आमिर के बयान के बाद सोशल मीडिया और सड़कों पर उनका विरोध करने के बाद आमिर के बहिष्कार का एक नायाब तरीक़ा यह भी निकाला गया की 'स्नैपडील' की ऐप को लोगों ने अपने फ़ोन से डिलीट करना शुरू कर दिया।
सोशल मीडिया पर 'ऐप वापसी' के नाम से चलाई गई इस मुहिम से परेशान होकर स्नैपडील को आधिकारिक तौर पर आमिर के बयान से ख़ुद को अलग करना पड़ा।
अब आमिर के इस बयान और स्नैपडील के ख़िलाफ़ मुहिम का अंजाम जो भी रहा हो, इस विवाद ने एक बहस को जन्म दिया है कि क्या सिलेब्रिटी की निजी ज़िंदगी से कोई ब्रांड ख़राब हो जाता है?
भारतीय उपभोक्ता बाज़ार की अगर बात करें तो किसी प्रोडक्ट में कमी के चलते ब्रांड अंबेसडर को खरी खोटी सुननी या क़ानूनी कारर्वाई झेलनी पड़ी हो इसके कई उदाहरण हैं।
जैसे एक कोला पेय के सेहत पर होने वाले नुक़सानों के चलते अमिताभ बच्चन पर उस ब्रांड को प्रमोट करने पर सवाल उठे थे और उन्होनें कोला पेय पदार्थ का विज्ञापन करना छोड़ दिया था।
वहीं हाल ही में मैगी विवाद में अमिताभ और माधुरी पर भ्रामक विज्ञापन करने का क़ानूनी दावा किया गया था।
कुछ पान मसाला कंपंनियो के लिए विज्ञापन करने पर अभिनेता गोविंदा और अजय देवगन को क़ानूनी नोटिस मिल चुका है।
लेकिन किसी सिलेब्रिटी के दिए बयान से भारत में उस सिलेब्रिटी द्वारा बेचे जा रहे प्रोडक्ट को नुक़सान हुआ हो ऐसा यह पहला मामला है।
इस मामले पर कई विशेषज्ञ अपनी राय दे चुके हैं और बीबीसी से बात करते हुए ऐड गुरू पीयूष पांडे कहते हैं, "इस तरह के विवाद पहले भी होते रहे हैं लेकिन आज सोशल मीडिया के होने से लोग ऐसे विवादों को ज़्यादा हवा दे देते हैं।"
वे आगे कहते हैं, "किसी सेलेब्रिटी के पास इतना समय नहीं होता की वह प्रयोगशाला में जा कर उस पदार्थ की जांच में ध्यान दे, यह काम उस पदार्थ को बनाने वाली कंपनी का होता है।"
'कैडबरी', 'फ़ैवीकॉल' से लेकर भारतीय जनता पार्टी के लिए विज्ञापन लिख चुके पीयूष मानते हैं कि ऐसे मौक़ों का सबसे ज़्यादा फ़ायदा प्रतियोगी उठा लेते हैं और वो किसी सिलेब्रिटी के निशाने पर आ जाने पर उसके द्वारा प्रचारित किए जा रहे प्रोडक्ट को निशाना बना लेते हैं और आमिर- स्नैपडील प्रकरण में कुछ ऐसा ही हुआ।
बीबीसी से ब्रांड और सिलेब्रिटी के रिश्तों पर बात करते हुए अभिनेता फ़रहान अख़्तर ने भी कहा कि सिलेब्रिटी और उसके द्वारा दिए गए विज्ञापन दो अलग बातें हैं।
फ़रहान आस्क मी बाज़ार डॉट कॉम का विज्ञापन करते हैं और हाल ही में उन्हें इस वेबसाईट की सर्विस में ख़राबी आने पर एक ग्राहक ने क़ानूनी नोटिस भेज दिया।
फ़रहान कहते हैं, "हमें जब किसी ब्रांड का प्रचार करते हैं तो उसके बारे में हमें उतना ही पता होता है जितना किसी आम इंसान को पता होगा और हम उस कंपनी की ओर से आई रिसर्च टीम की बात पर भरोसा करते हैं।"
वे आगे कहते हैं, "हो सकता है कुछ लोग सेलेब्रिटी का चेहरा देख कर उत्पाद ख़रीदते हों लेकिन हम इस बात को मान कर चलते हैं की उत्पाद की गुणवत्ता की ज़िम्मेवारी कंपनी की है और सारी क़ानूनी जांच करवाने के बाद ही वह हमारे पास आई है।"
जिसका सीधा मतलब यह है कि सिलेब्रिटी देख कर नहीं, उपभोक्ता को वस्तु की कंपनी देख कर ही उसे ख़रीदने का फ़ैसला लेना चाहिए।
लेकिन वह बहस का दूसरा पहलू है, विवाद इस बात का है कि क्या सिलेब्रिटी के बयान से उसके द्वारा प्रचार की गई वस्तु या सेवाओं को हानि पहुंचनी चाहिए?
वरिष्ठ एडमेकर भरत धाभोलकर कहते हैं 'बिलकुल'।
बीबीसी से बात करते हुए राजेश कहते हैं, "विदेशों में किसी ब्रांड का प्रचार करना ज़िम्मेदारी का काम है, लेकिन वहां सोशल मीडिया नहीं कंपंनियां ख़ुद ही सजग हैं।"
भारत अमरीकी गोल्फ़र टाईगर वुड्स का उदाहरण देते हुए कहते हैं, "जब टाईगर अपनी निजी ज़िंदगी में चरित्रहीनता के गंभीर विवाद में फंसे थे तब उनसे जुड़ी कई कंपंनियों ने अपनी नैतिक ज़िम्मेवारी समझते हुए उनसे किनारा कर लिया था।"
भरत मानते हैं कि अगर किसी अभिनेता पर क़ानूनी कारर्वाही चल रही हो तो उससे क़रार ख़त्म करना उचित है लेकिन किसी निजी कारणों से अगर वह कलाकार विवादों में है तो कंपनी का उनके ख़िलाफ़ क़दम उठाना ठीक नहीं।
आमिर के विचार उनके निजी विचार हैं और इससे उनके द्वारा प्रचार की गई किसी भी वस्तु का कोई लेना देना नहीं है वर्ना बॉलीवुड में तो ज़मानत पर छूटे सुपरस्टार भी तूफ़ानी प्रोडक्ट बेच रहे हैं, उनके ख़िलाफ़ कोई कुछ नहीं कहता।
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