यह बैंक एशियाई क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के विकास के उद्देश्य से बनाया गया है.
भारत के लिए चीन का समर्थन करना कभी आसान नहीं रहा है. इस मसले पर आगे बढ़ने में भी कई दिक़्कतें थीं. इस फ़ैसले पर आगे बढ़ने से पहले भारत ने जिन अच्छे-बुरे पहलुओं पर तवज्जो दी, जो इस प्रकार हैंः
1. भारत को इस बात का डर था कि चीन का इस बैंक पर नियंत्रण होगा और एशिया में उसकी स्थिति मजबूत हो जाएगी. दरअसल चीन इस बैंक के 100 अरब डॉलर की इक्विटी पूंजी में से 50 फ़ीसदी की पेशकश कर रहा है. ज़ाहिर है कि इस बैंक में भारत की हिस्सेदारी और प्रभाव कम होगा.
लेकिन सवाल यह है कि इस बैंक में चीन के आर्थिक सहयोग के अलावा दूसरा विकल्प क्या है? रिलायंस समेत बड़ी भारतीय कंपनियों ने चाइना डेवलपमेंट फंड से काफी कर्ज़ लिया है. चीन का प्रभाव पहले से ही ज़्यादा है ऐसे में इसका विरोध करने के बजाए इसका फायदा उठाना ही मुनासिब होगा.
2. इस बैंक को बढ़ावा देने के पीछे चीन का अपना राजनीतिक मकसद भी हो सकता है. वह एशियाई विकास बैंक (एडीबी) को चुनौती देना चाहता है जिस पर जापान का दबदबा है.
लेकिन भारत के नज़रिए से देखें तो किसी दूसरे देश की राजनीति के बारे में चिंता करने की बजाय बुनियादी ढांचे के विकास से जुड़ी उसकी ज़रूरतें ज़्यादा हैं. भारत को 1 लाख करोड़ डॉलर (1 ट्रिलियन) की जरूरत है जिसे विश्व बैंक और एडीबी पूरा नहीं कर सकते हैं. इस बैंक से भारत के लिए नए विकल्प खुलेंगे.
3. नया बैंक विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक को कमजोर कर सकता है जिससे आख़िरकार भारत जैसे देश प्रभावित हो सकते हैं जिन्हें ज़्यादा कर्ज़ की ज़रूरत होती है.
वैसे भारत और चीन ने काफी पहले इस बात पर अपनी सहमति जता दी है कि वे विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक से खुश नहीं हैं. उन्होंने इनमें सुधार की मांग करते हुए कहा है कि इन संस्थानों पर पश्चिमी देशों का दबदबा है. जब चीन ने एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर बैंक के एक विकल्प की पेशकश कर दी तब भारत को इसे स्वीकारना ही था.
4. चार देश जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और इंडोनेशिया इस नए बैंक से नहीं जुड़े हैं. भारत के सहयोग के बग़ैर इस बैंक को स्थापित करना चीन के लिए काफी मुश्किल होता.
इस बैंक से नहीं जुड़ने का मतलब यह होता कि भारत संस्थापक सदस्य होने का मौका खो देता. चीन, भारत के सहयोग के बग़ैर भी बैंक की स्थापना कर सकता था क्योंकि दूसरे 19 देशों ने इससे जुड़ने के लिए हामी भर दी थी. इन देशों में सिंगापुर भी शामिल था जो संस्थापक देशों के बीच एकमात्र विकसित देश है.
5. भारत-चीन सीमा विवाद नए बैंक के फ़ैसले पर असर डाल सकते हैं. मुमकिन है कि चीन द्वारा नियंत्रित बैंक भारत की कुछ परियोजनाओं में मदद नहीं दे सकता है मसलन 6.5 अरब डॉलर की लागत से सीमा क्षेत्र में सड़क तैयार करने की योजना.
दूसरे दक्षिण पूर्वी पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार और श्रीलंका संस्थापक सदस्यों के तौर पर जुड़े हैं. बैंक के बोर्ड में भारत का मौजूद नहीं रहना घातक साबित हो सकता है क्योंकि भविष्य में दिए जाने वाले आर्थिक सहयोग से भारत के हितों पर असर पड़ सकता है.
भारत और चीन ने विश्व बैंक में सुधार की मांग की है जिस पर पश्चिमी देशों का दबदबा है.
6. अमेरिका भारत और अन्य देशों के साथ लॉबिंग करता रहा है ताकि ये देश इस नए बैंक से न जुड़ें क्योंकि ऐसा होने पर चीन एशिया की सबसे बड़ी ताकत बन जाएगा. निश्चित तौर पर इस बैंक से जुड़ने पर अमरीका ख़ुश नहीं होगा और भारत के साथ इसके रिश्तों पर भी असर पड़ सकता है.
हालांकि भारत ने इस बैंक से जुड़कर अपनी स्वतंत्र राय ज़ाहिर कर दी है. भारत अमरीका पर भी निर्भर नहीं रहना चाहता है. लेकिन सच यह भी है कि अमरीका इस बैंक पर निर्भर रहने वाले भारत के बजाए एक स्वतंत्र विचारों वाले भारत का सम्मान करेगा.
7. मुमकिन है कि नया बैंक उपयुक्त मानकों और जवाबदेही के नियमों का पालन न करे और कुछ देशों के लिए यह अनुचित भी हो सकता है.
लेकिन बैंक के बोर्ड से जुड़ने के लिए भारत के पास कई मुनासिब वजहें हैं और लेकिन उसे अपनी ग़लतियों को सुधारना होगा.
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