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AGRA : कारगिल युद्ध मे́ घुसपैठियो́ को खदेड़ने मे́ आगरा के रणबांकुरे भी पीछे नहीं रहे। अदम्य साहस का परिचय देते हुए देश पर अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। किसी ने अपना पति खोया तो किसी ने बेटा। बावजूद इसके इन परिवारो́ का देश सेवा के प्रति जज्बा कम नहीं हुआ। अब वह आने वाली पीढी को देश की सेवा के लिए तैयार कर रहे है́।

नाती को फौज में भेजेंगी
खंदौली एत्मादपुर क्षेत्र के गांव मलूपुर की श्रीमती देवी को अपने बेटे धर्मवीर सिंह की शहादत पर गर्व है। 30 मई 1999 को कारगिल में ऑपरेशन विजय के दौरान दुश्मनों को खदेड़ते हुए वह शहीद हुए। श्रीमती के दो बेटों में धर्मवीर ने फौज ज्वॉइन की। छोटे बेटे रवि की उम्र उस समय महज छह वर्ष थी। बड़े बेटे की शादी की तैयारी थी, लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था। बेटे की शहादत की खबर आई, तो कुछ समय बाद छोटे बेटे रवि की दुर्घटना में मौत हो गई। अब रवि का बेटा चेतन 10 वर्ष का हो गया है। श्रीमती देवी बताती हैं कि उन्होंने धैर्य पूर्वक इस दुख की घड़ी का सामना किया। नाती चेतन को जब शहादत की दास्तान सुनाई, ता उसने भी फौज में जाने के लिए ठान ली है।
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बेटा लेगा पिता का बदला

कागारौल के गांव रिठौरी कटरा निवासी जाट रेजीमेंट के लांस नायक रामवीर सिंह भी दुश्मनों को खदेड़ते हुए पांच जुलाई 1999 को ऑपरेशन विजय में शहीद हो गए। पत्नी राजवीरी देवी को जब ये खबर मिली तो उन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। दो बेटे और बेटी को इस बात का इल्म भी नहीं था कि पिता का साया उनके सिर से उठ चुका है। छोटे बेटे प्रदीप की उम्र सिर्फ छह महीने थी। सबसे बड़ी बेटी कृष्णा छह वर्ष की थी और उससे छोटा बेटा सुरेंद्र पांच वर्ष का था। जब बच्चे बड़े हुए ता मां राजवीरी देवी ने फोटो दिखाकर मां राजवीरी देवी ने फोटो दिखाकर पिता की शहादत की दास्तान सुनाइ तो उनका सिर गर्व से ड्डंचा हो गया। बड़ी बेटी ने एमकॉम तो बेटे सुरेंद्र ने एमबीए कर लिया है। दोनों गैस एजेंसी को संभालते हैं, वहीं प्रदीप बीएससी की पढ़ाई कर रहा है और फौज ज्वॉइन करना चाहता है। अपने पिता की शहादत का बदला लेना चाहता है।

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चार दिन पहले ही आया था पत्र
राजवीरी देवी बताती हैं कि शहादत से चार दिन पहले उनका पत्र आया था। उन्होंने पत्र में लिखा था कि मैं पहाड़ों पर हूं। यहां लड़ाई चल रही है। आप अपना ख्याल रखना। मैं आ पाड्डंगा या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता। मैं लड़ाई खत्म होते ही घर आड्डंगा। लेकिन, घर लौटने की बजाय रामवीर सिंह ने वतन की हिफाजत में अपने प्राणों की आहूति दे दी। पत्नी राजवीरी देवी ने बताया कि सुबह के 10-11 बजे का समय था। गुरुवार का दिन था। मैं केले के पेड़ के नीचे बैठकर पूजा कर रही थी। उसी दौरान शहीद होने की सूचना मिली। पूरे गांव में हुजूम उमड़ पड़ा। घर भीड़ से भर गया। तीन दिन बाद उनका पार्थिव शरीर गांव पहुंचा था।
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