अदालत में आरोपियों के खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं हुआ
हैदराबाद (आईएएनएस)। ऐतिहासिक मक्का मस्जिद मामले में विशेष राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की स्पेशल कोर्ट ने फैसला सुनाया है। इस मामले में बम विस्फोट में मारे गए 9 लोगों की हत्या का आरोप 5 हिंदुओं पर लगा था। राष्ट्रीय जांच एजेंसी की अदालत का कहना है कि स्वामी असीमानंद समेत सभी आरोपियों के खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं हुआ। इसके अलावा आरोपी के एक वकील ने अदालत के परिसर के बाहर संवाददाताओं से कहा कि राइट विंग हिंदू के सदस्य नबाकुमार सरकार उर्फ स्वामी स्वामी असीमानंद, देवेंद्र गुप्ता, लोकेश शर्मा, भारत मोहनलाल रतेश्वर उर्फ भरत भाई और राजेंद्र चौधरी पर आरोप लगे थे।
जज बोले इस्तीफा देने के पीछे उनका 'पर्सनल रीजन'
अदालत ने सभी को बरी कर दिया। वहीं इस मामले में फैसला सुनाने वाले न्यायाधीश के. रविंदर रेड्डी ने फैसला सुनाने के कुछ घंटे बाद ही अपना इस्तीफा दे दिया। इस दौरान उनका कहना था कि यह उनका 'पर्सनल रीजन' है। वउन्होंने अपना रिजाइन लेटर हैदराबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति को भेजा है। हीं उनके इस इस्तीफे से हर कोई हैरान हो गया। उनका ये त्याग पत्र वाला फैसला मक्का मस्जिद मामले से जुड़ा है या फिर कोई और वजह है इस बात की कोई जानकारी नहीं है। गुजरात निवासी स्वामी असीमानंद और वनवासी कल्याण आश्रम के प्रमुख को अजमेर दरगाह विस्फोट मामले में पहले से बरी कर दिया गया था।
हैदाराबाद की मक्का मस्जिद में हुए धमाके में 9 लोग मारे गए
इसके अलावा यह अभी 2014 के समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट मामले में जमानत पर है। वहीं देवेंद्र गुप्ता बिहार के आरएसएस प्रचारक हैं जबकि लोकेश शर्मा एमपी से आरएसएस कार्यकर्ता हैं। हैदराबाद में 18 मई, 2007 को मक्का मस्जिद में शुक्रवार की नमाज हो रही थी, तभी अचानक से एक बड़ा धमाका हुआ। चार मीनार इलाके के पास स्थित मस्जिद में धमाके में 9 लोग मारे गए और करीब 50 से अधिक लोग घायल हुए थे। इसके अलावा मस्जिद के बाहर भीड़ को हटाने के लिए पुलिस की गोलीबारी में पांच अन्य लोग मारे गए थे। इस मामले में कुल 10 अभियुक्त थे और उनमें से पांच को एनआईए ने आरोप पत्र दिया था।
शुरुआती जांच में लगभग 100 मुस्लिम युवा लपेटे में आए थे
इसमें एक आरएसएस प्रचारक सुनील जोशी की जांच के दौरान हत्या कर दी गई थी। इसके आलवा दो आरएसएस कार्यकर्ता दो संदीप वी डांगे और रामचंद्र कालसांगरा व अमित चौहान फरार हैं। वहीं तेजराम परमार जमानत पर हैं। इस मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और एनआईए द्वारा कुल तीन आरोपपत्र दायर किए गए थे। इस मामले में करीब 200 से अधिक गवाहों शामिल हुए। इसके अलावा 400 दस्तावेजों को अदालत में पेश किया गया। शहर पुलिस ने इस मामले में शुरूआती जांच में बांग्लादेशी आतंकवादी संगठन हरकतूल जिहाद इस्लामी को दोषी ठहराया था। इसके अलावा लगभग 100 मुस्लिम युवा लपेटे में आए।
विस्फोट में हिंदू राइटिंग समूह का हाथ होने की बात सामने आई
इन सभी को जेल भेज दिया गया था लेकिन 2008 में बरी कर दिया गया था। इसके बाद जब इस मामले की जांच सीबीआई द्वारा 2010 में हुई तो पता चला कि विस्फोट में हिंदू राइटिंग समूह का हाथ था। इसके बाद मामला 4 अप्रैल, 2011 को एनआईए को सौंप दिया गया था। आरोपपत्र के अनुसार, आरोपी हिंदू और उनके मंदिरों पर आतंकवादी हमलों से नाराज और मुस्लिम पूजा स्थलों पर विस्फोट किया गया। आरोप पत्र में यह भी किया गया था कि असीमानंद ने दिल्ली में मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के सामने अपने बयान में मक्का सहित विभिन्न स्थानों पर बम धमाकों के पीछे कथित तौर पर षड्यंत्र का जिक्र किया था।
अभियुक्तों को बरी किए जाने पर असदुद्दीन ओवैसी ने उठाए सवाल
हालांकि बाद में असीमानंद ने कथित रूप से इस वक्तव्य को वापस ले लिया था। इसके बाद असीमानंद को पहली बार 2010 में सीबीआई ने गिरफ्तार किया था लेकिन मामले में 2017 में सशर्त जमानत दे दी गई थी। इसके बाद कल एनआईए की स्पेशल कोर्ट ने इस मामले में सभी 5 आरोपियों को बरी कर दिया। वहीं अब इस फैसले के बाद मजीलीस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि इस मामले में न्याय नहीं हुआ है। एनआईए ने इस मामले की जांच में पक्षपात किया है। इसे अलावा उनका कहना है कि अगर इस तरह से पक्षपातपूर्ण जांचे होती रहीं तो आपराधिक न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़े होंगे।
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