लकड़ी और कोयले का कारोबार किया
(एजेंसियां)। अप्रैल 1941 में मौजूदा पाकिस्तान के सिंध इलाके के बेरानी गांव में पैदा हुए आसाराम का असली नाम असुमल हरपलानी है। आसाराम का परिवार 1947 में विभाजन के बाद भारत के अहमदाबाद शहर में आ बसा। आसाराम के जीवन पर छपी किताबों के अनुसार जब आसाराम का परिवार पाकिस्तान से अहमदाबाद आया था तब इनके पिता लकड़ी और कोयले का कारोबार करते थे। आसाराम जब 10 साल के थे तभी इनके पिता की मौत हो गई थी, उसके बाद आसाराम ने चौथी कक्षा के बाद पढाई छोड़ दी थी।
अवैध शराब का धंधा चलाने लगे थे
आसाराम ने शुरू में तो लकड़ी और कोयले का काम किया लेकिन कुछ दिन बाद ही बंद कर दिया। आसुमल परिवार समेत मणिनगर से वीजापुर आकर बस गया। यहां पर उन्होंने अवैध शराब का धंधा शुरू कर दिया। इतना ही नहीं आसाराम पर शराब के नशे में एक युवक की हत्या का भी आरोप लगा। थोड़े समय जेल भी रहना पड़ा, लेकिन बाद में वह बरी हो गया। साठ के दशक में वो परिवार सहित अजमेर से अहमदाबाद यहां आ गया इसके बाद शराब का कारोबार शुरू कर दिया। इस दौरान काफी पैसा उधार लिया।
कर्ज चुकाने के लिए तांगा भी चलाया
इस दौरान जब आसाराम कर्ज नहीं चुका पाया तो फिर से भागकर परिवार समेत अजमेर आ गया। यहां आसाराम ने तांगा चलाना शुरू कर दिया। इसके बाद लक्ष्मी से शादी के बाद दो बच्चे नारायण साईं और पुत्री भारती देवी का जन्म हुआ। इसके बाद आसाराम अध्यात्म की ओर बढ़ने लगा और आध्यात्मिक गुरू लीलाशाह की शरण में चला गया। लीलाशाह ने ही उनका नाम असुमल से आसाराम रखा। इसके बाद आसाराम ने अहमदाबाद से लगभग 10 किलोमीटर दूर साबरमती नदी के किनारे मुटेरा कस्बे में एक कुटिया बनाई।
आसाराम ऐसे इकट्ठा करता था धन
आसाराम के पास शुरू में ग्रामीण इलाके से लोग भजन-कीर्तन सुनने आते थे। इसके बाद धीरे-धीरे अपने भक्त बढ़ाने की योजना बनाई थी। आसाराम ने लोगों को लुभाने के लिए इलाज और मुफ्त दवाओं के साथ प्रसाद के नाम पर फ्री में खाना भी बांटवाना शुरू कर दिया था। इसके बाद यहां पर लोगों की भीड़ जुटने लगी थी। इसके बाद आसाराम का धन बटोरने का सबसे बड़ा जरिया अनुयायियों को प्रवचन देकर निकाला। आसाराम दो या तीन दिनों के एक प्रवचन में उत्पादों की बिक्री से ही 1 करोड़ रुपये तक जुटा लेता था।
10 हजार करोड़ रुपये का साम्राज्य
आसाराम के करीबी बताते हैं कि सबसे ज्यादा धन उगलने वाले तीन या चार सालाना गुरुपूर्णिमा के कार्यक्रम और हर साल 10 से 20 भंडारे किए जाते थे। इनके लिए चंदे के रूप् में करोड़ों रुपये इकट्ठा किए जाते थे। करीब 11000 योग वेदांत सेवा समितियों के जरिए भी आसाराम चंदा इकट्ठा कराते थे। आसाराम ने देश-विदेश में अपने करीब 400 आश्रम बनाए। मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक इनकी प्रॉपर्टी की कीमत 10 हजार करोड़ रुपये है। इतना ही नहीं इन पर आश्रम के नाम पर जमीन हड़पने का आरोप लगा है।
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