कैफी आजमी ने अपनी लिखा था-
“तुम्हारी जीत अहम है ना मेरी हार अहम
के इब्तिदा भी नहीं है ये इन्तेहा भी नहीं “
आज के ठीक 66 साल पहले इसी दिन 9 अगस्त 1945 को सेकेंड वर्ल्ड वार में अमेरिकी एअर फोर्स ने जापान में अपना दूसरा एटम बम गिराया था. यह बम हिरोशिमा के ठीक 3 दिनों बाद यानि 6 अगस्त, 1945 को गिराया गया था. जापान पहले हमले के बाद अभी पूरी तरह से होश में भी नहीं आया था कि 3 दिनों के भीतर ही 9 अगस्त, 1945 की सुबह अमरीका ने नागासाकी शहर पर "फ़ैट मैन" परमाणु बम गिरा दिया. इससे जापान बुरी तरह टूट गया और उसने युद्ध में हथियार डाल दिये.
हिरोशिमा की बमबारी के बाद की यह तीसरी सुबह थी. लोग अपने अपने कामों मे मशगूल हो चुके थे. जिस वक्त एक आम आदमी अपने काम में लगा था, आसमान में मंडरा रहे अमरीकी एअरक्राफ्ट इस तैयारी में जुटे थे कि जापान के सबसे इंपारटैंट शहरों में से एक नागासाकी को कैसे तबाह किया जाये. 'उगते सूरज के देश' के इस देश में 11 बजकर 2 मिनट हो रहे थे. हर कोई इस शाजिश से बेखबर था. इसी बीच बी-29 एअरक्राफ्ट ने ‘फ़ैट मैन’ बम को शहर के सेंटर में गिरा दिया. पूरा शहर एक आग के गोले में तब्दील हो गया. देखते ही देखते 27 हजार लोगों मौत के मुह में समा गये. लाखों लोग आग और रेडिएशन से झुलस गये. आलम यह था कि 2 लाख की आबादी वाले शहर में 70 हजार लोग साल के आखिर तक मारे जा चुके थे. तबाही का ऐसा मंजर दुनिया ने पहले कभी नहीं देखा था.
जापान पर परमाणु हमला इंसानी इतिहास में परमाणु हथियारों का सबसे पहला प्रयोग था. अफसोस की बात यह है कि ये परमाणु बम आर्म फोर्सेस और उनके सेंटर्स पर नहीं बल्कि मासूम लोगों और कस्बों पर गिराए गए थे. इस पर रियेक्ट करते हुये फेमश पीडियाट्रिक और सर्जन लियोनिद रॉशाल ने कहा- “हर इंसान को अपने जिन्दगी में कम से कम एक बार हिरोशिमा और नागासाकी की यात्रा करनी चाहिए ताकि इस त्रासदी की भयानकता को महसूस किया जा सके.”
तो दिये थे कोडनेम
हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बमों को कोडनेम दिये गये थे. अमेरीका पूर्व राष्ट्रपति रुज़वेल्ट पर इसे "लिटिल ब्वाय" और नागासाकी के बम को विस्टन चर्चिल पर इसे "फ़ैट मैन" कहा गया. लिटिल ब्वाय को कभी भी टेस्टिंग करके नहीं देखा गया था जबकि फैटमैन को बाकायदा टेस्ट किया गया था.
नागासाकी का मतलब था "लम्बा पेनिन्सुलर (प्रायद्वीप)" है. वह साउथ वेस्टर्न क्यूशू आइसलैंड में सीकोस्ट पर है. नागासाकी दूसरा ऐसा शहर है जिसपर सेकेंड वर्ल्ड वार के दौरान 1945 में अमेरिका ने परमाणु बम गिराया था.
किसी आतंकी घटना की तरह ही था सब
इन बम धमाकों से वर्ल्ड वार में जापान ने मित्र देशों के सामने समर्पण जरूर कर दिया मगर पूरी दुनिया ने अमेरिका को इसके लिये जी भर के कोसा. बेकसूर लोगों पर जिनका सेना से कोई संबंध नहीं था परमाणु बम डालना किसी आतंकी धटाना से कम नहीं था. मनोज चतुर्वेदी कहते हैं, “ये बम इन लोगों पर सिर्फ़ इसलिए गिराए गए क्योंकि वे जापानी लोग थे. ऐसे शहर नष्ट कर दिए गए जहां पर कोई सैन्य उत्पादन भी नहीं किया जाता था. बच्चों और औरतों की हज़ारों लाशें, शहरों की बर्बादी, इस बर्बरता को कभी भी उचित नहीं ठहराया जा सकता है. किसी युद्ध में भी ऐसी बर्बरता को सही नहीं ठहराया जा सकता है. मैं समझता हूँ कि युद्ध बर्बरता का ही एक दूसरा नाम है.”
वैसे कहा जाता है कि हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बमबारी की बदौलत ही हज़ारों सैनिकों की जानें बचाई जा सकी थीं. जो लोग अमेरिका की इस कार्यवाही को सही ठहराते हैं उनका मानना है कि ऐसा करना वक्त की मजबूरी थी.
इस घटना के 66 साल बीत जाने के बाद जापान ने आज आश्चर्यजनक रूप से प्रगति की है. आज की नई जापानी पीढ़ी के लोगों ने 65 साल पहले अमरीका द्वारा की गई परमाणु बमबारी को धीरे धीरे भुला दिया हैं. जापानी टीवी और रेडियो चैनलों द्वारा कराए गए एक ताज़ा जनमत सर्वेक्षण के अनुसार लगभग इस देश की आधी आबादी इन दुखद घटनाओं की सही सही तिथि बताने में भी असमर्थ है. जापान ने जान लिया है कि शान्ति का रास्ता ही सबसे अच्छा और मानवीय है. जापान ने अपने इस तरीके से सारी दुनिया के सामने एक इक्जाम्पल भी सेट किया है कि तरक्की दुनिया का सबसे बड़ा बदला है.
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