अमरता की यात्रा तब तक संभव नहीं है, जब तक कि देह के प्रति हमारा अभिमान न समाप्त हो जाए। देहाभिमान को छोड़कर हम बाहर के नैसर्गिक सौंदर्य की तरह अपने भीतर अमरता के एक विराट सौंदर्य को रच लेते हैं, जो सत्य है और शिव भी..अमरनाथ यात्रा पर विशेष ..
भारतीय चिंतन में विराटता का जो अप्रतिम सौंदर्य है, वह बहुधा चमत्कृत करता है। हमारा शरीर नश्वर है, लेकिन हमारी आत्मा अमर है, इसलिए हम अविनाशी भी हैं। ईश्वर का संदेश है- मृत्यु के सत्य (नाशवान शरीर) की स्वीकार्यता के साथ-साथ अमरता के पथ का भी वरण करें। इसलिए देह भाव से मुक्त होकर अविनाशी आत्म तत्व को पा जाना ही अमरनाथ की यात्रा तथा बाबा बर्फानी के दर्शन की सार्थकता है।
यात्रा से मिलता है जीवन का वास्तविक अर्थ
इसलिए हमारे देश में श्रद्धा से भरा हर एक हृदय अमरता से साक्षात्कार करवाती इस यात्रा को जीवन में एक बार तो अवश्य करना चाहता है। अमरनाथ की यात्रा वास्तव में जीवन को जो अर्थ देती है, वह केवल श्रद्धा का विषय नहीं है, वरन यह यात्रा भक्ति, ज्ञान और कर्म तीनों को नए अर्थ देकर सदैव सार्थक करती रही है। अमरकथा की साक्षी यह भूमि सदा-सदा इन्हें सार्थकता देती रहेगी।
कश्मीर धरती का स्वर्ग कहलाता है, लेकिन सच्चा भारतीय मानस केवल स्वर्ग को नहीं पाना चाहता। वह तो इस स्वर्ग के सौंदर्य को निहारकर आगे बढ़ना चाहता है। वह वहां पहुंचना चाहता है, जहां का सौंदर्य अविनाशी है और जो स्वयं सार्थक होकर देखने वाले को भी सार्थक कर देता है। कोई स्थान बहुत सुंदर हो, तो वह सार्थक हो सकता है, लेकिन कोई सौंदर्य देखने वाले के भीतर भी अमर सौंदर्य रच दे, तो वह परम सार्थक है। अमरनाथ की यात्रा यही परम सौंदर्य रचती है। और क्यों न रचे?
अमरता के लिए सबका मोह छोड़ना होगा
यहां कर्पूर गौर, करुणावतार, संसारसार शिव स्वयं आत्म तत्व के प्रतीक लिंग रूप में प्रकट होते हैं, तो दर्शन करने वाले के न जाने कितने बंधन टूट जाते हैं। यह संभवत: इस कारण भी होता है, क्योंकि इस स्थान ने स्वयं अमर कथा सुनी है। मान्यता है कि जब जगदंबा पार्वती ने अमर कथा सुननी चाही, तो यही स्थान धन्य हुआ था, लेकिन यहां तक आते-आते भगवान शिव ने अपने सभी प्रिय पात्रों को मार्ग में ही छोड़ दिया था। चंद्रमा, नंदी, नाग, गंगा और गणेश एक-एक कर गुफा तक पहुंचने से पहले ही छूटते गए। इससे संभवत: आशुतोष शिव संसार को यही संदेश दे रहे थे कि अमरता के सौंदर्य को पाना चाहते हो, तो जो भी प्रिय हैं और जो भी संग है, उनका मोह छोड़ना ही पड़ेगा।
दूसरे अर्थ में वे इन पांचों अर्थात चंद्रमा, नंदी, नाग, गंगा और गणेश को इसलिए छोड़ते हैं, क्योंकि ये पंच महाभूतों के प्रतीक हैं। पंच महाभूत ही देह को रचते हैं। जब भी अमरता के महाप्रतीक अमरनाथ की यात्रा होगी, तो पंच महाभूतों से बनी देह का अभिमान पहले छोड़ना ही पड़ेगा तभी यह यात्रा संभव होगी।
-अशोक जमनानी
अमरता की यात्रा तब तक संभव नहीं है, जब तक कि देह के प्रति हमारा अभिमान न समाप्त हो जाए। देहाभिमान को छोड़कर हम बाहर के नैसर्गिक सौंदर्य की तरह अपने भीतर अमरता के एक विराट सौंदर्य को रच लेते हैं, जो सत्य है और शिव भी..अमरनाथ यात्रा पर विशेष ..
भारतीय चिंतन में विराटता का जो अप्रतिम सौंदर्य है, वह बहुधा चमत्कृत करता है। हमारा शरीर नश्वर है, लेकिन हमारी आत्मा अमर है, इसलिए हम अविनाशी भी हैं। ईश्वर का संदेश है- मृत्यु के सत्य (नाशवान शरीर) की स्वीकार्यता के साथ-साथ अमरता के पथ का भी वरण करें। इसलिए देह भाव से मुक्त होकर अविनाशी आत्म तत्व को पा जाना ही अमरनाथ की यात्रा तथा बाबा बर्फानी के दर्शन की सार्थकता है।
यात्रा से मिलता है जीवन का वास्तविक अर्थ
इसलिए हमारे देश में श्रद्धा से भरा हर एक हृदय अमरता से साक्षात्कार करवाती इस यात्रा को जीवन में एक बार तो अवश्य करना चाहता है। अमरनाथ की यात्रा वास्तव में जीवन को जो अर्थ देती है, वह केवल श्रद्धा का विषय नहीं है, वरन यह यात्रा भक्ति, ज्ञान और कर्म तीनों को नए अर्थ देकर सदैव सार्थक करती रही है। अमरकथा की साक्षी यह भूमि सदा-सदा इन्हें सार्थकता देती रहेगी।
कश्मीर धरती का स्वर्ग कहलाता है, लेकिन सच्चा भारतीय मानस केवल स्वर्ग को नहीं पाना चाहता। वह तो इस स्वर्ग के सौंदर्य को निहारकर आगे बढ़ना चाहता है। वह वहां पहुंचना चाहता है, जहां का सौंदर्य अविनाशी है और जो स्वयं सार्थक होकर देखने वाले को भी सार्थक कर देता है। कोई स्थान बहुत सुंदर हो, तो वह सार्थक हो सकता है, लेकिन कोई सौंदर्य देखने वाले के भीतर भी अमर सौंदर्य रच दे, तो वह परम सार्थक है। अमरनाथ की यात्रा यही परम सौंदर्य रचती है। और क्यों न रचे?
अमरता के लिए सबका मोह छोड़ना होगा
यहां कर्पूर गौर, करुणावतार, संसारसार शिव स्वयं आत्म तत्व के प्रतीक लिंग रूप में प्रकट होते हैं, तो दर्शन करने वाले के न जाने कितने बंधन टूट जाते हैं। यह संभवत: इस कारण भी होता है, क्योंकि इस स्थान ने स्वयं अमर कथा सुनी है। मान्यता है कि जब जगदंबा पार्वती ने अमर कथा सुननी चाही, तो यही स्थान धन्य हुआ था, लेकिन यहां तक आते-आते भगवान शिव ने अपने सभी प्रिय पात्रों को मार्ग में ही छोड़ दिया था। चंद्रमा, नंदी, नाग, गंगा और गणेश एक-एक कर गुफा तक पहुंचने से पहले ही छूटते गए। इससे संभवत: आशुतोष शिव संसार को यही संदेश दे रहे थे कि अमरता के सौंदर्य को पाना चाहते हो, तो जो भी प्रिय हैं और जो भी संग है, उनका मोह छोड़ना ही पड़ेगा।
दूसरे अर्थ में वे इन पांचों अर्थात चंद्रमा, नंदी, नाग, गंगा और गणेश को इसलिए छोड़ते हैं, क्योंकि ये पंच महाभूतों के प्रतीक हैं। पंच महाभूत ही देह को रचते हैं। जब भी अमरता के महाप्रतीक अमरनाथ की यात्रा होगी, तो पंच महाभूतों से बनी देह का अभिमान पहले छोड़ना ही पड़ेगा तभी यह यात्रा संभव होगी।
-अशोक जमनानी
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