उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम
भारत में उपभोक्ता दिवस उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 बना हुआ है. इस अधिनियम के तहत किसी भी तरीके का सामान खरीदने वाला या सेवाएं लेने वाल हर व्यक्ित उपभोक्ता है. इसके अलावा उपभोक्ताओं के अधिकार भी हैं. जिन्हें जानना बेहद जरूरी है. जानने के साथ साथ जागरूक होकर उनका लाभ उठाना भी उमपभोक्ता के अधिकारों में हैं. इतना ही इस अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्ता विवादों के तत्काल और मितव्ययी निपटान के लिए राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तरों पर तीन स्तरीय क्वासी-ज्युडिशियल उपभोक्ता विवाद निवारण तंत्र स्थापित हैं. ये हैं मुख्य अधिकार.
खतरनाक चीजों से बचने का विकल्प
खरीदी गई वस्तुएं और ली गई सेवाएं, से उनकी तात्कालिक जरूरतें ही पूरी न हों तो उन चीजो को लेने से क्या फायदा. कई बार गुण्ावत्ता में जीरों चीजें उपभोक्ताओं को दे दी जाती है. ऐसे में खरीद से पूर्व उपभोक्ता को उत्पादों की गुणवत्ता तथा उत्पादों और सेवाओं की गारंटी पर भी जोर देना जरूरी होता है. वहीं उपभोक्ताओं को अधिमानतः आई एस आई, एगमार्क आदि जैसे गुणवत्ता चिह्न वाले उत्पाद खरीदने चाहिए.
उपभोक्ता को जानने का अधिकार
उपभोक्ता को माल की गुणवत्ता, मात्रा, प्रमाणिकता आदि जानने का पूरा अधिकार है. इसके अलावा शुद्घता, मानक और मूल्य के बारे में सूचित किए जाने का अधिकार भी है, ताकि अनुचित व्यापारिक व्यवहार से उपभोक्ताओं को बचाया जा सके. ऐसे में उपभोक्ता को चयन या निर्णय लेने से पहले उत्पाद व सेवा के बारे में जानाकारी देना चाहिए. जिससे कि वह बुद्घिमता, जिम्मेदारी से कार्य कर सकेगा.
चुनने का स्वतंत्र अधिकार
उपभोक्ता को किसी वस्तु तथा सेवा की प्रतिस्पर्धी मूल्यों पर सुलभता का आश्वासन पाने का स्वंतत्र अधिकार है. हम क्या चुने और क्या न चुने. इसमें बुनियादी वस्तुओं तथा सेवाओं का अधिकार भी शामिल है. कई बार ऐसा होता है कि अल्पसंख्यकों के अप्रतिबंधित अधिकार के कारण बहु-संख्यकों को उनका समुचित हिस्सा नहीं मिल पाता है. इस अधिकार का बेहतर उपयोग उस प्रतिस्पर्धात्मक बाजार में मनमुताबिक चीजें चुनी जा सकती हैं.
उपभोक्ता की सुनवाई का अधिकार
कई बार क्रेता विक्रेता के साथ अनुचित व्यवहार करते हैं. जब कि उपभोक्ता के अधिकारों में यह भी शामिल है कि वह उसका विरोध कर सके. अनुचित व्यापार व्यवहारों अथवा बेईमानी वाले क्रेताओं के खिलाफ आवाज उठाने का प्रावधान है. इसके लिये वे उपभोक्ता संगठनों में भी कह सकते हैं. क्रेता को उपभोक्ता की जायज मांग और बातों को सुनना होता है.
शिक्षा व केस करने अधिकार
इसके साथ्ा ही उपभोक्ता शिक्षा भी दिये जाना इस अधिनियम के तहत है. अगर कोई उपभोक्ता क्रेता की ओर से ठगी का शिकार होता है, तो उसे अपनी आवाज उठाने का हक है. कई बार उनकी शिकायत बहुत कम मूल्य की हो सकती है किन्तु समूचे समाज पर उसका बहुत अधिक प्रभाव पड़ सकता है. ऐसे में उपभोक्ता अपनी वास्तविक शिकायत को लेकर केस दर्ज करा सकते हैं.
यहां करें शिकायत...
कई बार उपभोक्ता परेशान होते हैं लेकिन उन्हें जानाकारी नहीं होती है कि वह कहां और किन मामलों में शिकायत करें. ऐसे में उपभोक्त अगर राशि 20 लाख रूपये से कम है तो जिला फोरम में शिकायत कर सकता है. यदि यह राशि 20 लाख रूपये से अधिक लेकिन एक करोड़ रूपये से कम है तो राज्य आयोग के समक्ष तहत कर सकता है और यदि एक करोड़ रूपसे अधिक है तो राष्ट्रीय आयोग के समक्ष शिकायत दर्ज करा सकता है.
यह भी जानें...
उपभोक्ता को तीन चीजों के लिये हमेशा जागरूक रहना चाहिये. उसे गुणवत्ता, बिल और सर्विस देने वाले के रवैये पर. ऐसे में यदि किसी व्यापारी द्वारा अनुचित प्रयोग करने से हानि हुई या फिर खरीदे गये सामान में यदि कोई खराबी है तो उपभोक्ता आवाज उठा सकता है. इसके अलावा यदि सामान लेने पर उसे बिल नहीं मिलता तो भी उसे मांगे. कई बार क्रेता उपभोक्ताओं से मनमानी कीमत लेते है और बिल देने से बचते हैं या फिर गलत बिल थमा देते हैं. इसके अलावा यह भी उपभोक्ता के साथ होने वाला रवैया भी मायने रखता है. कई बार क्रेता उनके साथ गैरकानूनी व्यवहार करते हैं जैसे गलत भाषा, सर्विस देने पर अभद्रता करना आदि.
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