-महाकवि गोपाल दास नीरज से पत्राचार में बेहद सहज थे अटल जी

-पत्र लिखकर बताई थीं राजनीतिक व्यस्तता की मजबूरियां

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LUCKNOW : राजनीतिक पटल पर अटल जी चाहे जितनी ऊंचाइयों को प्राप्त कर चुके थे, लेकिन आपसी बोलचाल व पत्राचार में हर दर्जे तक सहज थे। शुरुआती दौर के अपने मित्र महाकवि गोपाल दास नीरज से उनका पत्राचार निरंतर होता रहता था। हाल ही में अपने अंतिम सफर पर निकल चुके पद्मभूषण गोपाल दास नीरज के बेटे मिलन प्रभात ने दैनिक जागरण आई नेक्स्ट से अटल जी द्वारा भेजे गए पत्रों को साझा किया, जिसमें उन्होंने बेहद ही सहज ढंग से राजनीतिक व्यस्तता की मजबूरियां साझा की थीं।

चंद शब्दों में कह देते थे पूरी बात
मिलन प्रभात ने बताया कि अटल जी के पत्र में शब्द तो ज्यादा नहीं होते थे, लेकिन वह सीमित शब्दों में अपनी पूरी बात कह देते थे। उन्होंने बताया कि बाबू जी (गोपाल दास नीरज) की अटल जी से पत्र के जरिए बातचीत होती रहती थी। वर्ष 1992 में नववर्ष के मौके पर बाबू जी ने अटल जी को पत्र लिखकर शुभकामना भेजी। पत्र में बाबूजी ने प्रोफेसर भाई डॉ। डीडी सक्सेना की बीमारी का समाचार देते हुए उनसे तत्कालीन शिक्षा मंत्री से बात करने का निवेदन किया था। अटल जी ने उनके पत्र का जवाब दिया। हस्तलिखित पत्र में अटल जी ने लिखा कि डॉ। सक्सेना की बीमारी का सुनकर उन्हें दुख हुआ। उन्होंने नीरज जी को आश्वासन दिया कि वे दो दिन बाद लखनऊ जाने वाले हैं और शिक्षामंत्री से उनके बारे में बात करेंगे।

अटल जी से पत्राचार होता रहता था

हालांकि, उन्होंने जल्द किसी परिणाम की उम्मीद न करने की बात भी कही। पत्र के दूसरे हिस्से में अटल जी ने लिखा कि 'ग्वालियर मेले में कवि सम्मेलन में जाने का विचार था, लेकिन राजनीति ने रास्ता रोक लिया.' हल्के-फुल्के अंदाज के लिये मशहूर अटल जी ने कवि सम्मेलन में न जा पाने की वजह भी अपने ही अंदाज में बताई। उन्होंने लिखा कि 'सीनेटर मौनिहान टपक पड़े'। मिलन प्रभात के मुताबिक, अटल जी की सहजता का ही परिणाम था कि प्रधानमंत्री बनने के बाद भी बाबू जी और अटल जी के बीच पत्राचार होता रहता था।