इन लोगों को मौत की सज़ा ऐसे समय दी गई है जब इस मामले में इराक़ पहले से ही अंतरराष्ट्रीय आलोचना के निशाने पर है.
इराक़ के न्याय मंत्रालय का कहना है कि रविवार को जिन 26 लोगों को मौत की सज़ा दी गई, उनमें स्थानीय सुन्नी लड़ाकू गुट साहवा के कथित नेता आदेल अल मसहादानी भी शामिल हैं.
मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक़, इराक़ ने बीते साल कम से कम 151 लोगों को मौत की सज़ा दी थी.
संगठन का कहना है कि साल 2012 में ऐसे मामलों की संख्या 129 थी जबकि वर्ष 2010 में केवल 18 लोगों को मौत की सज़ा देने के मामले सामने आए थे.
'जघन्य अपराध'
"जिन 26 लोगों को मौत की सज़ा दी गई, सभी जघन्य चरमपंथी अपराधों में शामिल थे जो इराक़ी लोगों के ख़िलाफ़ किए गए थे. फ़ैसले पर राष्ट्रपति की मंज़ूरी की मोहर थी."
-हसन अल शामरी, न्याय मंत्री
इराक़ के न्याय मंत्रालय ने मंगलवार को एक बयान जारी कर कहा, ''चरमपंथ संबंधी अपराधों में दोषी पाए गए 26 लोगों को रविवार के दिन मौत की सज़ा दी गई.''
न्याय मंत्री हसन अल शामरी का कहना है, ''जिन 26 लोगों को मौत की सज़ा दी गई, सभी जघन्य चरमपंथी अपराधों में शामिल थे जो इराक़ी लोगों के ख़िलाफ़ किए गए थे. फ़ैसले पर राष्ट्रपति की मंज़ूरी की मोहर थी.''
"इराक़ में मौत की सज़ा देने के मामले बढ़े हैं जो देश की सुरक्षा और न्याय व्यवस्था से जुड़ी गंभीर समस्याओं को सुलझाने का व्यर्थ प्रयास है."
-फ़िलिप लुथेर, एमनेस्टी इंटरनेशनल
इराक़ी सरकार का कहना है कि वह उन्हीं लोगों को मौत की सज़ा देती है जो चरमपंथी गतिविधियों में शामिल होते हैं या नागरिकों के ख़िलाफ़ दूसरे गंभीर अपराध करते हैं.
लेकिन एमनेस्टी इंटरनेशनल के वरिष्ठ अधिकारी फ़िलिप लुथेर का कहना है, ''इराक़ में मौत की सज़ा देने के मामले बढ़े हैं जो देश की सुरक्षा और न्याय व्यवस्था से जुड़ी गंभीर समस्याओं को सुलझाने का व्यर्थ प्रयास है.''
वहीं ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि वर्ष 2003 में अमरीका के नेतृत्व में इराक़ पर हमले के बाद देश में मौत की सज़ा का मौजूदा आंकड़ा अब तक की सबसे बड़ी संख्या है.
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ें भी इसकी पुष्टि करते हैं.
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