यह बात सुनकर आप भले ही चौक जाएं लेकिन दुनिया में ऑनलाइन या सोशल मीडिया से जुड़े हर 4 में से एक बच्चे का ऑनलाइन यौन उत्पीड़न हो रहा है। यह हम नहीं कह रहे बल्कि अमेरिका के मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च कह रही है। इस यूनिवर्सिटी के साइबर क्राइम स्पेशलिस्ट ने बच्चों के यौन शोषण के ऊपर एक बड़ी रिसर्च की है। जिसमें यह सामने आई है कि छोटे बच्चों का यौन उत्पीड़न करने वालों में सिर्फ अजनबी व्यक्ति ही नहीं बल्कि कई बार उनके करीबी लोग और रिश्तेदार ही शामिल होते हैं। ऑनलाइन यौन उत्पीड़न एक नया शब्द है जिसके बारे में ज्यादातर लोग अभी बिल्कुल भी नहीं जानते, लेकिन इससे जुड़े चौंकाने वाले फैक्ट सभी को हैरान कर रहे हैं।
कम सेल्फ कंट्रोल वाले बच्चे जल्दी बनते हैं शिकार
यह रिसर्च बताती है कि जिन लड़के, लड़कियों या बच्चों में आत्मनियंत्रण यानी कि सेल्फ कंट्रोल बहुत कम होता है वह लोग ही ऑनलाइन यौन उत्पीड़न का आसान शिकार बन जाते हैं। यह रिसर्च कहती है कि इंटरनेट पर काम करने वाले बच्चों में से करीब 24 परसेंट बच्चे ऐसे ही अपराध के शिकार बन जाते हैं। इस शोध के स्पेशलिस्ट एसोसिएट प्रोफेसर थॉमस हॉल्ट बताते हैं कि ऐसे अपराध करने वालों में ऐसे लोग ही शामिल नहीं होते जो बच्चों की ओर यौन आकर्षित हों बल्कि कई बार हमारे बच्चों से जुड़े बहुत करीबी लोग ही उनका उत्पीड़न शुरू कर देते हैं। साल 2012 से साल 2016 के बीच करीब 440 बच्चों ने रिसर्च के दौरान एक्सेप्ट किया कि उनके ऑनलाइन फ्रेंड्स उन पर यौन संबंधी बातें करने का दबाव डालते हैं और उन्हें कई बार मर्जी के बिना उनकी बात मानते हुए ऐसा ऐसा करना पड़ता है।
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पेरेंट्स की निगरानी के दौरान भी हो जाते हैं ऐसे मामले
तमाम पेरेंट्स ऐसा सोचते हैं कि अगर वो बच्चों के कंप्यूटर, लैपटॉप या मोबाइल फोन की निगरानी करेंगे या फिर उनके कंप्यूटर को अपने लिविंग रूम में लगवा लेंगे ताकि उन्हें हर वक्त देखा जा सके। तब भी बच्चे ऐसे ही किसी यौन उत्पीड़न से पूरी तरह नहीं बच पाते। तभी तो इस रिसर्च से जुड़े स्पेशलिस्ट बताते हैं कि पेरेंट्स को चाहिए कि वह अपने बच्चों के साथ खुलकर बातें करें और उनके बच्चे इंटरनेट पर क्या-क्या करते हैं इस बारे में भी बिना किसी दबाव के उनसे बातचीत करें। जरूरत महसूस होने पर बच्चों को प्यार से समझने और समझाने की कोशिश करें। सच तो यह है कि किसी भी तरह के के यौन उत्पीड़न के मामले में बच्चों के साथ पेरेंट्स द्वारा की गई खुलकर बातचीत ही उन्हें इस तरीके की समस्याओं और उत्पीड़न से बचा सकती है।
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