क्या आफ़्स्पा ऐसे हटाया जा सकता है और ऐसी छूट जम्मू-कश्मीर को क्यों नहीं दी गई। इन सब सवालों को लेकर बीबीसी संवाददाता विनीत खरे ने पंजाब के पूर्व पुलिस प्रमुख और भोपाल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति के.एस. ढिल्लों से बात की। पढ़िए उन्हीं के शब्दों में इस पर आंकलन।
आफ़्स्पा या आर्म्ड फ़ोर्सेस स्पेशल पावर्स ऐक्ट में केंद्र के जितने बल हैं जिनमें सेना से लेकर सीआरपीएफ़ वग़ैरह हैं। इनको सरकार यह शक्ति दे सकती है कि वे किन्हीं हालात को डील करने के लिए किसी भी हथियार का इस्तेमाल कर सकती हैं। इसके लिए वे किसी क्रिमिनल कोर्ट में जवाबदेह नहीं होंगे।
इस ऐक्ट को लागू करने के लिए यह ज़रूरी है कि डिस्टर्ब्ड एरिया ऐक्ट के तहत वह राज्य अशांत घोषित होना चाहिए। अगर वह नहीं है तो सरकार को यह अधिकार नहीं है कि वह सशस्त्र बलों को अतिरिक्त अधिकार दे।
छेड़खानी के बाद लड़कियों से नहीं लड़कों से पूछें ये 10 सवाल
राज्य ख़ुद को अशांत घोषित कर सकता है?
दूसरी बात यह है कि किसी राज्य को यह घोषित करना कि हमारे राज्य में यह हालत आ गई है कि सामान्य बल काफ़ी नहीं हैं इसलिए वे जब तक अपने राज्य को अशांत घोषित नहीं करेंगे तो भारत सरकार के पास अधिकार नहीं है कि आफ़्स्पा के तहत वह पावर दे।
मगर सवाल यह उठता है कि कोई राज्य ख़ुद यह घोषणा कर सकता है कि हमारा राज्य अब ख़तरनाक नहीं रहा है और सामान्य हो चुका है। यह अधिकार राज्यों को तो है मगर इसमें राज्यपाल की अहम भूमिका होती है।
हमारे राज्यपालों को सभी राज्यों में एक जैसी शक्तियां नहीं मिली होंती। जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल को उन्हें लॉ एंड ऑर्डर और सिविल एडमिनिस्ट्रेशन के लिए अतिरिक्त अधिकार मिले हैं जो अन्य राज्यपालों के पास नहीं होते। इसी तरह से जनजनातीय राज्यों, जैसे मणिपुर और छत्तीसगढ़, के राज्यपालों को जनजातीय समुदायों की बेहतरी के लिए क्या करना चाहिए, केंद्र को इस बारे में सुझाव देते हैं।
क्या राज बताते हैं सड़क किनारे लगे हुए ये रंग बिरंगे मील के पत्थर
राज्यपाल की आफ़्स्पा में अहम भूमिका
अगर राज्य कहे कि हमारा राज्य सामान्य है इसलिए आफ़्सपा लगाने की केंद्र के पास शक्ति नहीं है। ऐसा हो नहीं सकता क्योंकि स्टेट यूनिट में राज्य सरकार के साथ राज्यपाल भी शामिल होता है। राज्यपाल आमतौर पर केंद्र का प्रतिनिधि होता है इसलिए वह केंद्र के निर्देशों पर काम करता है इसलिए स्थिति थोड़ी पेचीदा है।
वास्तविक स्थिति यह है कि राज्य को डिस्टर्ब्ड एरिया ऐक्ट के तहत अशांत घोषित किए जाने के बाद भारत सरकार आफ़्सपा लगाने की घोषणा कर सकती है।
असम और मणिपुर की सरकारें यह तय नहीं कर सकतीं कि उनके यहां से आफ़्स्पा हटाया जाए। वे यह कह सकती हैं कि हमारा राज्य अशांत नहीं है और यहां पर आफ़्स्पा हटाया जाए क्योंकि इसकी ज़रूरत नहीं हैं।
सरकार जम्मू-कश्मीर से नहीं हटाना चाहती आफ़्स्पा
सरकार ने मणिपुर और असम से इसलिए पूछा है क्योंकि यहां से वे हटाना चाहते हैं। जम्मू-कश्मीर से नहीं हटाना चाहते। अगर हटाना होगा तो राज्यपाल को कहा जाएगा कि वह प्रपोज़ल दें। असम में बीजेपी सरकार है तो वे हटाना चाहते हैं। आफ़्स्पा को लगाने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कुछ महीने पहले फ़ैसला दिया था कि आफ़्स्पा के तहत सशस्त्र बलों ने जो काम किए हैं, उनमें आईपीसी के तहत मुक़दमा चल सकता है। इस फैसले के ख़िलाफ़ सरकार ने अपील की है। असम और मणिपुर से आफ्स्पा को बहुत पहले हटा देना चाहिए था। जम्मू-कश्मीर में हालात अलग हैं क्योंकि उसमें पाकिस्तान का दख़ल है।
इस बिजनेस टाइकून ने किया 30 हजार करोड़ का दान, पर इनकी नेटवर्थ के आगे यह कुछ भी नहीं
ऐसी सेना फ़ासिस्ट देशों में देखने को मिलती है
हमारे लोकतंत्र और संविधान में राज्य सरकारों को इस मामले में अपने आप कुछ करने का अधिकार है। यह कानूनी अधिकार वास्तव में इस्तेमाल नहीं किया गया। अगर जम्मू और कश्मीर के वश में होता तो वहां लगने नहीं दिया जाता मगर वहां के राज्यपाल के पास अतिरिक्त शक्तियां हैं। राज्यपाल हमेशा चाहेंगे कि अगर केंद्र चाहता है कि ऐक्ट लगना है तो लगा रहेगा। तो कुल मिलाकर केंद्र चाहेगा तो आफ़्स्पा लागू होगा।
यह न भूलें कि हमारे देश में आर्मी की लॉबी बहुत स्ट्रॉन्ग है। दूसरे लोकतांत्रिक देशों में आर्मी की लॉबी इतनी मज़बूत नहीं होगी। ऐसा कम्युनिस्ट या फ़ासिस्ट देशों में देखने को मिलती है। सोवियत रूस में ऐसा था और चीन में भी ऐसा है।
इस तरह की चीज़ अमरीका या यूके, फ्रांस या जर्मनी में नहीं देखी गई होगी। यह ब्रिटिश साम्राज्यवादी शासन से हमने ये चीज़ें ली हुई हैं और हम इसे छोड़ना नहीं चाहते।
Interesting News inextlive from Interesting News Desk
Interesting News inextlive from Interesting News Desk