंग कहते हैं कि कश्मीर में इन मुसलमान पंडितों की आबादी क़रीब पचास हज़ार के क़रीब होगी। टेंग इन मुसलमान पंडितों के बारे में कहते हैं कि ये सब वे लोग हैं जिन्होंने इस्लाम क़बूल किया है।

कश्मीर में पंडित टाइटल क्यों लगाते हैं मुसलमान?

 

'पंडित होने के मायने'
उन्होंने बीबीसी हिन्दी को बताया, "कश्मीरी पंडितों को हिन्दू नहीं कहते थे, उनको पंडित कहते थे। पंडित का मतलब ब्राह्मण है और ब्राह्मण शिक्षक को भी कहते हैं।"

टेंग बताते हैं कि ये जो मुसलमान पंडित हैं ये कश्मीर के मूल निवासी हैं। ये बाहरी नहीं है। असली कश्मीरी तो ये पंडित ही हैं। हम मुसलमान भट क्यों लिखते हैं क्योंकि हमने धर्म परिवर्तन किया है। पंडित भी बट लिखते हैं।

 

बट का मतलब है पंडित जिसको हम कश्मीरी में बटा कहते हैं यानी कश्मीर का हिन्दू पंडित। इसी तरह पंडितों में पीर भी हैं जबकि पीर मुसलमान अपने साथ जोड़ते हैं।"

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टेंग कहते हैं कि जिन मुसलमानों ने अपने साथ पंडित लगा रखा है वे इस्लाम क़बूल करने से पहले सब से ऊँचा वर्ग था। ये ब्राह्मणों में भी सबसे बड़ा वर्ग था। वह ये भी कहते हैं कि कश्मीर में असल नस्ल पंडित नहीं थी बल्कि जैन थे और बाद में बौद्ध थे। इसके के बाद पंडितों का यहाँ राज हो गया।

टेंग कहते हैं कि दूसरे कश्मीरी मुसलमानों ने उन मुसलमानों पर कोई आपत्ति नहीं जताई जिन्होंने पंडित अपने नाम के साथ जोड़कर रखा है।

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