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KANPUR : आज लोग हेल्थ को लेकर बेहद कॉन्शियस हैं। वो जिम जाते हैं, घर पर एक्सरसाइजेस करते हैं, डायट रिजीम भी फॉलो करते हैं। लेकिन फिर भी एप्रोपिएट रिजल्ट्स नहीं मिलते। क्यों? इसका जवाब देते हुए कीरोस डॉट कॉम के फाउंडर सचिन साहनी कहते हैं, 'मैं फिटनेस इंडस्ट्री में पिछले 10 सालों से हूं और मैंने नोटिस किया कि जब वेट लॉस या फिटनेस मेंटेन करने की बात होती है तो लोग ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर में तो हेल्दी चीजें लेते हैं पर मामला बिगड़ता है मिड-मील के दौरान क्योंकि तब लोगों के पास कुछ खास ऑप्शंस नहीं होते, उन्हें जो भी मिलता है समोसे, पकौड़े वो खा लेते हैं और पूरा शेड्यूल खराब हो जाता है। इसी गैप को फिल करने के लिए हमने बनाया कीरोस।'
यूनीक हेल्थ प्रॉब्लम सॉल्विंग आइडिया
सचिन बताते हैं कि लंबे वक्त से फिटनेस इंडस्ट्री में काम करने के कारण यहां का अच्छा एक्सपीरियंस है। मिड-मील स्नैक की प्रॉब्लम को सॉल्व करने के बारे में जब उन्होंने सोचा तो इसे सिर्फ आइडिया ही रहने नहीं दिया बल्कि इसे एग्जीक्यूट करने में लग गए। सचिन कहते हैं, 'हमारे पास कई डायटीशियंस और न्यूट्रीशनिस्ट्स की एक टीम है। हमने उनका एक्सपीरियंस लिया और कीरोज बनाने में लग गए।' उन्होंने बताया कि भले ही वो पहले से काम कर रहे थे लेकिन हमेशा से कुछ डिफरेंट करना चाहते थे। उन्होंने जब रिसर्च की तो पाया कि मिड-मील स्नैक की तो मार्केट में कोई जगह ही नहीं। बस इसी जगह को उन्होंने फिल किया और शुरू कर दिया स्टार्टअप। सचिन की मानें तो, 'ये मेरा सपना था। लेकिन इसमें बहुत रिस्क भी था क्योंकि हमने शुरुआत किसी बड़े शहर नहीं बल्कि टियर-2 सिटी लखनऊ से की। लेकिन फिर वो काम ही क्या जिसमें रिस्क न हो। जितना बड़ा रिस्क उतनी बड़ी सक्सेस। हम लखनऊ के हैं तो शुरुआत अपने ही शहर से की। और एक साल के अंदर कीरोज एमेजॉन जैसी वेबसाइट पर बेस्टसेलर्स में भी नंबर वन पोजीशन पर आ गया।'
लाइफ में हेल्थ और हैप्पिनेस एड कर रहा है कीरोस
कीरोज एक हेल्दी मिड-मील स्नैक है जिसे कई तरह के सीड्स और ग्रेंस के कॉम्बिनेशन से तैयार किया गया है। इसके आइडिएशन के बारे में सचिन कहते हैं, 'मिड-मील स्नैक डायट का बहुत इंपॉर्टेंट हिस्सा है। कीरोज को बनाने का हमारा मकसद यही था कि लोगों की लाइफ में हेल्थ और हैप्पिनेस को एड किया जा सके। खुश ऐसे कि वो अगर कुछ हेल्दी भी खा रहे हैं तो वो टेस्टी हो ताकि वो खाना उन्हें बोरिंग या बोझ न लगे। उन्हें कुछ मजबूरी में न खाना पड़े।' सचिन का मानना है कि अगर किसी को रोज काढ़ा पिलाया जाए तो वो नहीं पिया जाएगा। लेकिन अगर उसी काढ़े के हेल्थ बेनिफिट्स के साथ कोई चीज टेस्टी दी जाएगी तो वह आसानी से पी लेगा। बस कीरोज वही काम करता है।' सचिन आगे बताते हैं, 'कीरोज की दो वैराइटीज हैं जिनमें एक मल्टी-सीड कॉम्बिनेशन है तो दूसरा मल्टी-ग्रेंस का जो छोटी भूख को मिटाने के लिए कारगर है।'
कम नहीं था स्ट्रगल
भले ही कीरोज को उसके यूनीक कॉन्सेप्ट की वजह से कम वक्त में सक्सेस मिल गई हो लेकिन सचिन को इसके लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ी। वो कहते हैं, 'शुरुआत में मैं अकेले ही काम करता था, पैकिंग से लेकर डिलीवरी तक। बस ऑफिस के एक लड़के को लेकर मैं अपनी गाड़ी में पैकेट्स ले जाकर स्टोर्स तक पहुंचाता था। खुद ही वहां की शेल्फ साफ करके, अपने प्रोडक्ट को रखता था। दोबारा जाकर उनपर जमी धूल को भी साफ करता था क्योंकि मेरे लिए तो वो मेरा बच्चा ही है। हमने धीरे-धीरे लोगों को फ्री सैंपल्स दिए। और जब लोग पैसे देकर इसे खरीदने लगे तब हमें लगा कि हमें एक स्टेप आगे बढ़ जाना चाहिए। फिर मैंने एक्सपट्र्स को अपना आइडिया बेचा यूं कहें कि मैंने अपने सपने को बेचा ताकि मुझे इसे आगे बढ़ाने का मौका मिले। इसी के साथ हमें कंट्री के बेहतरीन एडवाइजर और फाइनेंसर्स मिल गए।'
एक मजबूत टीम का मिला साथ
यूनीक आइडिया की वजह से सचिन को मुंबई की एक वेंचर कैपिटल से फंडिंग का अप्रूवल भी मिल गया है। साथ ही उनके पास एफएमसीजी इंडस्ट्री के रिनाउंड ब्रांड के साथ काम कर चुके नेशनल हेड्स का भी साथ है जो उन्हें उनके स्टार्टअप को कंट्री में एक्सपैंड करने में हेल्प कर रहे हैं। आने वाले वक्त में कीरोज अपने कई प्रोडक्ट्स जैसे सुपर स्नैक्स, सुपर फूड्स और सुपर ड्रिंक्स लॉन्च करने की प्लानिंग में हैं।
स्टार्टअप आइडिया
मॉडर्न मॉम्स की पेरेंटिंग बनी और बेहतर
मॉडर्न मॉम्स की पेरेंटिंग में ट्रेडिशन भी है टेक्नोलॉजी भी। ये पैटर्न काफी बदल गया है। मॉम्सप्रेसो ऐसा ही प्लैटफॉर्म है जो पेरेंटिंग एक्सपीरियंस को और खूबसूरत बनाता है।
बदलते दौर में बच्चों को बड़ा करने के तरीके भी बदले हैं जिनमें सिर्फ पुराने तरीकों पर डिपेंड नहीं रहा जा सकता। मॉम्सप्रेसो ऐसा ही कंटेंट प्लैटफॉर्म है जहां महिलाएं मदरहुड से जुड़े अपने एक्सपीरियंसेज को शेयर करती हैं।
क्या है काम मॉम्सप्रेसो का?
मॉम्सप्रेसो की शुरुआत की विशाल गुप्ता, प्रशांत सिन्हा और आसिफ मोहम्मद ने। विशाल कहते हैं कि एक पेरेंट के तौर पर ऑनलाइन बच्चों के लिए बहुत कुछ मौजूद नहीं था और वो लोग स्पेशली मांओं की लाइफ में बड़ा रोल प्ले करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने शुरू किया कंटेंट प्लैटफॉर्म मॉम्सप्रेसो। यहां मॉम्स ब्लॉग्स के जरिए अपने एक्सपीरियंस शेयर कर सकती हैं। साथ ही बच्चों की बेहतर देखभाल के लिए टिप्स भी दे सकती हैं और अपने सवालों के जवाब भी जान सकती हैं। यहां एक मां को दूसरे से कंटेंट के जरिए कनेक्टेड रहती है, ठीक वैसे ही जैसे सोशल साइट्स पर।
कैसे करता है काम?
विशाल का कहना है कि उनकी वेबसाइट हर महीने लगभग 7.5 मिलियन मांओं को अटै्रक्ट करती है और एक महीने में करीब 5500 मदर्स इसमें कंटेंट कॉन्ट्रिब्यूट करती हैं। इसके लगभग 500 वीडियोज भी आ चुके हैं।
ऐसे होती है इनकम
इस प्लैटफॉर्म को 50 लाख के पर्सनल इनवेस्टमेंट से शुरू किया गया था और अबतक ये योरनेस्ट और सिडबी से करीब 20 करोड़ रुपये का फंड भी इकट्ठा कर चुका है। यह सोशल प्लेटफॉर्म पर ब्लॉग्स और वीडियोज के जरिए रेवेन्यू जेनरेट करता है। ये करीब 60 ब्रांड्स के साथ भी काम करता है जिनसे रेवेन्यू जेनरेट होता है।
QnA
स्टार्टअप्स में इनवेस्टर्स का बड़ा रोल मिलता है क्योंकि यह फाइनेंशयल प्रॉब्लम को काफी हद तक सॉल्व करता है। ऐसे में इनवेस्टर्स किस तरह से स्टार्टअप में इनवेस्ट करते हैं और हमें इनसे कैसे हेल्प मिल सकती है, प्लीज इसके बारे में बताइए।
- मधुकर शर्मा
स्टार्टअप्स में इनवेस्ट करना एक बहुत ही रिस्की काम है क्योंकि इसमें कोई सर्टेनिटी नहीं होती कि ये उम्मीदों पर खरा उतरेगा या नहीं। लेकिन यहां पर ओवरहेड की रिक्वॉयरमेंट कम होती है साथ ही उसके बढऩे का पोटेंशियल ज्यादा होता है जो उसे बेहद ल्यूकरेटिव बनाता है। यही वजह है कि इनवेस्टर्स हमेशा इसमें इनवेस्ट करने के लिए रेडी रहते हैं। द थॉमसन र्यूटर्स वेंचर कैपिटल रिसर्च इंडेक्स ने 2012 में वेंचर कैपिटल इंडस्ट्री की परफॉर्मेंस पर रिसर्च की तो पाया है कि 1996 से लेकर अब तक इसने 20 परसेंट की एनुअल ग्रोथ हासिल की है। हालांकि, सेबी ने इसके लिए कई नियम बनाए हैं जिन्हें इनवेस्टर्स को इनवेस्ट करने स पहले जरूर फॉलो करने होते हैं।
Quick Guide : बनाएं एक दमदार टीम
एक्सपट्र्स की मानें तो स्टार्टअप्स में फाउंडर्स और को-फाउंडर्स के अलावा टीम का एक इंपॉर्टेंट रोल है। हालांकि टीम का रोल किसी भी ऑर्गेनाइजेशन के लिए इंपोर्टेंट है, लेकिन स्टार्टअप में यह इसलिए ज्यादा महत्व रखता है, क्योंकि टीम छोटी होती है और एक नए आइडियाज पर काम कर रही होती है। इसलिए ऐसी टीम का चयन बेहद जरूरी होता है, जो ना केवल आपके आइडिया को समझे, बल्कि वह उस आइडियाज पर भरोसा भी करे। जब ये दोनों चीजें आपकी टीम में होती हैं, तो वो अपने फील्ड में हमेशा कुछ एड-ऑन करते हैं और आपके लिए काम को ज्यादा आसान और भरोसेमंद बनाते हैं। इसलिए को-फाउंडर से लेकर एक्जीक्यूटिव तक का सेलेक्शन बहुत सोच-समझ कर करें।
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