भारत वर्ष संस्कृति प्रधान देश है। हिन्दू संस्कृति में व्रत और त्योहारों का विशेष महत्व है। व्रत और त्योहार नई प्रेरणा एवं स्फूर्ति का संवहन करते हैं। इससे मानवीय मूल्यों की वृद्धि बनी रहती है और संस्कृति का निरन्तर परिपोषण तथा संरक्षण होता रहता है। भारतीय मनीषियों ने व्रत-पर्वों का आयोजन कर व्यक्ति और समाज को पथभ्रष्ट होने से बचाया है। भारतीय कालगणना के अनुसार, चार स्वयं सिद्ध अभिजित मुहूर्त हैं- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (गुड़ी पड़वा), अक्षय तृतीया, दशहरा और दीपावली के पूर्व की प्रदोष तिथि। ये चार दिन सामाजिक पर्व का दिन है। इस दिन कोई दूसरा मुहूर्त न देखकर स्वयंसिद्ध अभिजित शुभ मुहूर्त के कारण विवाहोत्सव आदि मांगलिक कार्य सम्पन्न किए जाते हैं।
कब है अक्षय तृतीया
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया कहते हैं। 6 मई को तृतीया रात्रि 3 बजकर 23 मिनट से लगकर 7 मई की रात्रि 2 बजकर 20 मिनट तक रहेगी। अत: इस वर्ष मंगलवार 7 मई को अक्षय तृतीया मनाई जाएगी।
अक्षय तृतीया का अर्थ और महत्व
'अक्षय' का शाब्दिक अर्थ है- जिसका कभी नाश (क्षय) न हो अथवा जो स्थायी रहे। स्थायी वही रह सकता है, जो सर्वदा सत्य है। सत्य केवल परमात्मा (ईश्वर) ही है, जो अक्षय, अखण्ड और सर्वव्यापक है। यह अक्षय तृतीया तिथि ईश्वर तिथि है। यह अक्षय तिथि परशुराम जी का जन्मदिन होने के कारण 'परशुराम-तिथि' भी कही जाती है। परशुराम जी की गिनती चिरञ्जीवी महात्माओं में की जाती है। अत: यह तिथि चिरञ्जीवी तिथि भी कहलाती है।
त्रेतायुग का आरंभ
चारों युगों में से त्रेतायुग का आरम्भ इसी अक्षय तृतीया से हुआ था, जिससे इस तिथि को युग के आरम्भ की तिथि- युगादितिथि भी कहते हैं। इस दिन भक्तों के द्वारा किए हुए पुण्यकार्य, त्याग, दान-दक्षिणा, जप-तप, हवन, गंगा- स्नान आदि कार्य अक्षय की गिनती में आ जाते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार, सभी कर्मों का फल अक्षय हो जाता है, इसीलिए इसका नाम 'अक्षय' पड़ा है।
इन वस्तुओं का करें दान
साथ ही इस दिन जल से भरे कलश, पंखे, चरण पादुका (जूता-चप्पल), छाता, गौ, आदि का दान पुण्यकारी माना गया है। इस दान के पीछे यह लोक विश्वास है कि इस दिन जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जाएगा, वे समस्त वस्तुएँ स्वर्ग में गरमी की ऋतु में प्राप्त होंगी।
अक्षय तृतीया में तृतीया तिथि को रोहिणी नक्षत्र का संयोग बहुत श्रेष्ठ माना जाता है, जो इस वर्ष यह संयोग बन रहा है। इस सम्बन्ध में भड्डरी की कहावतें भी लोक में प्रचलित हैं -
आखै तीज रोहिणी न होई।
पौष अमावस मूल न जोई।।
महि माहीं खल बलहिं प्रकासै।
कहत भड्डरी सालि बिनासै।।
अर्थात् वैशाख की अक्षय तृतीया को यदि रोहिणी न हो, तो पृथ्वी पर दुष्टों का बल बढ़ेगा और उस साल धान की पैदावार न होगी। अत: इस वर्ष रोहिणी का योग होने से धान की फसल अच्छी होगी।
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इन चीजों के दान का विधान
इस तिथि पर ईख के रस से बने पदार्थ, दही, चावल, दूध से बने व्यञ्जन, खरबूज, तरबूज और लड्डू का भोग लगाकर दान करने का भी विधान है।
इस दिन खुलते हैं बद्रीनाथ के कपाट
इसी तिथि को चारों धामों में से उल्लेखनीय एक धाम भगवान श्रीबद्रीनारायण के पट खुलते हैं। अक्षय तृतीया को ही वृन्दावन में श्रीविहारी जी के चरणों के दर्शन वर्ष में एक बार होते हैं।
— ज्योतिषाचार्य पं. गणेश प्रसाद मिश्र