इस बीमारी के सामने आने के 30 साल बाद इसकी उत्पत्ति का पता चल पाया है.
साइंस जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है वैज्ञानिकों ने वायरस के जैनेटिक कोड के नमूनों का विश्लेषण किया. प्रमाणों में इसकी उत्पत्ति किन्शासा में होने का पता चला.
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रिपोर्ट के मुताबिक तेज़ी से बढ़ती वेश्यावृत्ति, आबादी और दवाखानों में संक्रमित सुइयों का उपयोग संभवत इस वायरस के फैलने का कारण बने.
दुनिया भर की नज़रों में एचआईवी 1980 के दशक में आया था और क़रीब साढ़े सात करोड़ लोग एचआईवी से ग्रस्त हैं.
वायरस आया कहां से
ऑक्सफ़ोर्ड और बेल्जियम की ल्यूवेन यूनिवर्सिटी की शोध टीमों ने एचआईवी की 'फेमिली ट्री' की पुनर्संरचना बनाने का प्रयास किया.
वैज्ञानिकों के मुताबिक एचआईवी चिंपैज़ी वायरस का परिवर्तित रूप है, यह सिमियन इम्युनोडिफिसिएंसी वायरस के नाम से भी जाना जाता है. किन्शासा बुशमीट का बड़ा बाज़ार था और संभवत संक्रमित खून के संपर्क में आने से यह मनुष्यों तक पहुंचा.
वायरस कई तरीके से फैला. इन वायरस ने चिंपैंज़ी, गोरिल्ला, बंदर और फिर मनुष्यों को अपने प्रभाव में लिया.
मसलन, एचआईवी-1 सबग्रुप ओ ने कैमरून में लाखों लोगों को संक्रमित किया.
एचआईवी-1 सबग्रुप एम दुनिया के हर हिस्से में फैला में लाखों लोगों को अपनी गिरफ़्त में लिया.
वेश्यावृत्ति और संक्रमित सुइयां
ऐसा क्यों हुआ, इसका जवाब तलाशने के लिए कई दशक पीछे जाना होगा.
1920 के दशक तक किन्शासा बेल्जियन कॉन्गो का हिस्सा था और 1966 तक इसे लियोपोल्डविले कहा जाता था.
ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर ओलिवर पाइबस ने बीबीसी को बताया, "यह क्षेत्र बहुत बड़ा था और इसका तेज़ी से विस्तार हो रहा था. औपनिवेशक मेडिकल रिकॉर्ड बताते हैं कि विभिन्न यौन संक्रमित बीमारियां बहुत तेज़ी से फैल रही थी."
शहर में बड़ी संख्या में पुरुष आए और किन्शासा का लिंग अनुपात बिगड़कर प्रति स्त्री दो पुरुष हो गया. नतीजा वैश्यावृति तेज़ी से फैली.
ये दोनों प्रकार के वायरस लगभग एक ही तेज़ी से फैलते रहे. स्वास्थ्य शिविरों में धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रही संक्रमित सुइयों ने इस वायरस को मानों पंख ही लगा दिए.
प्रोफ़ेसर पाइबस एचआईवी के फैलने की एक और बड़ी वजह मानते हैं और वह है रेल नेटवर्क. 1940 के अंत तक लगभग 10 लाख लोग आवागमन के लिए किन्शासा रेल नेटवर्क का इस्तेमाल करते थे.