प्रातः काल स्नानादि के अनन्तर दाहिने हाथ में जल, अक्षत, पुष्प आदि लेकर निम्न प्रकार से व्रत का संकल्प करें। 'अद्येत्यादि अमुकगोत्रोsमुक शर्माहं( वर्मा, गुप्तो, वा) ममाखिलपापक्षयपूर्वकधर्मार्थकाममोक्षसिद्धिद्वारा श्रीविष्णुप्रीत्यर्थं धात्रीमूले विष्णुपूजनं धात्रीपूजनं च करिष्ये' ऐसा संकल्प कर धात्री वृक्ष (आँवला) के नीचे पूर्वाभिमुख बैठकर 'ऊं धात्र्यै नम:' मंत्र से आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करके निम्नलिखित मन्त्रों से आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण करें-
पिता पितामहाश्चान्ये अपुत्रा ये च गोत्रिण:।
ते पिबन्तु मया द्त्तं धात्रीमूलेSक्षयं पय:।।
आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवा:।
ते पिबन्तु मया द्त्तं धात्रीमूलेSक्षयं पय:।।
इसके बाद आंवले के वृक्ष के तने में निम्न मंत्र से सूत्र वेष्टन करें-
दामोदरनिवासायै धात्र्यै देव्यै नमो नम:।
सूत्रेणानेन बध्नामि धात्रि देवि नमोSस्तु ते।।
इसके बाद कर्पूर या घृतपूर्ण दीप से आंवले के वृक्ष की आरती करें तथा निम्न मंत्र से उसकी प्रदक्षिणा करे-
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।।
इसके अनन्तर आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मण भोजन भी कराना चाहिये और अन्त मे स्वयं भी आंवले के वृक्ष के सन्निकट बैठकर भोजन करना चाहिये। एक पका हुआ कोंहड़ा( कूष्माण्ड) लेकर उसके अंदर रत्न, सुवर्ण,रजत, या रुपया आदि रखकर निम्न संकल्प करे-
'ममाखिलपापक्षयपूर्वकसुखसौभाग्यादीनामुत्तरोत्तराभिवद्धये कूष्माण्डदानमहं करिष्ये'
तदनन्तर विद्वान तथा सदाचारी ब्राह्मण को तिलक करके दक्षिणा सहित कूष्माण्ड दे दे और निम्न प्रार्थना करे-
कूष्माण्डं बहुबीजाढ्यं ब्रह्मणा निर्मितं पुरा।
दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितृणां तारणाय च।।
पितरों के शीतनिवारण के लिए यथा शक्ति कम्बल आदि ऊर्णवस्त्र भी सत्पात्र ब्राह्मण को देना चाहिये।
यह अक्षय नवमी 'धात्रीनवमी' तथा 'कूष्माण्ड नवमी' भी कहलाती है। घर में आंवले का वृक्ष न हो तो किसी बगीचे आदि मे आँवले के वृक्ष के समीप जाकर पूजा दानादि करने की परम्परा है अथवा गमले में आँवले का पौधा रोपित कर घर मे यह कार्य सम्पन्न कर लेना चाहिये।
-ज्योतिषाचार्य पंडित गणेश प्रसाद मिश्र