कानपुर। 86 साल पहले आज के दिन अडोल्फ हिटलर को जर्मन का चांसलर बनाया गया था। उस वक्त किसी को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि हिटलर दुनिया के लिए एक आतंक बन जाएगा। होलोकॉस्ट इनसाइक्लोपीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, 30 जनवरी 1933 को जर्मनी के तत्कालीन राष्ट्रपति पॉल वॉन हिंडनबर्ग ने अडोल्फ हिटलर को जर्मनी के चांसलर के तौर पर नियुक्त किया था। बता दें कि हिटलर को लोगों ने चुनाव में जीत दिलाकर चांसलर नहीं बनाया था बल्कि उसे वहां के कुछ रूढ़िवादी राजनेताओं ने संवैधानिक रूप से सौदे के तहत इस पद पर बैठाया था।
नेताओं ने लोगों की लोकप्रियता के कारण बनाया चांसलर
उस वक्त उन्होंने अनुमान लगाया था कि हिटलर की लोकप्रियता का उपयोग करके वह फिर से सत्ता में वापसी कर सकते हैं। हालांकि, चांसलर बनने के कुछ ही समय बाद हिटलर ने सभी के उम्मीदों पर पानी फेर दिया। पूरे देश में नाजियों का आतंक शुरू हो गया। कम्युनिस्ट्स, सोशल डेमोक्रेट्स और ट्रेड यूनियनिस्टों पर अत्याचार शुरू हो गया। इनके बाद यहूदियों और विरोधियों की बारी आ गई। कुछ ही समय में हिटलर ने पूरे देश में अपनी तानाशाही कायम कर ली।
ताकतवर नेता की थी जरुरत
1929 की विश्वव्यापी मंदी के चलते 1930 में जर्मनी गृहयुद्ध के कगार पर था। नाजियों और कम्युनिस्टों के बीच खुले तौर पर संघर्ष शुरू हो गया था। इस हालात से निपटने के लिए वहां के लोग एक शक्तिशाली नेता की तलाश कर रहे थे। राष्ट्रपति पॉल फॉन हिंडनबर्ग उस वक्त एक ताकतवर व्यक्ति थे। वाइमार संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति का पद जर्मनी में इतना शक्तिशाली था कि वह एक फैसले से संसद भंग कर सकता था और अधिनियम के जरिए कानून लागू कर सकता था। कई बार पॉल वॉन हिंडनबर्ग ने इन अधिकारों का फायदा उठाया था लेकिन अब वे जर्मनी में रक्षक की भूमिका निभाने की हालत में नहीं थे क्योंकि 1933 के शुरू में उनकी उम्र 85 साल हो गई थी।
पहले हिटलर को चांसलर नहीं बनाना चाहते थे राष्ट्रपति
वह एक ऐसे व्यक्ति की तलाश कर रहे थे, जो उनके अधीन काम करे। पहले वह हिटलर को चांसलर नहीं बनाना चाहते थे क्योंकि उनका मानना था कि वह जनरल फील्ड मार्शल थे, जबकि हिटलर एक साधारण सैनिक था लेकिन 1933 में राष्ट्रपति ने अपनी राय बदल ली और 30 जनवरी, 1933 को उन्होंने हिटलर को जर्मनी का चांसलर बना दिया।
खुद को मसीहा 'समझने लगे थे' हिटलर
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