कानपुर (इंटरनेट डेस्‍क)। सलीम जावेद हिंदी सिनेमा के ऐसे लेखक हैं, जिनके जैसा न पहले कोई हुआ, न शायद दोबारा कभी होगा। इन दोनों पर जब अमेज़न प्राइम ने डॉक्यूमेंट्री बनाई तो तमाम सिनेमा प्रेमियों को इसका बेसब्री से इंतज़ार था। फ़िल्म सलीम जावेद की जादुई कहानी पर रोशनी डालने के साथ ही अनजाने में ही ये भी बता जाती है कि सलीम जावेद की सफलता को बॉलीवुड दोहरा क्यों नहीं पाया।

सलीम खान और जावेद अख्तर के अलावा इस हिंदी डॉक्यूमेंट्री में गिने चुने मौकों पर ही कोई हिंदी बोलता दिखाई देता है। ऐसा लगता है कि एसी कमरों में बैठे इन अमीर लोगों के लिए आम लोगों का हिंदुस्तान सिर्फ उतना ही है जितना सलीम जावेद की फिल्मों में है। उसके अलावा इन्हें कुछ पता ही नहीं है।

खैर, सिनेमा प्रेमियों के लिए इसमें काफी कुछ नया है तो काफी कुछ पहले से सुना हुआ। फिर भी ये सिनेमा का शौक़ रखने वाले अंग्रेज़ी समझने वाले दर्शकों के लिए ये अच्छा सौदा है। मगर इसमें ऐसा भी कुछ नहीं है जिसे नहीं देखेंगे, तो कुछ ख़ास देखने से महरूम रह जाएंगे। हाँ फ़िल्म की एडिटिंग कमाल की है। जैसे, रणवीर सिंह आधा डायलॉग बोलते हैं और एआर रहमान की ऑस्कर स्पीच से उसे पूरा किया जाता है।

लेखक बनने का सपना देखते हैं तो बातें समझ सकते हैं। एक तो ये कि सलीम जावेद ने जंजीर से पहले 7 साल नौकरी की तरह लेखन किया है और उससे पहले कुछ घोस्ट राइटिंग की है। ऐसा नहीं है कि जंजीर उनकी पहली रचना थी। दूसरा, सलीम जावेद ने ये मुकाम विनम्रता से नहीं बनाया। उन्होंने बहुतों को नाराज़ भी किया था।

कुल मिलाकर, सलीम जावेद पर जनके सशक्त बच्चों ने एक साधारण सी डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म बनाई है, जिसे एक बार देखा जा सकता। इन लेखकों की कहानी को बेहतर तरीके से लिखा जाता तो कुछ कालजयी होता। सिनेमा प्रेमी हैं, तो ज़रूर देखिए। नहीं तो दीवार, शोले या जंजीर भी देख सकते हैं।

Rating: 3 star

Review by: Animesh Mukherjee

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