kanpur@inext.co.in

KANPUR : करीब 20 साल पहले इंडिया और पाक के बीच हुए कारगिल वार को कौन भूल सकता है। देश के वीर सैनिकों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए पाक को मुंह तोड़ जवाब दिया और दो महीने तक चली इस वार का अंत देश के करीब 500 सैनिकों की शहादत और इंडिया की जीत के साथ 25 जुलाई 1999 को हुआ। हिस्ट्री के पन्नों पर अमर हुआ यह खास दिन विजय दिवस के रूप में पूरे इंडिया में मनाया जाता है। इस खास मौके पर दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने शहीद मेजर अविनाश चंद्र भदौरिया के पैरेंट्स से मिलकर देश के बेटे की वीर गाथा को तरोताजा करने का प्रयास किया। नम आंखों के साथ पैरेंट्स बताते हैं कि ऐसा कोई दिन नहीं होता है, जब वो अपने सपूत को याद न करते हों...

kargil vijay diwas: बेटे की शहादत को याद कर नम हो गईं शहीद मेजर अविनाश चंद्र भदौरिया के माता पिता की आंखें

तीन आतंकियों को मार कर हुए शहीद

गोविंदनगर निवासी शहीद के पिता गंगा सिंह ने बताया कि जिस वक्त इंडिया में सभी लोग टीवी, रेडिया पर कारगिल वार से जुड़ी न्यूज के अपडेट के लिए अपनी नजरे और कान गड़ाए हुए थे, उस वक्त देश के सपूत सीमा पर ऑपरेशन विजय को अंजाम देने में मशगूल थे। मेजर अविनाश को अपने इनफॉर्मरों से क्षेत्र में आतंकियों के घुसपैठ की इनफॉर्मेशन मिली। इस पर मेजर ने अपने दो फॉलोवर्स के साथ सर्चिंग ऑपरेशन शुरू किया। घंटों की तलाश के बाद उन्होंने 3 आतंकियों का पीछा करने के बाद मार गिराया। इसके बाद एक जमीन के बल गिरे आतंकी को पैर से सीधा किया और उनकी मौत की पुष्टि के बाद पीछे की ओर मुड़े, तभी जमीन पर पड़े अधमरे आतंकी ने उनकी पीठ पर वार किया। गोलियां चलते ही फॉलोवर्स ने भी उस आतंकी पर गोलियां बरसा दीं। इस घटना ने महज 29 साल की ऐज में देश के वीर सपूत को छीन लिया। उनकी वीरता के लिए शहीद मेजर विनाश सिंह भदौरिया को बाद में फॉर्मर प्रेसिडेंट ऐपीजे अब्दुल कलाम ने कीर्ति चक्र से सम्मानित भी किया।

Kargil Vijay Diwas : शहीद नागेश्वर महतो की पत्नी बोलीं, पहाड़ जैसा गुजरा बीस साल, हर पल खली कमी

'शहीद की मां होने पर है गर्व'

मां अरुणा भदौरिया बताती हैं कि हर मां का सपना होता है कि उसका बेटा खूब तरक्की करे और अपनी फैमली के साथ खुश रहे। ऐसा ही सपना पहले वो भी देखती थीं। इसी के चलते वो चाहती थीं कि उनका बड़ा बेटा अविनाश इंजीनियर बने। उन्होंने अपनी मां का यह सपना प्री एग्जाम फस्र्ट चांस में क्वालीफाई कर करीब पूरा भी किया। लेकिन, तभी अविनाश को देश की याद आई और आर्मी ज्वाइन करने की इच्छा जाहिर की। उनकी इस इच्छा का उनके पैरेंट्स ने दिल से स्वागत किया। तरह तरह की डिशेज खाने के शौकीन अविनाश के छुट्टियों में घर आने की यादों में खोई उनकी मां की आंखें नम हो आईं। लेकिन, फिर भी उन्हें एक शहीद की मां होने पर गर्व है, जिसने देश की सेवा के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।

kargil vijay diwas: बेटे की शहादत को याद कर नम हो गईं शहीद मेजर अविनाश चंद्र भदौरिया के माता पिता की आंखें

National News inextlive from India News Desk