सुजन जब खाली बोतल लेने ऊपर पहुंचे तो वहाँ लोगों ने उन्हें बताया कि लारजी जल विद्युत परियोजना के बांध से पानी छोड़ा गया है. यह सुनकर सुजन तेजी से चिल्लाते हुए नीचे की ओर दौड़े अपने साथियों से ये कहने के लिए कि वो वहां से जल्दी निकलें लेकिन तबतक देर हो चुकी थी.
हां उनकी आवाज़ सुनकर नदी के किनारे पर बैठे चंद छात्र और अध्यापक तो किसी तरह बचकर ऊपर आ गए. लेकिन 24 छात्र नदी में बह गए. इतना कहकर सुजन सुबकने लगते हैं.
सुजन हैदराबाद से आए छात्र -छात्राओं के उस दल में शामिल थे जिसके 24 सदस्य हिमाचल प्रदेश के मंडी ज़िले में रविवार देर शाम हुए हादसे में ब्यासनदी के तेज़ बहाव में बह गए थे.
इंडस्ट्रीयल टूर
यह हादसा उस समय हुआ जब लारजी जल विद्युत परियोजना के बाँध से अचानक नदी में पानी छोड़ दिया गया. इससे नदी का जलस्तर अचानक बढ़ गया और पानी के तेज़ बहाव में 18 लड़के और छह लड़कियां बह गईं.
"हम सभी छात्र छात्राएं व्यास नदी में पानी कम होने की वजह से वहाँ फ़ोटोग्राफ़ी कर रहे थे. इस दौरान मेरे दोस्तों ने मुझसे ऊपर जाकर खाली बोतल लाने को कहा, जिससे वो नदी के पानी को अपने साथ ले जा सकें"
-सुजन, छात्र
ये छात्र हैदराबाद के वीएनआर इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के इलेक्ट्रानिक एंड इंस्ट्रूमेंटेशन विभाग में दूसरे साल के छात्र थे. दूसरे साल की पढ़ाई पूरी करने के बाद ये छात्र इंडस्ट्रीयल टूर पर निकले थे.
इस दर्दनाक हादसे का असर सुजन पर घंटो बाद भी है वो सुबकते हुए कहते हैं, ''हम सभी छात्र छात्राएं ब्यासनदी में पानी कम होने की वजह से वहाँ फ़ोटोग्राफ़ी कर रहे थे. इस दौरान मेरे दोस्तों ने मुझसे ऊपर जाकर खाली बोतल लाने को कहा, जिससे वो नदी के पानी को अपने साथ ले जा सकें.''
वो बताते हैं कि उनके तीन दोस्तों को तैराकी आती थी. इसलिए वो ब्यास के पानी डूब रहे अपने साथियों को बचाने उतर पड़े. सुजन के इन दोस्तों ने दो लड़कियों को बचाया भी लेकिन वो ख़ुद पानी के तेज़ बहाव में बह गए.
सुजन बताते हैं कि यह पूरा हादसा तीस सेकेंड के भीतर उनकी आंखों के सामने ही हो गया और उनके दोस्त उनसे जुदा हो गए. उन्हें लगता है कि अगर तत्काल राहत और बचाव अभियान शुरू किया गया होता तो उनके कुछ साथियों को बचाया जा सकता था.
सुजन को इस बात से भी शिकायत है कि बांध अधिकारियों ने पानी छोड़ने से पहले न तो कोई सायरन बजाया और न ही किसी अन्य तरह की कोई चेतावनी दी जिससे की उनके दोस्तों को संभलने का मौका मिल जाता. अगर ऐसा हुआ होता तो उनके बिछुड़े साथ आज उनके साथ होते.
अमृतसर न जा पाने की कसक
उन्होंने बताया 52 छात्र-छात्राओं का उनका यह दल हैदराबाद से तीन जून को रवाना हुआ था. सबसे पहले वो आगरा पहुंचे. वहाँ ताजमहल देखने के बाद यह दल दिल्ली लौटा था, जहाँ से उनका कुफरी और अमृतसर जाने का कार्यक्रम था. लेकिन छह जून को स्वर्ण मंदिर में दो गुटों के बीच हुई झड़प के बाद वहाँ जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया.
दल सात तारीख़ को शिमला पहुँचा और आठ को वहाँ से मनाली के लिए रवाना हुआ था. मनाली से लौटने के बाद से इन छात्र-छात्राओं का चंडीगढ़ की दो कंपनियों में भी जाने का कार्यक्रम था. लेकिन उसके पहले ही यह हादसा हो गया.
सुजन बताते हैं कि अमृतसर न जाने पाने और स्वर्ण मंदिर न देख पाने की वजह से बहुत से छात्र-छात्राएं निराश थे. ऐसे में मनाली के रास्ते में जब उन्हें ब्यास नदी दिखी तो वो फ़ोटोग्राफी के लिए नदी में उतर पड़े.
वो बताते हैं कि घटनास्थल के पास स्थित एक कंपनी में काम करने वाले तेलगु लोगों ने उनकी काफी मदद की. प्रशासन ने बचे हुए छात्रों और अध्यापकों को धनौजी मंदिर के पास स्थित एक धर्मशाला में ठहराया है.
सुजन ने बताया कि प्रदेश सरकार ने छात्र-छात्राओं के अभिभावकों हैदराबाद से लाने के लिए हवाई जहाज का बंदोबस्त करने की बात कही थी. लेकिन बहुत से अभिभावक हैदराबाद के शम्साबाद हवाई अड्डे पर सोमवार सुबह से बैठे हुए हैं. लेकिन सरकार ने अभी तक कोई व्यवस्था नहीं की है.
(सुजन से टेलीफ़ोन पर हुई बातचीत पर आधारित)
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